मुंबईः
केंद्र की नई मोदी सरकार में गृहमंत्री के रूप में अमित शाह द्वारा जम्मू कश्मीर में परिसीमन के प्रस्ताव का शिवसेना ने स्वागत किया है. शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने पार्टी के मुखपत्र सामना के जरिए अमित शाह की तारीफ की है. शिवसेना ने लिखा है, ‘अमित शाह ने क्या करना तय किया है, यह स्पष्ट हो गया है. जम्मू-कश्मीर की समस्या का बड़ा ऑपरेशन करने के लिए उसे उन्होंने टेबल पर लिया है. कश्मीर घाटी में हमेशा के लिए शांति स्थापित करना ये मामला तो है ही, साथ ही कश्मीर सिर्फ हिंदुस्तान का हिस्सा है, ऐसा पाक तथा अलगाववादियों को अंतिम संदेश देना भी जरूरी है. अमित शाह उस दिशा में कदम उठा रहे हैं.’
इस लेख में आगे लिखा है, ‘फिलहाल कश्मीर में राष्ट्रपति शासन जारी है. जल्द ही अमरनाथ यात्रा शुरू होगी. अमरनाथ यात्रा शांति से संपन्न हो और उसके बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा का चुनाव कराया जाए, ऐसा माहौल दिखाई दे रहा है. अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा सीटों का ‘भूगोल’ बदलना तय किया है और जम्मू-कश्मीर का अगला मुख्यमंत्री हिंदू ही होगा, इसके लिए मतदाता क्षेत्रों का परिसीमन अर्थात डिलिमिटेशन करना तय किया है. दिल्ली में उन्होंने कश्मीर की सुरक्षा के संदर्भ में एक बैठक की. उस बैठक में कश्मीर में किए जानेवाले संभावित ‘डिलिमिटेशन’ पर भी चर्चा हुई, इस तरह की खबरें प्रकाशित हुई हैं.सरकारी स्तर पर इसकी आधिकारिक रूप से पुष्टि भले ही न हुई हो, फिर भी नए गृहमंत्री ने सरकार का इरादा अप्रत्यक्ष तरीके से स्पष्ट कर दिया है यह निश्चित ही कहा जा सकता है. ‘
मुस्लिम जनसंख्या के दबाब तले होती आई राजनीति
शिवसेना ने लिखा, ‘ जम्मू कश्मीर में परिसीमन न हो इसके लिए राज्य के स्थानीय दल 2002 से केंद्र के सिर पर बैठे हैं. जम्मू-कश्मीर विधानसभा का परिसीमन किया गया तो स्थानीय लोगों में आक्रोश बढ़ जाएगा, ऐसा भय हमेशा से दिखाया गया. जिसके आगे पहले की कांग्रेसी सरकार के केंद्रीय गृहमंत्री ने हथियार डाल दिए थे. अब देश की तस्वीर बदल चुकी है और अमित शाह ने कश्मीर मसले को प्राथमिकता दी है. सरकार फालतू और बेकार की चर्चाओं में समय नहीं गंवाएगी. सरकार निर्णय लेगी और उसे सख्ती से लागू करेगी. नए केंद्रीय गृहमंत्री की यही कार्यप्रणाली दिखाई दे रही है. अब तक मुस्लिम जनसंख्या के दबाव तले जम्मू-कश्मीर की राजनीति की जाती थी.’
जम्मू और कश्मीर इन राज्यों के हिंदू बहुल जम्मू, मुस्लिम बहुल कश्मीर और बौद्ध जनसंख्या की अधिकतावाले लद्दाख ऐसे तीन हिस्से हैं. जम्मू में 37, कश्मीर में 46 और लद्दाख में 4 विधानसभा क्षेत्र हैं. स्वाभाविक रूप से जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सर्वाधिक विधायक कश्मीर घाटी से चुनकर आते हैं. जबकि सच तो यह है कि जम्मू क्षेत्र ‘भौगोलिक’ रूप से कश्मीर की तुलना में बड़ा है, फिर भी वहां से कम विधायक चुने जाते हैं. हिंदू मुख्यमंत्री न बने और मुसलमानों को खुश रखा जाए इसी के लिए यह योजना बनाई गई हो. इसे अब रोकना होगा.
जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटाई जानी चाहिए
सामना में लिखा है, ‘कश्मीर के राजा हरि सिंह हिंदू थे लेकिन स्वतंत्रता के बाद एक बार भी जम्मू-कश्मीर का हिंदू मुख्यमंत्री नहीं बना. जैसे हिंदू के हाथ में सत्ता चली गई तो आसमान टूट पड़ेगा. इस मानसिकता को बदलने की कोशिश कभी नहीं की गई. ये अब होनेवाला होगा तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए. हालांकि ये काम आसान नहीं है. कानूनी रूप से नई जनगणना पूर्ण होने तक मतलब जून, 2026 तक जम्मू-कश्मीर के निर्वाचन क्षेत्र की पुनर्रचना नहीं की जा सकती. फिर भी मौजूदा सरकार इस तरह का इरादा दिखा रही होगी तो ये अच्छा ही है. जम्मू-कश्मीर घाटी में मुस्लिम 68.35 प्रतिशत तो हिंदू 28.45 प्रतिशत हैं. सिख भी हैं. इसका मतलब ये नहीं कि कश्मीर कुछ मुसलमानों को ‘तोहफे’ के रूप में नहीं दिया गया है. वहां के तमाम मुसलमान खुद को कश्मीरी मानते हैं, फिर भी ये सभी हिंदुस्तान के नागरिक हैं और देश के कायदे-कानून उन पर भी लागू होने चाहिए.उसके लिए जम्मू-कश्मीर से धारा-370 हटाई जानी चाहिए.’
‘भारतीय जनता पार्टी की इस तरह की भूमिका बहुत पहले से है. कश्मीर में हिंदू मुख्यमंत्री बने तथा कश्मीरी पंडितों की घरवापसी हो, ऐसा नए गृहमंत्री अमित शाह के एजेंडे में होगा तो यह उनके द्वारा हाथ में लिया गया ‘ऑपरेशन’ एक तरह का राष्ट्रीय सत्कार्य ही है.’