नई दिल्ली:
उत्तर प्रदेश में सोनिया गांधी की रायबरेली सीट ही कांग्रेस के लिए सबसे सुरक्षित मानी जाती रही है. इस बार हुए लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने यहां बहुत खराब प्रदर्शन करते हुए भी 1 लाख के अंतर से बीजेपी प्रत्याशी दिनेश सिंह को हराया है. लेकिन पिछली बार की तुलना में कांग्रेस की जीत का अंतर घट गया है. दरअसल कांग्रेस की हालत यहां पर 2017 में हुई विधानसभा चुनाव से ही खराब होती दिख रही थी. लोकसभा सीट में पांच विधानसभा सीटें हैं जिनमें से दो कांग्रेस, दो बीजेपी और एक समाजवादी पार्टी के पास थी. बीजेपी रायबरेली में सोनिया के गढ़ को ध्वस्त करना चाहती है. इसके पहले उसने गांधी परिवार के बहुत करीबी माने जाने वाले कांग्रेस के एमएलए दिनेश सिंह को बीजेपी ज्वाइन करवाई थी. दिनेश सिंह के छोटे भाई अवधेश सिंह रायबरेली की हरचंदपुर सीट से कांग्रेस विधायक हैं. उनके बड़े भाई के बीजेपी में जाने के बाद वे भी बीजेपी के साथ ही माने जा रहे हैं.
लेकिन क्षेत्र की इन सभी राजनीतिक उठापटक के बाद भी कांग्रेस के पास एक तुरुप का पत्ता था ऐसा था जो जिले के सभी बाहुबलियों पर अकेले पड़ा था. वह थे रायबरेली सदर से पूर्व विधायक और बाहुबली नेता अखिलेश सिंह. मौजूदा सदर विधायक अदिति सिंह उन्हीं की बेटी हैं. अखिलेश सिंह रायबरेली सदर से अजेय विधायक रहे हैं. उनको हराने के लिए कांग्रेस ने एड़ी-चोटी का जोर कई बार लगाया लेकिन सफल नही हो पाई. इसके बाद अखिलेश सिंह को कांग्रेस में शामिल कराया गया. कांग्रेस को इसका फायदा मिला और लोकसभा चुनाव में अखिलेश सिंह के रसूख के चलते रायबरेली में सदर से कांग्रेस के एकतरफा वोटें मिलती थीं जो सोनिया गांधी की जीत का अंतर बहुत ज्यादा बढ़ा देती थीं. लेकिन कुछ दिन पहले ही बीमारी के चलते अखिलेश सिंह का निधन हो गया.
अखिलेश सिंह के रहने पर जिले में उनके प्रतिद्वंदी अदिति सिंह पर हावी होने की कोशिश करते दिखे. कुछ दिन पहले ही रायबरेली लखनऊ रोड पर अदिति सिंह पर एक कथित हमले की भी घटना हुई. इसकी गूंज दिल्ली तक सुनाई दी और इस घटना का प्रियंका गांधी ने भी विरोध किया. इस घटना के बाद अदिति सिंह को भी समझ आ गया कि जिले के बदलते समीकरणों के बीच यहां की राजनीति को दिल्ली के नेताओं को भरोसे नहीं थामा जा सकता है.
अदिति सिंह जिनको राजनीति में लाने का सबसे बड़ा हाथ प्रियंका गांधी का माना जाता है, उन्हीं से खुली बगावत का ऐलान कर दिया. 2 अक्टूबर यानी गांधी जयंती के दिन लखनऊ में प्रियंका गांधी की अगुवाई में कांग्रेस का मार्च था जिसको लेकर कांग्रेस ने ह्विप भी जारी किया था. वहीं दूसरी ओर योगी सरकार की ओर से 36 घंटे तक चलने वाला विधानसभा सत्र बुलाया गया जिसका समूचे विपक्ष ने बायकॉट किया. लेकिन अदिति सिंह ने अपनी पार्टी की ह्विप को नजरंदाज कर विधानसभा सत्र में हिस्सा लिया. जब इस पर उनसे सवाल किया गया तो सीधा कोई जवाब देने के बजाए उन्होंने कहा, ‘मुझे जो ठीक लगा वो मैंने किया. पार्टी का क्या निर्णय होगा मुझे नहीं मालूम. मैं पढ़ी-लिखी युवा एमएलए हूं. विकास का मुद्दा बड़ा मुद्दा है. यही गांधी जी को सच्ची श्रद्धांजलि है.’
मौजूदा समय रायबरेली की 5 विधानसभा सीटों में से दो कांग्रेस, दो बीजेपी और एक समाजवादी पार्टी के पास थी. लेकिन दिनेश सिंह के बीजेपी में जाने के बाद से उनके भाई जो कि हरचंदपुर से विधायक हैं वो भी एक तरह से बीजेपी में ही माने जाते हैं. यानी चार विधायक पहले से ही बीजेपी के खाते में हैं. अदिति सिंह के जाने पर विधायकों की संख्या 5 हो जाएगी. इस लोकसभा चुनाव में जीत का अंतर देखते हुए ऐसा लगता है कि अदिति सिंह का बीजेपी में जाना कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा.