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बांधवगढ़ में कमजोर सूचना तंत्र और उपचार में देरी ने ली 10 हाथियों की जान

उमरिया
बांधवगढ़ में 10 हाथियों की मौत की तीन अहम वजह जंगल की जानकारी रखने वाले लोग बता रहे हैं। पहली वजह तो यह है कि माइकोटॉक्सिन प्रभावित कोदो खाने के बाद हाथियेां के बीमार होने की सूचना प्रबंधन तक लगभग 14 घंटे देरी से मिली। दूसरी वजह यह है कि बीमार हाथियों का उपचार लगभग 16 से 17 घंटे बाद शुरू हो पाया। तीसरी और सबसे महत्वपूर्ण वजह यह है कि न सिर्फ बांधवगढ़ में बल्कि दूसरे जंगलों और ग्रामीण क्षेत्रों में हुई इस तरह की घटनाओं को पार्क प्रबंधन ने अपने अध्ययन की न तो कभी विषयवस्तु बनाया और न ही उन घटनाओं से अनुभव प्राप्त करके खुद को इस तरह की घटनाओं के लिए तैयार रखा।

रात में प्रभावित और शाम को उपचार
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में दस हाथियों की मौत के बाद जांच करने पहुंची सभी टीम घटनाक्रम के पल-पल का ब्यौरा ले रहीं हैं। जांच टीमों को मिली जानकारी में यह महत्वपूर्ण है कि जंगली हाथियों ने रात में दस से ग्यारह बजे के बीच खेतों में कोदो की फसल को खाया था।

जब यहां से उन्हें हांका जाने लगा तो वे पानी पीने के बाद सलखनिया गांव के नजदीक उस स्थान पर पहुंच गए जहां उन्हें बीमार और बेहोशी की हालत में दोपहर तीन बजे गश्तीदल द्वारा देखा गया। जब हाथियों को बीमार हालत में देखा गया तब तक दो हाथियों की मौत भी हो चुकी थी। इस घटना की सूचना मिलने और अधिकारियों के पहुंचने तक दो से तीन घंटे का समय और बीत गया।

नहीं था कोई डॉक्टर
घटना की जानकारी मिलने के दौरान बांधवगढ़ में कोई डॉक्टर भी मौजूद नहीं थे। यहां के डॉक्टर नितिन गुप्ता संजय धुबरी में प्रोजेक्टर गौर की मानिटरिंग के लिए गए थे। वाइल्ड लाइफ एक्टिविस्ट अजय दुबे ने एनटीसीए से की गई शिकायत में यह जानकारी दी है कि बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में हाथियों के जहरीले पदार्थ के सेवन बाद निकट के आपातकाल स्थिति में सरकारी पशु चिकित्सकों ने मदद करने से इनकार किया जो बेहद गंभीर अपराधिक लापरवाही है और दंड के पात्र हैं।सबसे पहले केवल एक डॉक्टर मधु जैन ही अकेले पहुंची और इलाज शुरू किया। अन्य डॉक्टरों को यहां पहुंचने और फिर उनके अनुमान लगाने के बाद दवाओं के पहुंचने में भी काफी समय लग गया।

चुपचाप जलाया था हाथी का शव
वर्ष 2022 नवंबर में ही पनपथा के छतवा बीट घोरीघाट में कोदो खाने से एक हाथी इसी तरह से बीमार हो गया था। सूचना के बाद हाथी का उपचार किया गया लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका था। उस हाथी को रेंजर शीलसिंधु श्रीवास्तव ने चुपचाप जलवा दिया था। इस मामले में रेंजर के खिलाफ कार्रवाई भी हुई थी और उन्हें सस्पेंड भी किया गया था। वह मामला अभी भी जांच में है। इसी तरह की घटनाएं छत्तीसगढ़ के सूरजपुर और बलराम पुर में भी हुई थी लेकिन वहां डॉक्टरों ने हाथियों को बचा लिया था। कान्हा नेशनल पार्क में भी कोदो खाने से जंगली हाथी बीमार हो चुके हैं लेकिन उन्हें बचा लिया गया था।

लग रहे हैं आरोप
वन्यप्राणी प्रेमी नरेन्द्र बगडि़या का कहना है कि हाथियों की मौत बांधवगढ़ प्रबंधन के सूचना तंत्र की कमजोरी की वजह से हुई है। हाथियों की बीमार होने के बाद उन्हें जो उपचार दिया गया वह भी बेहद साधारण था और यह इसलिए हुआ क्योंकि पहले हुई घटनाओं से प्रबंधन ने कोई सबक लिया ही नहीं था। वंदना द्विवेदी का कहना है कि पार्क प्रबंधन को हमेशा ही अलर्ट रहना चाहिए कि हाथी या दूसरे जानवर कुछ खाकर बीमार हो तो उन्हें कैसे बचाना है।