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तड़क-भड़क के साए में रामलीलाएं

आम सभा, भोपाल : जिस प्रयोजन को लेकर कभी रामलीला के मंचन की शुरुआत हुई थी बदलते दौर में उसका स्वरूप तेजी के साथ बदल रहा है गांव कस्बों की बात छोड़ भी दें तो शहरों में इनके भव्य आयोजन की होड लगी रहती है जिस पर भारी-भरकम राशि खर्च की जाती है वहीं दर्शकों को सम्मोहित करने के लिए तरह तरह के जतन किए जाते हैं हकीकत तो यह है कि रामलीला के मेले जैसे माहौल में लोग भी अब रामलीला देखने कम इसकी चमकदार सेट,भारी भरकम सजावट देखने ज्यादा आते हैं ऐसे में रामलीलाओं का आयोजन और उसकी प्रासंगिकता कितनी सार्थक रह जाती है? रामलीला के बदलते रंग रूप की जानकारी दे रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार मुकेश तिवारी

कभी मशाल मिट्टी के तेल की चिमनियों लालटेन और पेट्रोमेक्स की रोशनी में खेली जाने वाली रामलीलाओ का स्वरूप आज पूरी तरह बदल चुका है चार दशक पूर्व की रामलीला देखने वाले लोग यदि आज महानगरों,बड़े शहरों में आयोजित होने वाली नामी-गिरामी रामलीलाओ को देखते हैं तो दंग रह जाते हैं उन्हें विश्वास नहीं होगा कि रामलीलाएं कितनी बदल चुकी है रामलीलाओं के दौरान रामलीला परिसर पूरी तरह मनोरंजक मेलों और आकर्षक बाजार में तब्दील हो जाते हैं जहां ज्यादातर लोग रामलीला देखने कम , सैर सपाटा और सजावट देखने ज्यादा आते हैं।

करीब 400 वर्षों से रामलीलाओं के आयोजन का उल्लेख हमें मिलता है उस वक्त आवागमन के साधन ही कहां थे फिर भी रामलीला मंडलियां तमाम कष्ट सहकर इनका आयोजन करती थी ढोल मजीरे झांझर करताल जैसे वाद्य यंत्रों व सहज संवादों के माध्यम से दर्शकों को बांधे रखा जाता था लालटेन युग में आंधी पानी आ जाने पर परेशानी बढ़ जाती थी धीरे-धीरे टेंटों का सहारा लिया जाने लगा इसके पश्चात पंडालों की शुरुआत हुई बिजली की सुलभता से सहूलियतें मिली और सजावट का दौर प्रारंभ हो गया पहले पुरुष पात्र ही महिलाओं की भूमिका करते थे लेकिन अब बड़ी रामलीलाओं में महिलाएं ही स्त्रियों की भूमिकाएं करती हैं पहले रामलीला के पात्र भी कम पढ़े लिखे होते थे उन्हें पर्दे के पीछे से संवाद सुनाए जाते थे लेकिन आज के कंप्यूटर युग में प्रत्येक पात्र संवाद को पूर्ण तौर पर रट डालता है पहले प्रचार माध्यम इतने सशक्त नहीं थे तो रामलीला कमिटियाँ पर्चे छपवाकर अपने कार्यक्रमों में के बारे में लोगों को बताती थी या फिर शहर कस्बे में घूम-घूम कर लाउडस्पीकर से प्रचार करती थी लोग भी मीलों पैदल चलकर बड़े उत्साह के साथ रामलीला के कार्यक्रमों का पता लगाने आते थे और अपनी रूचि के अनुसार रामलीला देखने जाते थे आज इतना बदलाव आ चुका है कि मीडिया के जरिए दर्शकों को जानकारी दी जाती है विभिन्न रामलीला कमेटियां बकायदा पत्रकार वार्ता आयोजित कर रामलीला के आकर्षणों के बारे में जानकारी देती हैं

