सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्तेमाल में भले ही हमें आसानी होतीै हो लेकिन इसका हमारी सेहत के साथ-साथ पर्यावरण पर काफी बुरा असर पडता है,हर साल तकरीबन 11लाख से भी अधिक समुद्री पक्षियों और जानवरों की प्लास्टिक की वजह से मौत हो जाती हैं,
इग्लैड निवासी अलेकजैन्डर पार्केस द्धारा जीवन को आसान बनाने के लिए ईजाद की गई प्लास्टिक अब हद से ज्यादा इंसान से लेकर हमारे पर्यावरण पर दुष्प्रभाव डाल रही हैं ,यही नही आधुनिक संपन्नता की चकाचौध में तेजी से बढते प्लास्टिक के इस्तेमाल ने काफी हद तक हमारे जीवन को आरामदायक बना दिया हेैै
गौरतलब है कि जैसे ही हम अपने आस-पास नजर घुमाकर देखेगे तोखुद को प्लास्टिक से घिरा हुआ ही पाएंगे ,प्लास्टिक की वॉटर वॉटल तो जैसे हमारी जिदगी का अहम हिस्सा बन चुकी है पूरी दुनिया में हर मिनट पेयजल से भरी 10लाख प्लास्टिक बोतलें खरीदी जाती है,सिर्फ इतना ही काफी नहीं हर साल दुनिया भर में 5लाख करोड सिंगल यूज वाले प्लास्टिक बैग्स इस्तेमाल किए जाते है,इस सिगल यूज प्लास्टिक का कचरा जाता कहां है? या तो हमारी जमीन खा रही है या फिर पानी में जाकर जलीय जीवन और प्रकृति की जल आधारित संरचना को तबाह कर रहा हैं
कडवी हकीकत यह है कि मानव निर्मित होने के कारण इसे प्रकृति भी स्वीकार नही करती वैसे भी हर तरह का प्लास्टिक रिसाइकल नही हो सकता वर्तमान हालत पर नजर डाले तो यह निष्कर्ष निकलकर सामने आता है कि प्लास्टिक की बढती खपत इंसान और पर्यावरण दोनो की सेहत के लिए नुकसानदेह हैैं,
पिछले कुछ दशकों में सिगल यूज प्लास्टिक के उत्पादन और खपत में भारी इजाफा हुआ है प्लास्टिक हमारे लिए बेहद खतरनाक है इस हकीकत को तो हम काफी समय से जानते है,लेकिन तल्ख सच्चाई यह हैं कि हम प्लास्टिक का विकल्प अभी तक नहीं ढंूढ सके हैं,दरअसल में दैनिक जीवन में हम तमाम सारे ऐसे उत्पादो का उपयोग करते है जो कि सिगल यूज प्लास्टिक से निर्मित होते है इसे साधारण बोलचाल की भाषा में डिस्पोजेबल प्लास्टिक कहा जाता है, प्लास्टिक के बैग ,प्लास्टिक की छोटी बोतले ,स्ट्रॅा ,कप प्लेटस ,फूड पैकेजिग में इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक ,गिफट रैपर्स्र और काफी के डिस्पोजेबल कप्स आदि शामिल है,दरअसल में आधे से ज्यादा इस तरह के प्लास्टिक की चीजे पुनः इस्तेमाल के लायक नहीं होती इसलिए इन्हें एक बार इस्तेमाल करने के पश्चात फेक दिया जाता हैं,दरअसल में आधे से ज्यादा इस तरह के प्लास्टिक पेट्रोलियम आधारित उत्पादों से बने होते है,इन उत्पादों में मौजूद कार्सिनोजिनिक कैसर जैसी भयावह बीमारी की वजह वनते है वही ये अन्य कचरो की तरह सहजता से नष्ट न होने कि वजह से वायु प्रदूषण को बढावा देने में अहम भूमिका अदा करते है
काबिलेगौर बात यह हैं कि सिंगल यूज प्लास्टिक न सिर्फ जमीन या जल स़़़्त्रोतों को नही ही खराब कर रहा हैबल्कि समुद्री पक्षियों और जानवरों की सेहत के लिए भी यह नुकसानदायक हैं, ,एक रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति हर सप्ताह 5 ग्राम प्लास्टिक खा लेता है,और इससे कही ज्यादा वह प्रतिदिन पानी के साथ पीता हैं, प्लास्टिक पर हुए शोध मे इस तथ्य का खुलासा हुआ है कि प्लास्टिक के बोतल और उससे निर्मित अन्य सामान के उपयोग से कैसर जैसी जान लेवा बीमारी तक हो सकती है शोधकर्ता के मुताविक प्लास्टिक में पाये जाने वाले थैलेटस और अन्य केमिकल्स फेफडों ,पिताशय ,लीवर ,स्तन और किडनी से सबंधित कैसर रोग का कारण बन सकते है,
ये तथ्य भी किसी स ेअब ढका छिपा नही है कि प्लास्टिक की बोतल ,बल्टी में रखा पानी व सामान जब धूप या ताप से गर्म होते है तो इसमें मौजूद नुकसानदेह केमिकल डाइऑकिसन ,सीसा कैडमियम आदि खाघ पदार्थो में घुलकर शरीर में पहुत जाते है, उक्त पदार्थ इंसान की सेहत के लिए इतने अधिक हानिकारक है कि उसकी पाचन क्रिया को बुरी तरह बिगाड कर रख देते है जिसके कारण एसिडिटी ,पेट दर्द ,मरोड और अपच जैसी तकलीफे बढ जाती हैं प्लास्टिक में मौजूद केमिकल मोटापा ,मधुमेह ,थॉयराइड जैसी बीमारिया उत्पन्न करते है,
हैरत की बात यह है कि पिछले 20 सालों में चार प्रमुख कानून बनाए जाने के बावजूद सिंगल-यूज प्लास्टिक के उत्पादों को चलन से बाहर करने में सफलता नहीं मिली हालाकि ये बात किसी से छिपी नहीं हैं कि बांग्लादेश ने सबसे पहले आंशिक रूप से प्लास्टिक के उपयोग पर रोक लगा दी थी
आज की अत्याधुनिक जीवन शैली में प्लास्टिक का ज्यादा इस्तेमाल इंसान की सेहत से लेकर हमारे पर्यावरण के लिए भी नुकसानदायक हैहालाकि हमारे लिए यह अच्छी बात हमारे मुल्क को प्लास्टिक मुक्त बनाने के लिए प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहल करना शुरू कर दिया हैं हमें भी आने वाली पीढी को माइक्रोप्लास्टिक मुक्त करने के लिए प्लास्टिक से निर्मित चीजों का बहिष्कार करना होगा ,
लेखक के विषय में – मुकेश तिवारी स्वतंत्र पत्रकार हैं