नई दिल्ली
मॉनसून इस साल समय से पहले देशभर में छाया और अब इसके विदाई भी समय से पहले शुरू कर दी है. मौसम विभाग के मुताबिक, दक्षिण-पश्चिम मानसून 14 सितंबर, 2025 को पश्चिमी राजस्थान के कुछ हिस्सों से वापस चला गया है, जबकि इसकी सामान्य तिथि 17 सितंबर है. वहीं, अगले 2-3 दिनों के दौरान राजस्थान के कुछ और हिस्सों तथा पंजाब और गुजरात के कुछ हिस्सों से दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की वापसी के लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं.
भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक, मॉनसून आमतौर पर 1 जून तक केरल में प्रवेश करता है और 8 जुलाई तक पूरे देश को कवर कर लेता है. फिर ये 17 सितंबर के आसपास उत्तर-पश्चिम भारत से पीछे हटना शुरू कर देता है और 15 अक्टूबर तक पूरी तरह से वापस चला जाता है. आईएमडी का पूर्वानुमान था कि 15 सितंबर के आसपास पश्चिमी राजस्थान के कुछ हिस्सों से दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की वापसी के लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं. हालांकि ये वापसी 14 सितंबर से ही शुरू हो गई.
बता दें कि इस साल मॉनसून ने सामान्य तिथि 8 जुलाई से नौ दिन पहले ही पूरे देश को कवर कर लिया था. 2020 के बाद से इस साल मॉनसून ने सबसे जल्दी पूरे देश को कवर कर लिया था, इससे पहले, 2020 में 26 जून तक ऐसा हुआ था. वहीं, इस बार केरल से मॉनसून का आगमन भी 24 मई को हुआ था, जो 2009 के बाद से भारतीय मुख्य भूमि पर इसका सबसे पहला आगमन था, जब यह 23 मई को मॉनसून पहुंचा था.
देश में मॉनसून सीजन में अब तक 836.2 मिमी बारिश हुई है, जबकि सामान्य बारिश 778.6 मिमी होती है, जो 7 प्रतिशत अधिक है. मई में आईएमडी ने पूर्वानुमान लगाया था कि भारत में जून-सितंबर मॉनसून सीजन के दौरान 87 सेमी की दीर्घकालिक औसत वर्षा का 106 प्रतिशत प्राप्त होने की संभावना है. इस 50-वर्षीय औसत के 96 से 104 प्रतिशत के बीच वर्षा को 'सामान्य' माना जाता है.
कैसे तय होती है मॉनसून की वापसी?
दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की वापसी कुछ मानदंडों पर तय होती है.
पश्चिमी राजस्थान के ऊपर समुद्र तल से 1.5 किमी ऊपर एक प्रतिचक्रवाती परिसंचरण का विकास.
लगातार 5 दिनों के दौरान क्षेत्र में शून्य बारिश.
मध्य क्षोभमंडल तक के क्षेत्र में वायुमंडल की नमी की मात्रा में कमी.
दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की वापसी रेखा 30.5°N /73.5°E, श्री गंगानगर, नागौर, जोधपुर, बाड़मेर और 25.5°N /70°E से होकर गुजरती है. मॉनसून भारत के कृषि क्षेत्र के लिए बेहद अहम है, जो लगभग 42 प्रतिशत आबादी की आजीविका का आधार है और सकल घरेलू उत्पाद में 18.2 प्रतिशत का योगदान देता है. यह पेयजल और बिजली उत्पादन के लिए आवश्यक जलाशयों को पुनः भरने में भी खास भूमिका निभाता है.