आज की रामलीला को भव्यता प्रदान करने के लिए कितना धन खर्च किया जाता है उसकी कोई सीमा नहीं होती हर वर्ष रामलीला के मंचन पर लाखों रुपए रामलीला पर खर्च करने वाली श्री रामलीला समारोह समिति के पदाधिकारी विष्णु गर्ग , राधेश्याम भाकर संयोजक रमेश अग्रवाल बताते हैं कि तीन साल बाद छत्रीमंडी रामलीला की प्लैटिनम जुबली मनाई जायेगी रामलीला देखने आने वाले दर्शकों की अभिरुचि को देखते हुए हर साल श्री राम लीला समारोह समेती को कुछ न कुछ नया करना पड़ता है राधेश्याम भाकर ने बताया कि पिछले सात दशकों से भी अधिक समय से लोगो में धार्मिक भावना जागृत करने के लिए छतरी प्रांगड़ में रामलीला का मंचन हमारी समिति द्वारा कराया जा रहा है।रामलीला का वृंदावन की नामचीन रामलीला मंडली के माध्यम से पिछले 4 सालों से कराया जा रहा है । विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी वृंदावन की श्री हरि बाबा राम कृष्ण लीला मंडल के द्वारा निर्देशक स्वामी रसिक विहारी जी महाराज के निर्देशन में रामलीला का मंचन किया जा रहा है।रामलीला को आज भले ही व्यापारी अथवा पूंजीपति बढ़ावा दे रहे हैं लेकिन समूचे देश में इसके प्रचार-प्रसार में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है मथुरा और वृंदावन की कुछ मंडलियों ने सैकड़ों वर्षो पूर्व साधनों के अभाव में मथुरा वृंदावन से लोग विभिन्न जगहों पर जाते थे और छोटे-छोटे टेंटों खुले मैदानों अथवा धर्मशाला ओं के प्रांगण में रामलीला रासलीला का आयोजन करते थे इसके पश्चात दरभंगा बिहार की कुछ मंडिलियों ने इन्हें और भी विस्तार दिया। रामलीला मंडल मुरार के अध्यक्ष बताते हैं कि हमारी रामलीला के सभी पात्र स्थानी होते हैं उनका कहना था कि इस में भाग लेने वाले पात्र किसी भी तरह का पारिश्रमिक नहीं लेते हैं अधिकांश पात्र अच्छे पढ़े-लिखे हैं और नौकरियां करते हैं कमेटी की एक विशेषता यह है कि वह हर वर्ष नारद मोह मनु शतरूपा ताड़कावध परशुराम संवाद बाली वध कुंभकरण वध मेघनाथवध आदि को काफी अनूठे ढंग से प्रदर्शित करती है

रामलीला में बढ़ती नाटकीयता के बारे में पूछे जाने पर छत्री मंडी श्री राम लीला समारोह समिति के राधेश्याम भाकर कहते हैं बदलते समाज में दर्शकों की रुचि को देखकर प्रतिवर्ष कुछ सुधार किए जाते हैं लेकिन तथ्यों से कतई छेड़छाड़ नहीं की जाती पात्रों के बारे में पूछने पर उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के कहा कि सभी पात्र अपने अभिनय में जीवंतता लाने के लिए इस दौरान सात्विक रहते हैं मुरार रामलीला समिति के अध्यक्ष एक उदाहरण देते हुए बताते हैं कुछ वर्ष पूर्व सायरा नाम की एक लड़की को हमारे द्वारा सीता का किरदार निभाने की जिम्मेदारी सौंपी गई तो कुछ लोगों ने आपत्ति की कि कैसे हम सीता के रूप में इनका चरण स्पर्श करेंगे लेकिन आपत्ति के बावजूद इस पात्र को नहीं बदला गया सायरा ने सीता की भूमिका में खरा उतरने के लिए इस दौरान वह शाकाहारी रही जमीन पर सोई और मर्यादा का पूर्ण तौर पर पालन किया मोरार में पिछले 110 सालों से रामलीला का आयोजन किया जा रहा है इसी तरह ऐतिहासिक शहर ग्वालियर में आयोजित होने वाली रामलीलाएं है हर साल भव्यता और आकर्षण के नए सोपान चढ़ रही हैं

