राफेल डील मामले में केंद्र सरकार को झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि राफेल डील में गोपनीय दस्तावेजों की गलत तरीके से ली गई फोटोकापी के आधार पर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई होगी. इसके उलट मोदी सरकार ने यह कहकर पुनर्विचार याचिका का विरोध किया था कि जिन दस्तावेजों को याचिका का आधार बनाया जा रहा है, वे भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 123 के तहत सबूत नहीं माने जा सकते. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की इस आपत्ति पर अपना फैसला 14 मार्च को सुरक्षित रख लिया था, लेकिन 10 अप्रैल को कोर्ट ने कहा कि इन दस्तावेजों को सुनवाई में शामिल कर सकते हैं.
14 दिसंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में राफेल डील की प्रक्रिया में गड़बड़ी से इनकार किया था. अदालत ने उस वक्त डील को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज कर दी थीं. पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने दस्तावेजों के आधार पर इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिकाएं दायर की थीं.
केंद्र की दलीलः दस्तावेज आरटीआई के दायरे से बाहर
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि कोई भी इन दस्तावेजों को बिना संबंधित विभाग की इजाजत के कोर्ट में पेश नहीं कर सकता. ये दस्तावेज ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत सुरक्षित हैं. सेक्शन 8(1)(ए) के तहत आरटीआई के दायरे से भी बाहर हैं. तब, चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा था कि जब हम केंद्र की आपत्ति पर फैसला करने के बाद ही पुनर्विचार याचिकाओं के दूसरे पहलुओं पर सोचेंगे.
प्रशांत भूषण ने जताई थी केंद्र सरकार की दलील पर आपत्ति
प्रशांत भूषण ने केंद्र की आपत्ति को सही नहीं बताया है. उन्होंने कहा कि केंद्र की दलील दुर्भावनापूर्ण है. सरकार ऐसे दस्तावेजों पर विशेषाधिकार का दावा नहीं कर सकती, जो पहले ही सबके सामने आ चुके हों. धारा 123 में वही दस्तावेज सुरक्षित हैं, जिनका प्रकाशन ना हो, वे सामने न आए हो. लेकिन, ये दस्तावेज पब्लिक डोमेन में है. इस मामले में डिफेंस के दस्तोवज पहले से लोगों के सामने है. केंद्र सरकार ने अब तक मामले में केस दर्ज नहीं किया.
जब सरकार ने सीएजी रिपोर्ट पेश की, तो वह प्रिविलेज्ड दस्तावेज कैसेः प्रशांत भूषण
प्रशांत भूषण ने कहा कि सीएजी रिपोर्ट सरकार ने पेश किया है. उसमें डिफेंस डील से संबंधित जानकारी है. सरकार ने खुद सीएजी रिपोर्ट को कोर्ट में पेश किया. ऐसे में उनकी ओर से पेश दस्तावेज को प्रिविलेज्ड दस्तावेज कैसे कह सकते हैं. सरकार खुद ही अपने लोगों को ऐसी जानकारी लीक करती रही है. रक्षा मंत्री की फाइल नोटिंग भी लीक की गई. 2जी मामले और कोल ब्लॉक में भी दस्तावेज पब्लिक डोमेन में आए थे. अगर दस्तावेज केस के लिए जरूरी है तो यह बात बेकार है कि उसे कैसे और कहां से लाया गया है.