Saturday , April 19 2025
ताज़ा खबर
होम / राज्य / मध्य प्रदेश / वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.व्ही.एल.अवस्थी द्रवेश जी की 83वीं जयंती पर विशेष आलेख

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.व्ही.एल.अवस्थी द्रवेश जी की 83वीं जयंती पर विशेष आलेख

एक निष्काम कर्मयोगी की जीवन यात्रा

(मुकेश तिवारी,
वरिष्ठ पत्रकार)

चम्बल की धरती पर यूं तो अनगिनत साहित्य साधक जन्म लेते रहे है,लेकिन चन्द साहित्य कार ही ऐसे भी हैं जो चम्बल माटी के चन्दन को साहित्य जगत में ही नहीं देश के कोने कोने को सुगंधित करते रहे है। इसी कड़ी के साहित्यकारों की कड़ी में प्रात: स्मरणीय जो नाम आता है वह है डॉ. व्ही.एल अवस्थी द्रवेश जी का,श्री द्रवेश जी की साहित्य यात्रा पर नजर डालें तो हमें पता चलता है कि श्री द्रवेश जी सन् 19५३ में जब वे कक्षा ८ में थे तभी के स्कूल अध्ययन काल से ही हिन्दी साहित्य पर प्रभावी लेखन लिखना प्रारंभ कर दिया जैसा कि विदित है कि साहित्य साधना निश्चित ही कठिनतम एवं जटिलतम साधना है। चूंकि तत्कालीन परिस्थितियां आज के समय जैसी सुखद भी नहीं थीं,उस समय के छात्र जीवन कष्टप्रद ही थे। बावजूद इसके श्री डाक्टर अवस्थी द्रवेश जी उस
समय के श्री विष्णु लाल अवस्थी जी साहित्य के साथ – साथ हर क्लास में भी अव्वल आते हुए सर्वाधिक अंक पाते रहे थे।सुपरिणामत आप जीवन की सोपान युक्त श्रंखला के शैक्षाणिक क्षेत्र में इंटरमिडिएट,एम.एच.एस.सी(होम्योपैथिक)एम.आई एस.एस .तथा आयुर्वेद की उपाधियों को प्राप्त करते हुए म.प्र. शासन में डिप्टी रेंजर के पद पर सेवाएं देते रहे । लेकिन पारिवारिक विसंगतियों के चलते १९७० में श्री डाक्टर अवस्थी द्रवेश जी ने डिप्टी रेंजर पद से स्वेच्छा से त्याग पत्र दे दिया। संघर्षशील व्यक्ति के जीवन में जाने कितने मोड आते हैं जैसा कि कभी-कभी देखा जाता है कि साहित्य कार अपने कथा साहित्य के काल्पनिक पात्र बनाता है और कभी भी जीवन के किसी भी मोड़ पर साहित्यकार ऐसा भी देखता है कि वह अपनी ही किसी काल्पनिक कहानी का धरातलीय सच बन जाता है। उसकी जाने कौन सी कहानी के पात्र की आत्मा उसमें समाहित हो गई है।तो इसी तरह का जीवन श्री द्रवेश जी ने सन् १९५३ से इतना लिखा है कि देश के मासिक,पाक्षिक,साप्ताहिक सहित दैनिक समाचार पत्रों ने बढ़चढ़ कर उनके साहित्य को प्रकाशित किया है तथा विभिन्न साहित्य एवं सामाजिक और राजनितिक संस्थाओं ने श्री द्रवेश जी को पलक पांवड़े पर बिठाते हुए हर काल में उन्हें सम्मान देना अपना परम् कर्तव्य समझा है