नवदुर्गा सेवा समिति द्वारा दीनदयाल नगर के से सेक्टर में भी इन दिनों राम लीला का मंचन किया जा रहा है इसके आयोजन में दीपक तोमर की अहम् भूमिका रही है

हालांकि पहले की रामलीलाएं है जहां तड़क-भड़क से दूर रहती थी लेकिन आज ध्वनि और प्रकाश के प्रभाव को रामलीलाओं में विशेष महत्व दिया जा रहा है मौजूदा दौर में तकनीकी पक्ष का भरपूर इस्तेमाल किया जा रहा है इसके मूल चरित्र पर क्या फर्क पड़ा है इसके बारे में वरिष्ठ पत्रकार डॉ केशव पांडे बेहिच बताते हैं कि भले ही रामलीलाओं में भव्यता बढ़ गई है पर पहले जैसी बात नहीं रही पहले रामलीला के घटनाक्रम को देखते हुए दर्शक दर्शक रो पड़ते थे दर्शक लोग पात्रों से अपना तारतमय जोड़कर पूरी तरह से घटनाक्रम का हिस्सा बन जाते थे पर आज लोग सजावट देखने और तफरी करने के लिए

रामलीला देखने आते हैं रामलीला देखने आए कई दर्शक मानते हैं कि अब तो सिर्फ तड़क-भड़क ही रह गई है वरिष्ट पत्रकार डॉ सुरेश सम्राट प्रतिभा रैली बताती है कि पहले रामलीला प्रारंभ होने से पूर्व ही लोगों में उसके प्रति काफी उत्साह दिखाई देने लगता था रामलीला स्थल पर मंच के सामने सबसे आगे बैठने की होड़ लगी रहती थी पात्रों को देखकर आध्यात्मिक अनुभूति होती थी लेकिन अब तो यहां आने वालों का उद्देश्य बदल गया है

शर्मनाक बात यह है कि कई मनचले लोग यहां भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आते 60 वर्षीय एक बुजुर्ग रामलीलाओं के आयोजन के उद्देश्य के बारे में बताते हैं कि बहुत से लोग अब राम के नाम पर समाज में अपना नाम ऊंचा करने की कोशिश करते हैं लोकप्रियता हासिल करने के मकसद से राजनीति से जुड़े लोग भी रामलीला कमेटी से जुड़ रहे हैं दूसरी ओर अम्बाह निवासी देवेंद्र शर्मा कहते हैं कि छतरी मैदान में होने वाली रामलीला की प्रासंगिकता आज भी बरकरार है तमाम परिवर्तनों के बावजूद रामलीला के मूल स्वरूप में परिवर्तन नहीं आया है बिहार की रहने वाले कुमार प्रशांत कहते हैं आज की रामलीलाओं में कहीं न कहीं मूल चरित्र से छेड़छाड़ की जाती है भव्यता प्रदान करना ठीक है लेकिन ज्यादा नाटकीयता लाना भी हमारी संस्कृति के लिए उचित नहीं है रामलीला कमेटियों की तारीफ करते हुए वह कहते हैं आज जब आदमी के पास किसी से बात करने तक की फुर्सत नहीं है ऐसे में एक पखवाड़े तक लगातार रामलीला के लिए प्रतिदिन समय देना प्रशंसनीय काम है फिर भी आयोजकों को अपने प्रचार से बचना चाहिए

हनुमान व भरत की भूमिका निभाने वाले दो कलाकारों से जब लेखक द्वारा पूछा गया कि वे कैसा अनुभव करते हैं इस पर दोनों कलाकारों का कहना था कि रामायण में वर्णित जिस जिस चरित्र को हम निभा रहे हैं उसमें तारतम्य जोड़ने के लिए संयमित जीवन जीना पड़ता है ऐसी भूमिका निभाने के पश्चात जीवन में परिवर्तन आता है।

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