दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पार्टी के बीच गठबंधन की सभी उम्मीदें अब लगभग खत्म ही हो गई हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बयान देकर इसकी पुष्टि की. काफी लंबे समय से AAP की ओर से गठबंधन की कोशिशें की जा रही थीं लेकिन कांग्रेस नकार रही थी. दोनों के बीच गठबंधन ना होने के कई कारण हैं, जिनमें पार्टियों में मतभेद, दोनों दलों में मेल ना खाना जैसे मुद्दे हैं. दिल्ली में आखिर AAP-कांग्रेस के बीच बात क्यों नहीं बनीं, इन बातों से समझें…
1. कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना
दिल्ली की 7 सीटों पर कांग्रेस अगर AAP से गठबंधन की चर्चा करती है तो आम आदमी पार्टी दिल्ली के साथ-साथ गोवा, पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ की भी बात कर सकती है. इसी से कांग्रेस को दिक्कत है. कांग्रेस आम आदमी पार्टी से सिर्फ दिल्ली में गठबंधन करना चाहती थी अन्य प्रदेशों में नहीं.
2. पूर्ण राज्य के दर्जे पर अड़ी बात
AAP पहले से ही दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने को लेकर ना सिर्फ जनता को वादा कर चुकी है बल्कि अपना प्रचार-प्रसार भी उसी के इर्द-गिर्द कर रही है. कांग्रेस का कहना है कि यह मसला पेचीदा है, इस संदर्भ में पहले भी विचार मंथन हो चुका है और जल्दबाजी में जनता को हल्का वादा नहीं किया जा सकता. लेकिन आम आदमी पार्टी इससे पीछे हटने को तैयार नहीं है.
3. पब्लिक में बयानबाजी
कांग्रेस को इस बात से भी आपत्ति है कि अरविंद केजरीवाल गठबंधन को लेकर मीडिया में लगातार बयानबाजी कर रहे हैं. एक तरफ जहां कांग्रेस से बातचीत चल रही है तो दूसरी तरफ सार्वजनिक बयानों में वह कांग्रेस के माथे ही देरी का ठीकरा फोड़ के सहानुभूति बटोर रहे हैं.
कांग्रेस के एक विश्वसनीय सूत्र ने बताया कि लोकसभा चुनाव में पार्टी का सिर्फ एक मकसद है भाजपा को हराना, लेकिन आम आदमी पार्टी के हाव भाव से उसकी मंशा साफ नहीं है. यह साफ नहीं कि उसका दोस्त और दुश्मन कौन है. ऐसे में कांग्रेस के लिए आम आदमी पार्टी पर भरोसा करना मुश्किल हो रहा है.
5. सात सीटों पर कांग्रेस की नज़र
एक तरफ गठबंधन की बात चल रही है, तो वहीं कांग्रेस उधर अपनी तैयारी में जुटी है. सातों सीटों पर उम्मीदवारों को लेकर नाम तय किए जा रहे हैं. अपने कैंपेन के तहत कांग्रेस 3 अप्रैल को 70 विधायकों के खिलाफ धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज कराने की तैयारी में है, इसी के साथ राजधानी में त्रिकोणीय लड़ाई होने की संभावना है.