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‘कारु, सारु, केसीआरु…’ तेलंगाना का ‘बाहुबली’ जिसे 10 साल पहले सबने खत्‍म मान लिया था

“काल्वाकुंतला चंद्रशेखर राव जुझारु योद्धा हैं. बागी हैं. उनके बारे में कुछ भी पहले से कहा नहीं जा सकता. वे रिस्क उठाना पसंद करते हैं. 1985 में कांग्रेस छोड़ टीडीपी में शामिल होना उनके लिए जोखिम भरा था. उससे भी ज्यादा जोखिम था जब उन्होंने शानदार दौर से गुजर रहे चंद्रबाबू नायडू के विरोध में झंडा उठा लिया. वाइएसआर का विरोध भी कठिन था. शायद सबसे ज्यादा कठिन था, अपने निर्धारित वक्त से नौ महीना पहले विधानसभा को भंग करने का फैसला. सबके बावजूद उन्होंने हर चुनौती का सामना किया. आखिर में विजेता के रूप में सामने आए.”

केसीआर के नाम से लोकप्रिय के. चंद्रशेखर राव के लिए 1999 से 2009 तक का दौर बहुत खराब रहा. 1999 में वह तेलुगुदेशम पार्टी के खास नेताओं में थे. उसके टिकट पर चुनाव जीते. उम्मीद थी कि उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया जाएगा. उससे पहले वह श्रम मंत्री रह चुके थे. तब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री नारा चंद्रबाबू नायडू ने उम्मीदों पर पानी फेरते हुए उन्हें राज्य विधानसभा का डिप्टी स्पीकर बना दिया.

केसीआर ने पद स्वीकार तो कर लिया, लेकिन साल भर में ही बदला लेने के लिए उस टीडीपी को छोड़ दिया, जिससे वह चार बार से जीतते रहे थे. उन्होंने तेलंगाना राष्ट्र समिति का गठन कर अलग तेलंगाना राज्य के अभियान को खड़ा किया. 2004 में उन्हें सफलता मिली. उन्होंने लोकसभा की चार सीटों पर जीत हासिल की.

केसीआर केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई में बनी यूपीए-1 सरकार में श्रम विभाग के कैबिनट मंत्री बनाए गए. तेलंगाना को अलग राज्य बनाने कांग्रेस की हीलाहवाली से खफा हो कर उन्होंने संसद की सदस्यता छोड़ दी. उपचुनाव में उतर गए.

2009 में एनडीए में शामिल हुए 
2009 में वे अकेले लड़े. नतीजों से एक दिन पहले वे आडवाणी के नेतृत्व वाले एनडीए में शामिल हुए लेकिन अगले ही दिन नतीजे कुछ और ही रहे. उन्हें संसद में सिर्फ दो ही सीटें मिली. कांग्रेस 206 सीटों के साथ सत्ता में वापस आ गई. आंध्र प्रदेश में डॉ. वाईएसआर फिर ताकतवर हो गए.

उनकी इस हालत पर टिप्पणी करते हुए दिल्ली के एक एंकर ने टीवी पर कहा कि अब तेलंगाना और केसीआर दोनों सपने खत्म हो गए हैं. उस एंकर की टिप्पणी का जवाब देते हुए अमेरिका में पढ़ी लिखी और न्यूजर्सी में लेक्चरर की नौकरी छोड़ कर तेलंगाना के लिए संघर्ष करने आई उनकी बेटी के कविता ने कहा-“हम खत्म नहीं हुए हैं. तेलंगाना को हकीकत बनाकर ही दम लेंगे. मेरे पिता जुझारू हैं. उनको कमतर मत आंकिए.”

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केसीआर को लगा यही सही समय है
कुछ ही महीनों बाद मुख्यमंत्री वाईएसआर की एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मृत्यु हो गई. कांग्रेस में कलह शुरु हो गई. वक्त का इंतजार कर रहे केसीआर को लगा यही सही समय है. उन्होंने फिर से तेलंगाना का संघर्ष शुरू कर दिया.

उनके आमरण अनशन से केंद्र को मजबूर होकर आंध्र को बांटना पड़ा. उस वक्त के केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम, जो पहले केसीआर को दिवास्वप्न देखने वाला कहकर खारिज कर चुके थे, उन्हें नार्थ ब्लॉक के अपने कार्यालय में आधी रात को घोषणा करनी पड़ी. केसीआर पहला राउंड जीत चुके थे.

तेलंगाना के पहले मुख्यमंत्री बने
अपने वादों को हकीकत बनाने के लिए केसीआर को अगले चार साल मेहनत करनी पड़ी. उनकी युवा बेटी ने भी नई दिल्ली में पर्दे के पीछे से राज्य के लिए बहुत कुछ किया. उनकी मेहनत रंग लाई. यूपीए -2 ने संसद में तेलंगाना बिल पारित कर दिया. जैसा अपेक्षा थी वह 2 जून 2014 को तेलंगाना राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने.

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