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‘मेक इन इंडिया’ का पुनर्जीवन लॉकडाउन के बाद भारतीय ऑटोमोटिव उद्योग को सक्षम बनाने वाले मुख्य कारक होंगे: एनआरआई कंसल्टिंग रिपोर्ट

आम सभा, नई दिल्ली : दुनिया भर में नोवेल कोरोनो वायरस बीमारी का कहर जारी है और इसने मानवता के लिए काफी बड़ी चुनौती खड़ी कर दी ह,ै वैसे में इस संकट का भारत सहित विभिन्न देषों की अर्थव्यवस्था पर विनाषकारी प्रभाव स्पश्ट तौर पर दिख रहा है और आने वाले महीनों में इस प्रभाव के और बढ़ने की संभावना है।

चूंकि मोटर वाहन उद्योग का हिस्सा भारत के औद्योगिक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 50 प्रतिषत है और यह क्षेत्र प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करने वाले सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक है। इस सिलसिले में नोमुरा रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनआरआई) कंसल्टिंग एंड सॉल्युषंस इंडिया ने उन उपायों के बारे में विस्तृत अध्ययन किया है कि कैसे यह उद्योग कोरोना वायरस के प्रभावों की कुछ हद तक भरपाई करते हुए दोबारा अपना कार्यकलाप षुरू कर सकता है। हालांकि अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय निकायों और फर्मों ने इन प्रभावों के कारण उत्पन्न परिदृष्यों का बेहतर तरीके से दस्तावेजीकरण किया है लेकिन यह रिपोर्ट भारत में मोटर वाहन मूल्य श्रृंखला के चरणों में सूक्ष्म स्तर की चुनौतियों की व्याख्या करती है और वैसे उपयुक्त समाधान सुझाती है जिन्हें संचालन के लिए शामिल किया जा सकता है।

रिपोर्ट अलग-अलग कंपनियों के लिए विभिन्न चरणों के संदर्भ और कॉन्फिगरेशन के आधार पर मूल्य श्रृंखला के प्रत्येक चरण में सामने आने वाली चुनौतियों को प्रस्तुत करती है जैसे उत्पाद विकास, खरीद, विनिर्माण, वित्त, रसद, बिक्री, विपणन और आफ्टर सेल्स।

रिपोर्ट में उपर्युक्त विशयों में से प्रत्येक विशय के लिए अलग-अलग स्ट्रेटेजिक इम्पीरेटिव्स का समाधान किया गया है जो तात्कालिक फोकस एवं उसके बाद के चरणों को परिभाषित करता है, जो लॉकडाउन में ढील दिए जाने के बाद ऑटोमोटिव सेक्टर को फिर से जमने में मदद करेगा।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस संकट ने भारतीय ऑटो पार्ट निर्माताओं के लिए एक अवसर लाया है जो बदलते भू राजनीतिक दुनिया के क्रम में चीन के लिए एक विकल्प बनकर वैश्विक मूल्य श्रृंखला में अपनी भागीदारी बढ़ा सकता है और कुछ मामलों में, प्रौद्योगिकी को हासिल किया जाना संभवतः अनिवार्य होगा। दुनिया भर में वित्तीय संकट को देखते हुए, इस अवधि में देश में अधिक आर्थिक रूप से सुदृढ़ कंपनी भी फर्मों और प्रौद्योगिकियों का अधिग्रहण कर सकते हैं और इससे उन्हें ‘मेक इन इंडिया’ की भावना को आगे बढ़ाते हुए प्रभावी विकल्प के रूप में स्थिति बनाने में मदद मिलेगी।

एनआरआई (नोमुरा रिसर्च इंस्टीट्यूट) कंसल्टिंग एंड सॉल्यूशंस के बिजनेस परफॉरमेंस इम्प्रूवमेंट (ऑटो, इंजीनियरिंग एंड लॉजिस्टिक्स) के समूह प्रमुख एवं पार्टनर आशिम शर्मा ने कहा, ‘‘स्वच्छता और कीटाणुशोधन (डिसइंफेक्षन) की उभरती जरूरतों, स्थानीयकरण, अधिक स्वचालनी, डिजिटलीकरण और वित क्षेत्र में नवाचारों तथा सरकार द्वारा आर्थिक प्रोत्साहन वक्त की जरूरत है और यह संकट में मार्ग प्रषस्त करेगा। फैक्टरियों में कार्य षुरू करने के लिए अस्पतालों को चलाने की तरह के सुरक्षित कार्यप्रणाली के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश और नीति, माल की अंतरराज्यीय आवाजाही, ब्याज दरों में कमी, पर्याप्त अधिस्थगन अवधि, राजकोषीय और गैर राजकोषीय उपाय जैसे कि सब्सिडी और स्क्रैपेज नीति के माध्यम से मांग उत्पन्न करना तथा ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को काफी बड़े पैमाने पर आगे बढ़ाने जैसे कदम लॉकडाउन के बाद के चरण में भारतीय ऑटोमोटिव क्षेत्र के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होंगे।’’

हालाँकि, रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि सभी उपायों के बावजूद, कोरोना वायरस का संक्रमण अभी भी फैल सकता है और इसे नियंत्रित एवं सीमित करने के लिए आपूर्तिकर्ता स्थल से लेकर सामान लाने वाले ट्रक से लेकर इन जगहों पर काम करने वाले लोगों तथा वाहनों के लाए जाने तथा इन वाहनों को बेचने वाले सेल्स एजेंटों तक की सही तरीके से ट्रैसेबिलिटी अत्यंत आवष्यक होगी। इसलिए संपर्क में आने वाले लोगों के डिजिटल हस्ताक्षर लेने की प्रौद्योगिकी का उपयोग तथा पूरी मूल्य श्रंखला के दरम्यान इसे कायम रखना जरूरी होगा ताकि संक्रमण फैलने की स्थिति में तत्काल एवं प्रभावी नियंत्रण किया जा सके।

अंतिम तौर पर उत्पन्न होने वाले परिदृश्य से परे यह रिपोर्ट उन नई स्थितियों को भी दर्षाती है जिसके लिए संकट के खत्म होने के बाद ऑटोमोटिव उद्योग को तैयार रहना चाहिए।

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