आम सभा, गोरखपुर, मनीष सिंह। बीते सोमवार को राहुल गांधी ने अपने किये गये चुनावी वादे में कहा कि 25 करोड़ देशवासियो को 72 ह एक जार रूपये प्रतिवर्ष देकर गरीबी पर आखिरी प्रहार करेगी कांग्रेस। इतने बड़े वादे का लाभ प्रत्येक लाभार्थी तक पहुंच पाना आम जनता के मन में कई सवाल खड़े कर रहा है। हलांकि 72 हजार सलाना देने राहुल गांधी द्वारा किया गया चुनावी वादा आज हर नागरिक में चर्चा का विषय बन गया है। हलाकि अभी चुनाव और उसके परिणाम आने में समय है तब किसकी सरकार बनती है यह तब की बात है।
लेकिन अगर जो भी सरकार बनेगी और इस वादे को लागू करती है तो यह बड़ी टेड़ी खीर वाली प्रक्रिया साबित होगी। बताते चले कि निजि संस्थानो पर काम करने वाले कर्मचारियो के साथ वेतन दिये जाने की प्रक्रिया में काफी बेईमानी की जाती है। चाहे वह किराना, मेडीकल, गृह उद्योग, हथकरघा, पेट्रोलियम, बीज या कोई भी व्यापारिक प्रतिष्ठान हो जहां पर अपने कर्मचारियो को उचित वेतन दिया जाने में काफी घालमेल किया जाता रहा है।
सभी कर्मचारियो को बिना एकाउण्ट में दिये जाने के नगद भुगतान देने के साथ-साथ श्रम विभाग की आंखो में धूल झोंक कर विभाग को ज्यादा तनख्वाह दिखायी जाती है। इतना ही नही इन कर्मचारियो पर मनमाने नियमो का पालन कराते हुये रोज अपने ही बनाये नियमो से खुद को लाभ पहुंचाने के लिये नियमो के नाम पर अत्याचार करने के काम किया जाता है। बात यही पर नही खत्म होती राहुल गांधी के 72 हजार रूपये का 25 करोड़ लोगो तक यानि 20 प्रतिशत आबादी को लाभ पहुंचाने का वादा औंधे मुंह गिरते दिखायी दे रहा है।
अगर लागू होता है तो सरकार के आगे बड़ी चुनौती सही लाभार्थी तक योजना पहुंचाना होगा। निजि प्रतिष्ठानो द्वारा कर्मचारियो के वेतन के सही आकड़े किसी के पास नही है। निजि अस्पताल, मिष्ठान, फैक्ट्री, डेरी आदि जगहो पर कर्मचारियो को 3 से लेकर 10 हजार रूपये वेतन देकर उनसे 12 से 20 हजार रूपये तक कार्य लेकर श्रम विभाग के जरिये गरीबो के हक पर डाका डाला जा रहा है। साथ ही योजनाओ का लाभ उठाने में 12 हजार से अधिक महीना कमाने वाले भी इस योजना का लाभ लेने के लिये एड़ी चोटी का जोर लगायेगे और तब देश को नयी समस्या से दो चार होना पड़ेगा।
सरकार कैसे चुनेगी लाभार्थी और उस लाइन में लगे मौका परस्त इसके लिये कांग्रेस ने कोई भी गणित नही लगायी है। कुल मिलाकर वर्तमान समय में भाजपा को इस 72 हजार के राहुल के वादे की काट तो ढूढ़ंनी ही होगी। इसी प्रकार का वादा जो समाजवादी पार्टी के द्वारा 2012 के चुनाव में किया गया था यानि बेरोजगारी भत्ता जो महज एक वर्ष में ही औंधे मुंह गिरकर समाप्त हो गया। कहीं वही इतिहास फिर से ना दोहरा जाये इस बात को लेकर जनता भी काफी सजग है क्योकि है तो चुनावी वादा ही …. बुनकर कारीगर तथा मजदूर मिस्त्रियों की आय की कोई सीमा नही है तो मिलों कारखानो, फैक्ट्रियों और निजी अस्पतालों में भी काफी बड़ी संख्या में लोग काम करते हैं।
इनको वेतन दिये जाने में काफी अनियमितताएं किये जाने से लाभार्थियों की पहचान होना मुश्किल है। इनके मालिक इनका वेतन मान बढ़ चढक़र दिखाते हैं। अगर राहुल ने जो वादा किया है सरकार कोई भी बने अगर ये 72 हजार देने का फार्मूला लागू भी होता है तो इस वेतनमान की अनियमितताओं के चलते करोड़ो लोग वंचित भी रह सकते हैं।