नई दिल्लीः
राजस्थान विधानसभा की 200 सीटों पर सात दिसंबर को मतदान होंगे. इसको लेकर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व में सत्ताधारी भाजपा और सचिन पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस पूरे दमखम से मैदान में हैं. दोनों प्रमुख दल जातीय समीकरण साधने में व्यस्त हैं. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के लिए सबसे बड़ा सर दर्द भाजपा के पारंपरिक वोटर राजपुत समाज की उनसे नाराजगी है. राज्य की आबादी में करीब 12 फीसदी राजपूत हैं और वे दो दर्जन से अधिक सीटों पर जीत-हार तय करने की ताकत रखते हैं. ऐसे में सत्ता विरोधी लहर (एंटी इनकंबेंसी) और राजपूत समाज की नाराजगी वसुंधरा राजे के लिए भारी पड़ती दिख रही है.
राजस्थान में लंबे समय से ही राजपूत समाज पहले जनसंघ और बाद में भाजपा का कोर वोटर रहा है. लेकिन 2016 में वसुंधरा राजे और राजपूतों के बीच तल्खी बढ़ गई. हाल ही में पूर्व केंद्रीय मंत्री और राजपूत नेता जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह के भाजपा छोड़ कांग्रेस में शामिल होने के बाद यह स्थिति और बिगड़ गई.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पार्टी के नेता वसुंधरा सरकार से राजपूत समाज की नाराजगी के पीछे कई कारण बताते हैं. इसमें राजमहल की जमीन, फिल्म पद्मावत विवाद, गैंगस्टर आनंदपाल सिंह का एनकाउंटर और वसुंधरा की ओर से राजपूत नेता गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेशाध्यक्ष बनाने का विरोध, कुछ ऐसे मसले हैं जिस कारण राजपूत समाज वसुंधरा से नाराज है. प्रदेश भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि ये कुछ ऐसे मसले हैं जिससे हुए नुकसान की भरपाई फिलहाल तो नहीं की जा सकती. उक्त नेता ने कहा कि राजपूत समाज पारंपरिक रूप से भाजपा का वोटर रहा है. प्रदेश की राजनीति में राजपूत नेता और पूर्व उप राष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत का व्यापक योगदान रहा है. वह राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री रहे.
राजमहल विवाद
वसुंधरा राजे की सरकार में राजपूत समाज से तीन कैबिनेट और एक राज्यमंत्री हैं. वसुंधरा सरकार से राजपूतों की नाराजगी जयपुर राजघराने की पद्मिनी देवी के विरोध प्रदर्शन से शुरू हुई हुई थी. दरअसल, जयपुर में अतिरक्रमण के खिलाफ अभियान में सरकार ने राजमहल के मुख्य द्वार को सील कर दिया था. इसके खिलाफ ही पद्मिनी देवी सड़क पर उतरी थीं. पद्मिनी देवी भाजपा विधायक दीया कुमारी की मां हैं. दीया कुमारी पिछले चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुईं थीं. राजपूत समाज के तमाम लोगों ने राजमहल के द्वार को बंद किए जाने को राजपरिवार का अपमान माना था.
गैंगस्टर आनंदपाल एनकाउंटर
इसके बाद रवाना राजपूत समुदाय के गैंगस्टर आनंदपाल के एनकाउंटर ने इस समुदाय की नाराजगी और बढ़ा दी. वैसे राजपूत समुदाय खुद रवाना राजपूत को निचली जाति के मानते हैं लेकिन इस एनकाउंटर ने उन्हें एकजुट होने का मौका दिया. राजपूतों ने इस एनकाउंटर की सीबीआई जांच की मांग की. काफी मशक्कत के बाद सरकार ने सीबीआई जांच की मांग मान ली, लेकिन जब उसने सीबीआई को केस सौंपा तो उसके साथ आनंदपाल के खिलाफ दर्ज 115 मामलों को भी सीबीआई को सौंप दिया गया. इससे राजपुत समाज के साथ वसुंधरा की तल्खी और बढ़ गई.
फिल्म पद्मावत
इसके बाद फिल्म पद्मावत का मसला आया. राजपूत समाज के लोगों ने पूरे देश में इस फिल्म का विरोध किया. वे राजस्थान में इस फिल्म की शूटिंग की इजाजत देने को लेकर वसुंधरा राजे से नाराज थे. रिलीज के वक्त फिल्म पर बैन से वे संतुष्ट नहीं हो पाए.
गजेंद्र सिंह का प्रदेशाध्यक्ष न बनना
वसुंधरा की ओर से गजेंद्र शेखावत को प्रदेशाध्यक्ष नहीं बनने देने को भी राजपूतों ने अपने खिलाफ मुख्यमंत्री की चाल समझी. भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व शेखावत को प्रदेशाध्यक्ष बनाना चाहता था लेकिन वसुंधरा के विरोध के कारण ऐसा नहीं हो पाया. वसुंधरा, शेखावत के विरोध पर अड़ गईं थीं और उन्होंने राज्यसभा सांसद व ओबीसी नेता मदनलाल सैनी को प्रदेशाध्यक्ष बनवाया.
मानवेंद्र सिंह प्रकरण
वसुंधरा से राजपूतों की नाराजगी का ताजा उदाहरण मानवेंद्र सिंह के कांग्रेस में शामिल होना है. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि जसवंत सिंह को अब भी राजपूत समाज का बड़ा और सम्मानित नेता माना जाता है. मानवेंद्र सिंह के भाजपा छोड़ने से जसंवत सिंह के साथ पिछले चुनाव में किए गए व्यवहार की याद ताजा हो जाएगी.