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पायलट को मेरे बेटे की हार की जिम्मेदारी लेनी चाहिए: अशोक गहलोत

जयपुर
लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद राजस्थान कांग्रेस में कुछ भी ठीक नहीं है। पार्टी की भीतरी लड़ाई उस समय और आगे बढ़ गई, जब अशोक गहलोत ने कहा कि पार्टी प्रदेश कमिटी के चीफ और सरकार में उनके डेप्युटी सचिन पायलट को उनके बेटे वैभव गहलोत की जोधपुर से हार की भी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ बातचीत में सचिन पायलट ने इस पर कोई कॉमेंट करने से इनकार कर दिया, लेकिन गहलोत के इस बयान पर आश्चर्य जताया।

टीवी न्यूज चैनल एबीपी के साथ इंटरव्यू में गहलोत से पूछा गया कि क्या यह सच है कि जोधपुर से आपके बेटे का नाम पायलट ने ही सुझाया था? गहलोत ने कहा, ‘यदि पायलट ने ऐसा किया था तो यह अच्छी बात है। यह हम दोनों के बीच मतभेद की खबरों को खारिज करती है।’

इस बयान में उन्होंने कहा, ‘पायलट साहब ने यह भी कहा था कि वह बड़े अंतर से जीतेगा, क्योंकि हमारे वहां 6 विधायक हैं, और हमारा चुनाव अभियान बढ़िया था। तो मुझे लगता है कि उन्हें वैभव की हार की जिम्मेदारी तो लेनी चाहिए। जोधपुर में पार्टी की हार का पूरा पोस्टमॉर्टम होगा कि हम वह सीट क्यों नहीं जीत सके।’

जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें वाकई लगता है कि पायलट को हार की जिम्मेदारी लेनी चाहिए? सीएम ने कहा, ‘उन्होंने कहा कि हम जोधपुर जीत रहे थे (जोधपुर से), इसलिए उन्होंने जोधपुर से टिकट लिया। लेकिन हम सभी 25 सीट हार गए। इसलिए यदि कोई कहता है कि सीएम या पीसीसी चीफ को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। मेरा मानना है कि यह एक सामूहिक जिम्मेदारी है।’

अपने डेप्युटी के खिलाफ खुलकर पहली बार तब सामने आया, जब पायलट समर्थकों ने सार्वजनिक तौर पर यह कहना शुरू कर दिया कि राज्य में कांग्रेस की हार का कारण सीएम के काम करने का तरीका है।

इस इंटरव्यू में गहलोत ने कहा कि हर किसी को हार की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। उन्होंने कहा, ‘यदि कोई जीतता है सब श्रेय मांगते हैं, लेकिन यदि कोई हारता तो कोई जिम्मेदारी नहीं लेता। चुनाव सामूहिक नेतृत्व में पूरे हुए हैं।’

केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने वैभव गहलोत को करीब 4 लाख वोटों के अंतर से हराया है। यहां तक कि गहलोत की विधानसभा सीट सरदारपुरा से भी वैभव 19000 वोटों से पीछे रहे, जबकि गहलोत 1998 से वहां से जीतते आ रहे हैं। गहलोत के बेटे का इस सीट से हारना इसलिए भी चौंकाने वाला है, क्योंकि गहलोत वहां से 5 बार चुनकर संसद पहुंच चुके हैं।

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