देश में वामपंथी पार्टियां अभी तक चुनाव लड़ने के पुराने तौर तरीके ही अपनाती रही हैं. चुनावी मैदान में उतरे उम्मीदवार के लिए कैम्पेन करना, उनके लिए बैनर पोस्टर तैयार करना या चंदा एकत्रित करना, सब कुछ जन सहयोग से किया जाता रहा है. बिहार के बेगुसराय लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के प्रत्याशी कन्हैया कुमार भी चुनाव लड़ने का वही तौर तरीका अपना रहे हैं. लेकिन उसमें एक नयापन भी देखने को मिल रहा है. चुनावी चंदे के लिए वह क्राउडफंडिंग का सहारा ले रहे हैं. पार्टी का भी मानना है कि राजनीति में नए लोग आएं और संसदीय सियासत में जमाने के मुताबिक पार्टी को लेकर आगे बढ़ें.
वामपंथी पार्टियां अब तक पूंजीवादी ढंग से चुनाव लड़ने से परहेज करती रही हैं. ये पार्टियां जन भागीदारी से चुनाव लड़ने को तरदीह देती हैं. लेकिन कन्हैया कुमार नए रास्ते पर चल रहे हैं और बुर्जुआ कही जाने वाली अन्य पार्टियों के चुनावी तरीकों की तर्ज पर मैदान में हैं. लेकिन कन्हैया कुमार के क्राउडफंडिंग के को लेकर सोशल मीडिया में सवाल उठ रहे हैं.
सवाल करने वालों का कहना है कि क्या कन्हैया कुमार पार्टी से ऊपर हैं जो स्वयं के लिए क्राउडफंडिंग कर रहे हैं. इस सवाल पर सीपीआई से जुड़े महेश राठी कहते हैं कि पार्टी ने उन्हें इसकी अनुमति दे रखी है. उनका कहना है कि दिक्कत यह है कि वामपंथी पार्टियां पुराने तरीके से चुनाव लड़ें तब भी कहा जाता है कि ये पार्टियां नए जमाने में फिट नहीं हैं और नई तकनीक के अनुसार नहीं चल रही हैं और अगर लेफ्ट की पार्टियां नया रास्ता अख्तियार करती हैं तब भी उन्हें निशाना बनाया जाता है. यह तर्क न्यायसंगत नहीं है.
महेश राठी ने aajtak.in से बातचीत में बताया, ‘सीपीआई अब तक पार्टी कार्यकर्ताओं, ट्रेड यूनियन, जनता और अपने संगठनों के द्वारा जुटाए गए चंदे से चुनाव लड़ती रही है. लेकिन बीजेपी, कांग्रेस और अन्य दलों की तरह जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार क्राउडफंडिंग का सहारा ले रहे हैं. इसमें दिक्कत क्या है?’ उन्होंने कहा कि चंदा तो जनता से ही लिया जा रहा है, बस फर्क इतना ही है कि चंदा लेने का सलीका बदल गया है और ऑनलाइन माध्यम का सहारा लिया जा रहा है.
कन्हैया कुमार की चुनावी टीम से जुड़े रजा हैदर भी महेश राठी की राय से सहमति जता रहे हैं. उन्होंने कहा, ’पहले हम घर-घर जाकर लोगों से चंदा लेते थे तो किसी को पता नहीं चलता था. लेकिन अब राजनीतिक चंदे के लिए टेक्नोलॉजी, ऑनलाइन प्लेटफार्म का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसमें क्या बुराई हो सकती है?’ इस सवाल पर कि यह तो पूंजीवादी तरीका है, रजा हैदर कहते हैं कि, ‘कुछ पुराने लेफ्ट के ट्रेनी हैं जिन्हें नया तरीका रास नहीं आ रहा है. टेक्नोलॉजी तो निरपेक्ष माध्यम है, जिसका सभी मदद लेते हैं, हम भी मदद ले रहे हैं.’