नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान खत्म करने के बाद लगाए गए प्रतिबंधों की एक हफ्ते के अंदर समीक्षा करने को कहा है। कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद और अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए देश की सबसे बड़ी अदालत ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से बैंकिंग, अस्पताल, शिक्षण संस्थानों समेत सभी जरूरी सेवाएं देने वाले संस्थानों में इंटरनेट सेवा बहाल करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने साफ कहा कि इंटरनेट को सरकार अनिश्चितकाल के लिए बंद नहीं कर सकती। कोर्ट ने इंटरनेट के इस्तेमाल को अभिव्यक्ति के अधिकार का हिस्सा माना है।
जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस बीआर गवई की तीन सदस्यीय बेंच ने कहा कि लोगों को असहमति जताने का पूरा अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 144 का जिक्र करते हुए कहा कि इसका इस्तेमला सोच-विचार कर ही किया जाना चाहिए। विरोधी विचार को कुचलने के औजार के तौर पर इसका दुरुपयोग न हो। सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीर में जरूरी सेवाओं के इस्तेमाल के लिए इंटरनेट की बहाली का आदेश देते हुए बड़ी बात कही। कोर्ट ने कहा, ‘इंटरनेट का इस्तेमाल संविधान के आर्टिकल 19 के तहत दिए गए अधिकार के तहत ही है।’
सुप्रीम कोर्ट के आदेश की 10 बड़ी बातें
1-लोगों को असहमति जताने का पूरा अधिकार
2-सरकार अपने सभी आदेशों की 1 हफ्ते में समीक्षा करे
3-सरकार कश्मीर में अपने गैरजरूरी आदेश वापस ले
4-बैन से सभी जुड़े आदेशों को सरकार सार्वजनिक करे
5-आदेशों की बीच-बीच में समीक्षा की जानी चाहिए
6-बिना वजह इंटरनेट पर बैन नहीं लगाया जा सकता
7-इंटरनेट बैन पर सरकार को विचार करना चाहिए
8-इंटरनेट पर पूरा बैन सख्त कदम, जरूरी होने पर लगे
9-सभी जरूरी सेवाओं में इंटरनेट को बहाल किया जाए
10-चिकित्सा जैसी सभी जरूरी सेवाओं में कोई बाधा न आए
सुप्रीम कोर्ट ने की संतुलन की बात
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें स्वतंत्रता और सुरक्षा में संतुलन बनाए रखना होगा। नागरिकों के अधिकारों की रक्षा भी जरूरी है। इंटरनेट को जरूरत पड़ने पर ही बंद किया जाना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत इंटरनेट के इस्तेमाल को मौलिक अधिकार का हिस्सा बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से इंटरनेट के निलंबन के सभी आदेशों की समीक्षा करने के लिए कहा। पीठ ने कहा कि इंटरनेट का उपयोग करना कुछ प्रतिबंधों के साथ संविधान के अनुच्छेद-19 के तहत एक मौलिक अधिकार है और प्रेस की स्वतंत्रता एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र अधिकार है। कश्मीर में लगे प्रतिबंधों को लेकर न्यायालय ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति जताने वाले किसी विचार को दबाने के लिए धारा 144 सीआरपीसी (निषेधाज्ञा) का इस्तेमाल अनिश्चित काल तक नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि मैजिस्ट्रेट को निषेधाज्ञा जारी करते समय इस पर विचार करना चाहिए और आनुपातिकता के सिद्धांत का पालन करना चाहिए।
बता दें कि जम्मू कश्मीर में प्रतिबंधों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 27 नवंबर को सुनवाई पूरी की थी। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधान समाप्त करने के बाद वहां लगाए गए प्रतिबंधों को 21 नवंबर को सही ठहराया था। केंद्र ने न्यायालय में कहा था कि सरकार के एहतियाती उपायों की वजह से ही राज्य में किसी व्यक्ति की न तो जान गई और न ही एक भी गोली चलानी पड़ी।
गुलाम नबी आजाद के अलावा, कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन और कई अन्य ने घाटी में संचार व्यवस्था ठप होने सहित अनेक प्रतिबंधों को चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर की थीं। केंद्र ने कश्मीर घाटी में आतंकी हिंसा का हवाला देते हुए कहा था कि कई सालों से सीमा पार से आतंकवादियों को यहां भेजा जाता था, स्थानीय उग्रवादी और अलगावादी संगठनों ने पूरे क्षेत्र को बंधक बना रखा था और ऐसी स्थिति में अगर सरकार नागरिकों की सुरक्षा के लिए एहतियाती कदम नहीं उठाती तो यह ‘मूर्खता’ होती। केंद्र सरकार ने पिछले साल पांच अगस्त को जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अनेक प्रावधान खत्म कर दिए थे।