दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस की दिग्गज नेता शीला दीक्षित का रविवार को उनकी इच्छा के अनुसार सीएनजी पद्धति से अंतिम संस्कार किया गया. शीला दीक्षित जब मुख्यमंत्री थीं तब उन्होंने ही प्रदूषण को रोकने के लिए इस पद्धति की अवधारणा पेश की थी.
ऐसा कहा जाता है कि सीएनजी से अंतिम संस्कार में काफी कम प्रदूषण होता है और यह सस्ता भी है. हालांकि दिल्ली के अधिंकाश निवासी इसे हिंदू रीति-रिवाजों के खिलाफ बताकर अंतिम संस्कार के लिए पारंपरिक पद्धति को ही पसंद करते हैं.
‘एक व्यक्ति जिसके माता या पिता की मौत हो गई है, वह इससे इतने सदमे में होता है कि उसे पर्यावरण की रक्षा का ख्याल नहीं आता. अगर वह इको-फ्रेंडली विकल्प की तरफ जाता भी है तो रिश्तेदार उसकी आलोचना करते हुए कहते हैं कि वह मृत व्यक्ति के लिए थोड़ा अतिरिक्त पैसा खर्च करने के लिए तैयार नहीं है.’
मोक्षदा नई दिल्ली में एक गैर-लाभकारी संगठन है, जो ऐसे अंतिम संस्कार की पद्धति के लिए अभियान चला रहा है जो पर्यावरण के अनुकूल हो. निगमबोध घाट पर इस संगठन ने ही सीएनजी मशीन स्थापित की है, जहां शीला दीक्षित का अंतिम संस्कार किया गया.
परंपराओं के साथ छेड़छाड़ नहीं
IANS के अनुसार निजामुद्दीन वेस्ट में दयानंद मुक्तिधाम श्मशान के प्रमुख पुजारी दयानंद मुक्तिधाम ने कहा, “लोग परंपराओं के खिलाफ नहीं जाना चाहते हैं. वे जंगल के नुकसान को नहीं समझते हैं, क्योंकि उनके लिए धार्मिक विश्वास अधिक महत्वपूर्ण है.”
कुछ ऐसी ही स्थिति पड़ोस में स्थित गुरुग्राम की भी है, जहां नगर निकाय ने छह साल पहले 86 लाख रुपये की लागत से सीएनजी शवदाह गृह का निर्माण किया गया था, लेकिन अभी तक इसमें एक भी शव का अंतिम संस्कार नहीं हुआ.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार एमसीजी के कमिश्नर यशपाल यादव ने कहा, “लोगों ने इसका उपयोग करने की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया, यही वजह है कि अब सीएनजी सिलेंडर को अब स्टॉक में नहीं रह गया है. वे लकड़ी का उपयोग करके अपने रिश्तेदारों का दाह संस्कार करना पसंद करते हैं.”
आधी है सीएनजी की कीमत
बता दें कि सीएनजी से अंतिम संस्कार करने 500 रुपये का ही खर्च आता है, जबकि लकड़ियों से यह खर्च 1000 रुपये तक होता है. इसके अलावा जहां लकड़ी से शव जलाने में 10-12 घंटे लगते हैं, वहीं सीएनजी एक घंटे में ही शरीर को राख बना देती है.