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वे आवारा नहीं उन्हें चाहिए अपनत्व : मुकेश तिवारी

इंसान और पशु एक दूसरे के पूरक हैं सदियों से पशु किसी न किसी रूप में मनुष्य के जीवन का अभिन्न अंग रहे हैं जन स्वास्थ्य और उसकी रक्षा का आधार भी पशु है पशु गांव और जंगल की शोभा बढ़ाने के साथ-साथ मनुष्य की आवश्यकताओं की पूर्ति भी करते हैं मगर हकीकत यह है कि महानगर की संवेदनशील दुनिया में आने के पश्चात उसे आवारा जानवर मानकर सड़कों और गलियों में भूखा प्यासा मरने के लिए छोड़ दिया जाता है सड़क और रेल की पटरी ऊपर पशुओं की दर्दनाक मौत को देखकर इंसान का दिल दहल जाता है पशुओं के साथ हो रहे अमानवीय व्यवहार का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि चंद रुपयों के लोभ में उनका वध करके खाले हड्डियां और चर्बी तक बेच दी जाती है यद्यपि देश भर में ऐसे पशुओं के झुंड को अक्सर सड़कों गली मुहल्ले में स्वच्छन्द विचरण करते देखा जा सकता है

पशुओं की देखभाल और इनके उपचार के लिए सभी राज्य सरकारों ने तमाम सारी योजनाएं तो बनाई है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि राज्य सरकारों की यह सारी योजनाएं अब खोखली साबित होने लगी है इस मामले में दिलचस्प तथ्य यह है कि भारतवर्ष के सभी निकायों नगर परिषद छावनी बोर्ड के क्षेत्रों में बड़ी तादाद में पशु बेसहारा घूमते रहते हैं पशुओं के झुंड रात में सड़कों पर जमघट लगाए रहते हैं इससे अक्सर दुर्घटनाएं भी घट जाती हैं वैसे देखा जाए तो केंद्र शासित 28 राज्यों में से ऐसा कोई राज्य नहीं है जहां की पुलिस के ट्रैफिक महकमे के आंकड़ों में पशुओं के कारण हुई दुर्घटनाओं के मामले शामिल न हो इसकी अहम वजह चारागाह का नहीं होना है बढ़ती जनसंख्या बढ़ते आवासों के चलते शहर से सटे गाँवों में जमीन नहीं बची है हालत यह है कि इसके बावजूद भी वे पहले की तरह पशुओं को पाल रहे हैं मगर अहम बात यह है कि चारागाह नहीं होने से लोग अपने पशुओं को सड़कों गलियों और मंडियों में आवारा घूमने के लिए छोड़ देते हैं ।

सच यही है कि डेरियाँ चलाने वाले लोग अब इतने व्यवसाई हो गए हैं कि वे अपने पालतू पशुओं की तकलीफ और बीमारी को नजरअंदाज कर देते हैं उनकी अमानवीयता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे दूध देने में असमर्थ पशुओं को सड़कों पर आवारा व् भूखा घूमने और दुर्घटना में मारे जाने के लिए छोड़ देते हैं । वैसे तो आवारा पशुओं को पकड़ने के लिए नगर निगम नगर परिषद छावनी बोर्ड के पास प्रत्येक शहर में पृथक से कुछ कर्मचारी होते हैं जो आवारा घूमने वाले पशुओं को पकड़ने के पश्चात अब अपना पशु छुड़ाने आने वालों से जुर्माना के तौर पर जुर्माना वसूल कर पकड़े गए पशु को छोड़ देते हैं नियमानुसार रिहायशी कालोनियों में रहने वाला कोई भी व्यक्ति अपने साथ गाय-भैंसों को नहीं रख सकता लेकिन इसके बावजूद रिहायशी कालोनियों में डेरियाँ धड़ल्ले से चल रही हैं इंसानों के वनस्पत जानवर अपने मालिक के प्रति ज्यादा वफादार होते हैं लेकिन लोगों का जानवरों के प्रति व्यवहार उतना अच्छा नहीं रहता बीमारी पशुओं की देखभाल करने और उनका ठीक ढंग से इलाज करवाने से भी लोग कतराते हैं इसकी वजह से इन पशुओं की दर्द तकलीफ उन तक ही सिमट कर रह गई है।

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