आम सभा, भोपाल : भारत में हाल के समय का संभवतः सबसे भयानक जल संकट का दौर चल रहा है. भारत में विश्व के मीठे जल संसाधनों का महज 4% उपलब्ध है और इसमें में 60% जल का प्रयोग खेती-बाड़ी में होता है. मानसून के दौरान भारत में पर्याप्त वर्षा (लगभग 1190 मिलीमीटर) होती है, लेकिन इसके पानी को संरक्षित करने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं है. वर्षाजल प्रबंधन नहीं होने के कारण बरसात के पानी की बाढ़ उपजाऊ खेतिहर मिट्टी को साथ बहाकर समुद्र में चली जाती है. अब खेती में पानी के प्रयोग में बदलाव करना अनिवार्य हो गया है, ताकि इसकी कम-से-कम बर्बादी हो और भविष्य की ज़रूरतों के लिए पानी का पर्याप्त भण्डार उपलब्ध रह सके.
कृषि रसायन की प्रमुख कंपनी, धानुका एग्रीटेक ने ऐसे कुछ तरीके खोजे हैं जिनके सहारे बेहतर पैदावार के लिए किसान इस बरसात में पानी का संरक्षण कर सकते हैं.
भूमि की लेज़र लेवलिंग
लेज़र लेवलिंग एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जो सिंचाई के लिए पानी के संरक्षण में अत्यंत उपयोगी है. खेतों में बनी आरियाँ मिट्टी की जल दक्षता बढ़ाने में मददगार होतीं हैं. इससे खेतों में पानी की कुल ज़रुरत में 20-25% तक की बचत हो जाती है. इससे अंकुरण, पौधों के खड़ा रहने की शक्ति और फसल की पैदावार बढ़ती है.
उपकरणों का रख-रखाव
सिंचाई के उपकरण, चाहे वे नल हों, या नोजल हों, पाइपलाइन या वाटर पंप हों, उनके नियमित रख-रखाव से उनकी कार्यशीलता बनाए रखने और पानी की बर्बादी रोकने में काफी फायदा होता है. नालों के नोजल बदलते रहे, नियमित रूप से लीकेज रोकें. साथ ही अधिक तापक्रम में या आँधियों के समय सिंचाई नहीं करें.
पीपे में पानी का भण्डारण
पीपे में वर्षा जल को जमा करने रखना उपयोगी होता है क्योंकि इस प्रकार संगृहीत पानी का इस्तेमाल बरसात के बाद में मौसम में या सूखा के दौरान किया जा सकता है. किन्तु, पीपों को ढँक कर या उनके मुंह पर जाली लगाकर रखना चाहिए, ताकि उनमें मच्छर पैदा नहीं हों.
छोटे-छोटे तालाबों का निर्माण
वर्षाजल पानी का प्राकृतिक स्रोत है और सिंचाई के लिए इसका प्रयोग करना चाहिए. खेत के निचले हिस्से में छोटे-छोटे तालाब बना दें ताकि बरसात का पानी ऊंचाई की ओर से आकर इसमें जमा हो सके. इससे सूखे के समय पानी की ज़रुरत पूरी करने में मदद मिलेगी. मछली पालन, एक्वाकल्चर के लिए इन तालाबों का इस्तेमाल करके अतिरिक्त आमदनी भी कमाई जा सकती है.
संगृहित पानी का कम इस्तेमाल
मानसून के दौरान सामान्य जल आपूर्ति का कम इस्तेमाल और इसके बदले प्राकृतिक वर्षा जल का इस्तेमाल करके आप मानसून के बाद के दिनों के लिए अतिरिक्त पानी का भण्डार सुरक्षित रख सकते हैं.
ड्रिप सिंचाई
संभव हो, तो ड्रिप सिंचाई तकनीक पर खर्च करें. यह सिंचाई की सर्वोत्तम विधि है और इससे पानी के नियंत्रित इस्तेमाल, घास-फूस और कीट-पतंगों का प्रकोप कम करने में भारी लाभ होता है.
फसलों का आवर्तन
अलग-अलग तरह की फसलों को अलग-अलग मृदा पोषण और जल की मात्रा की ज़रुरत होती है. फसलों की किस्मों के आवर्तन से आम तौर पर पानी की कम खपत में अधिक पैदावार होती है.
भूमि को जैव पदार्थों से ढँक कर रखें
नमी बनाये रखने के लिए मिट्टी को जैव खाद, सूखे चारे, घास, पुआल, छाल आदि से ढँक दें.
– अशोक महाजन, वरीय महाप्रबंधक, धानुका एग्रीटेक लिमिटेड