डाक्टर व्ही एल अवस्थी द्रवेश का जन्म 13जनवरी 1939 तथा महाप्रयाण 12 दिसम्बर 2007 को हुआ।उनका नाम मुरैना जिला के साहित्यकाश में अपना अलग ही स्थान रखता है । यहां माटी में एक से एक अतिविशिष्ट विज्ञान साहित्य मनीषी समय समय पर पैदा होते रहे हैं और आपने जीवन काल में अपनी योग्यता का काव्य का तथा लीक से हटाकर शैली का आभा मण्डल बिखेरते रहे हैं। इसी साहित्या काश में सच्चे साधक के रूप में डॉ. व्ही.एल.अवस्थी द्रवेश को देखा गया जिनका साहित्य में अतिविशिष्ट मुकाम रहा था अपने समय में देश भर के काव्य मंचो पर काव्य पाठ तो किया ही साथ ही गद्य में एक हजार से भी ज्यादा रचनाएं लिखी जोकि समय समय पर देश भर की प्रमुख हिन्दी साहित्य पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं डाक्टर अवस्थी द्रवेश जी का महाकाव्य दिव्य मूर्ति कर्ण सर्वाधिक चर्चित कृति रहा। वहीं द्रवेश सतसई एंव द्रवेश काव्य सुमन तथा द्रवेश सुक्तिकुंज सहित द्रवेश दोहे नामक कृतियां अत्याधिक सराही गई। डॉ.व्ही.एल.अवस्थी द्रवेश जी को जन्म चम्बल के अंचल में स्थित नगर जैसा जौरा जिला मुरैना के अंतर्गत ग्राम ल्हौरी का पुरा में 13 जनवरी सन् 1939 के दिन ब्राह्मण परिवार में हुआ था आपके पिता श्री पंडित हरिपाल अवस्थी जी एक विद्वान गणमान्य सामाजिक एवं जनमानस में में श्रद्धा के पात्र रहे एवं उनके द्वारा दिये गये सुसंस्कारों से पल्लवित एवं सौरभित व्यक्तित्व के धनी श्री व्ही.एल.अवस्थी द्रवेश रहे हैं। शैक्षणिक एवं सामाजिक योग्यता में मानव को अलंकृत एवं सुशोभित करती हैं उन्हीं के पर्याय डॉ.व्ही.एल अवस्थी द्रवेश रहे हैं।
आप संघर्षमय जीवन में अनेक मोड़ आते हैं। इस उक्ति के साथ प्रस्तुत है। टेड़ी मेढी संकरी गालियां,और कांटो भरे चौबारे। लाख मनाया मन को अपने,उस द्वारे मत जारे।। परिवारिक परिस्थितियों से के चक्रव्यूह में संघर्ष करते हुए डॉ.अवस्थी द्रवेश जी के जीवन भर साहित्य सृजन की माला में यथार्थवाद,भावपक्षों की प्रखरता कलापक्ष का लावण्य एवं भावों को प्रशस्त करने हेतु संकल्पित सुमन गुंजित रहे हैं। अध्यात्मिक,राजनैतिक एवं सामाजिक विषयों को लेकर पत्र पत्रिकाओं में सारगॢभत कविताओं के रूप में वैचारिक सुमन मानस पटल पर डॉ.अवस्थी द्रवेश जी ने बिखेरे।दृढ़ संकल्प के धनी श्री व्ही.एल.अवस्थी द्रवेश द्रवेश जी ने परिचर्चाओं, काव्य गोष्ठियों कवि सम्मेलनों एवं आकाशवाणी केन्द्र ग्वालियर से निरंन्तर काव्य पाठ कि या पाठ किया। अवस्थी जी की प्रकाशित कृतियों की श्रृंखला में। प्रथमत:दिव्य मूर्ति कर्ण-महाकाव्य,तत्पश्चात् -द्रवेश काव्य सुमन-कविता संग्रह। तद्परान्त-द्रवेश सुक्ति कुन्ज तथा द्रवेश सतसई द्रवेश जी के द्वारा रचित, दिव्य मूर्ति कर्ण में वीर रस के साथ-साथ यथा विवरण में शांत एवं श्रंगार रसों की व्यंजना लेखन पठन से अभिव्यक्त होती है। दिव्य मूर्ति कर्ण इस महाकाव्य में भाव पक्ष के साथ-साथ कला पक्ष भी प्रखर है। इस दिव्य मूर्ति कर्ण महाकाव्य को डॉ.अवस्थी द्रवेश जी ने 16 सर्गाे 72 सोरठे एवं 1468 दोहों से सृजित किया है। डॉ.द्रवेश जी ने इस महाकाव्य में 33 महाभारत के अमर पात्रों के दायित्व एवं सामरिक महत्वों का वर्णन किया है।जो अनुपम महारथी प्रयास हैं। आपकी साहित्य सृजन यात्रा अनवर चलती रही।अगला साहित्यिक पड़ाव द्रवेश काव्य सुमन है।