नई दिल्ली:
लोकसभा चुनाव के बीच में ही उत्तर प्रदेश में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओम प्रकाश राजभर के एक बार फिर बगावती तेवर सामने आये हैं. इस बार तो इन्होने गठबंधन से अलग पूर्वांचल की 25 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर दिया है. उनकी इस घोषणा के बाद बीजेपी सकते में हैं वह अपने नफ़ा नुकसान का भी आकलन कर रही है. एक यह भी कयास लगाया जा रहा है कि नाराज़ ओम प्रकाश को बीजेपी आखिरी तक मना लेगी क्योंकि पूर्वांचल में बीजेपी के लिये अपना दल के बाद भासपा यानी ओम प्रकाश राजभर की पार्टी बड़े मायने रखती है. इन्ही दो पार्टियों की कश्ती पर सवार होकर बीजेपी न सिर्फ 2014 में उत्तर प्रदेश में 73 सीट के रिकार्ड आंकड़े तक पहुंची थी बल्कि 2017 के विधानसभा में सूबे की सत्ता तक पहुंचने में भी कामयाब हुई थी. विधानसभा और लोकसभा के चुनाव में राजभरों के वोटों के प्रतिशत से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. राजभर बिरादरी का पूर्वांचल में बड़ा वोट बैंक है. 2012 के चुनावों में बलिया, गाज़ीपुर, मऊ, वाराणसी में इनकी ताकत दिखी थी. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओमप्रकाश ने गाज़ीपुर की ज़हूराबाद सीट पर 49600 वोट हासिल किए थे.
पार्टी को बलिया के फेफना में 42000, रसडॉ में 26000, सिकंदरपुर में 40000 बेल्थरा रोड में 38000 वोट मिले. गाज़ीपुर, आज़मगढ़ , वाराणसी में भी पार्टी उम्मीदवारों ने 18 से 30 हज़ार वोट बटोर. लेकिन कोई सीट जीतन में कामयाब नहीं हो पाई थी. लेकिन इन सीटों पर मिले वोट बताते हैं कि यह समीकरणों को किस तरह से बिगाड़ सकते हैं. अब इन वोटों के जरिये सत्ता का मजा चखने के लिये ओम प्रकाश राजभर को किसी मज़बूत कंधे की ज़रूरत थी और भाजपा को भी. लिहाजा 2014 के गठबंधन ने ओम प्रकाश राजभर और बीजेपी दोनों को सत्ता तक पहुंचाया. इसके बाद ओम प्रकाश राजभर की पार्टी से 2017 के विधानसभा में भी गठबंधन हुआ. बीजेपी ने भासप को 8 सीटें दी थी. जिनमें 4 सीटों पर जीत मिली और इसके साथ ही सुहेल देव भारतीय समाज पार्टी का पहली बार विधानसभा में खाता भी खुला और ओम प्रकाश कैबिनेट मंत्री बने.