डॉ. अवस्थी द्रवेश जी द्वारा रचित द्रवेश काव्य सुमन हैं। ने जीवन में स्थित मानस पटल पर मर्म स्पर्श करके पूर्ण रूपेण अभिप्रेरित एवं सशक्त विचारों की अभिदात्री को शाश्वत किया है। डॉ. अवस्थी जी का जीवन उनके विसंगतियों संघर्षों के झन्झावतों के बीच रहा, परन्तु वे साहित्य साधना एवं वैचारिक रूप से स्तम्भ में खड़े रहे। काव्य संग्रह बहु आयामी, लक्ष्य सिद्ध एवं साधना स्वरूपित हैं। द्रवेश काव्य सुमन में राष्ट्रीय भावना व वेदना, अनुभूति मार्गदर्शन वाले व्यंग्य पद्य, मुक्तक व क्षणिकाएं पठन योग्य हैं जो डॉ. अवस्थी द्रवेश जी को बहुआयामी व्यक्तित्व व विद्या का धनी दर्शाती है। डॉ. अवस्थी द्रवेश जी का तीसरा पड़ाव द्रवेश सतसई है। सतसई सृजन की परम्परा को डॉ. अवस्थी द्रवेश जी ने आगे बढ़ाया है। द्रवेश जी द्वारा रचित सतसई में सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनैतिक अध्यात्मिक विषय बिन्दु पर उल्लेख दोहों के रूप में है। इस काव्य संग्रह में असीमित उल्लेखों से ऐसा लगता है कि द्रवेश जी ने गागर में सागर भर दिया है।ऐसा मेरा मानना है।जीवन का समय गहरा संबंध है।इस महाभारत रूपी जीवन का। अनेक विषमताओं,विपरीत परिस्थितियों एवं झन्झावतों के बीच जीवन के पथ पर अग्रसर होते हुए डॉ. अवस्थी द्रवेश जी ने साहित्य एवं अन्य क्षेत्रों में जो उपलब्धियां प्राप्त की वे प्रशंसनीय हैं, एवं प्रेरणा दायक है।डॉ.द्रवेश जी ने इस कर्म भूमि में अनेक विरोधों एवं असफलताओं के बीच संघर्षरत रहते हुए भगवान अलोपी शंकर के कैलारस नगर की गोद में दिन बुधवार दिनांक 12दिसम्बर
2007को अंतिम सांस ली नैतिक सिद्धांतों अपने मानवीय आदर्शों तथा जन हितार्थ विचारो एवम कंटीले उसूलों पर चलते हुए जीवन गुजारने हर हाल में मस्त रहने वाले चम्बल अंचल की माटी के एक सच्चे सपूत ईश्वर द्वारा मार्ग दर्शाने वाली अखण्ड ज्योति में लीन हो गये । उनके जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण कायों में उनके रोपित दैनिक अखबार तथा हिन्दी भाषा की चर्चित मासिक पत्रिका दिव्य तूलिका का प्रकाशन 1999 में प्रारंभ किया था।डॉ.व्ही.एल.अवस्थी द्रवेश के साथ काव्य मंचो साहित्य संगोष्ठियों सहित सामाजिक जन चैतन्य कार्यक्रमो से जुड़े रहे है ।।
श्रद्धेय डॉ. अवस्थी द्रवेश जी को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं उन्हें शत शत नमन करता हूं।

*लेखक के विषय में*- मप्र शासन से मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं
मोबाइल नंबर 8878172777

slot gacor slot gacor slot gacor slot gacor slot gacor slot gacor info kabar slot gacor slot gacor slot gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor info kabar Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor slot gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor Slot Gacor slot gacor slot gacor slot gacor slot gacor slot gacor slot gacor https://elearning.unka.ac.id/ https://jurnal.unka.ac.id/bo/ https://jurnal.unka.ac.id/rep/ slot gacor slot gacor slot gacor slot gacor slot gacor slot gacor slot gacor slot gacor slot gacor slot gacor slot gacor Slot Gacor 2025 Slot Gacor Hari Ini slot gacor slot gacor slot gacor