अख़बार लिखता है कि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने मामले की जांच कर रही आंतरिक समिति से कहा है कि वो आरोप लगाने वाली महिला की अनुपस्थिति में जांच न करें क्योंकि इससे सुप्रीम कोर्ट की बदनामी होगी.
रिपोर्ट के मुताबिक़ जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस नरीमन ने मामले की जांच कर रही समिति से मिले और जांच को लेकर अपनी चिंताएं जताईं.
इससे पहले जस्टिस चंद्रचूड़ ने 2 मई को जांच समिति को एक पत्र भी लिखा था कि अगर आरोप लगाने वाली महिला की गैर मौजूदगी में जांच चलती रही तो इससे न्यायपालिका की विश्वसनीयता को नुक़सान पहुंचेगा.
यौन उत्पीड़न की शिक़ायत करने वाली महिला ने ख़ुद को जांच से अलग कर लिया है. उन्होंने सुनवाई में शामिल होने से भी इनकार किया है.
सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा चीफ़ जस्टिस रंजन गोगई पर उनकी पूर्व जूनियर सहयोगी ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. जस्टिस गोगोई ने इस आरोप से इनकार करते हुए इसे स्वतंत्र न्यायपालिका के लिए एक ‘ख़तरा’ बताया था.
वहीं, वकील उत्सव बैंस ने दावा किया था यौन उत्पीड़न के ज़रिए न्यायपालिका के ख़िलाफ़ ‘साज़िश’ रची जा रही है. बैंस ने दावा किया था कि महिला का केस लड़ने और इस बारे में प्रेस कॉन्फ़्रेंस करने के लिए उन्हें ‘रिश्वत’ की पेशकश की गई थी.
फ़िलहाल सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय इस मामले की विभागीय जांच कर रही है जिसमें जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बैनर्जी शामिल हैं.
इस मामलों में याचिका दायर करने वालों ने इंडियन नेगोसिएशन टीम (INT) के सदस्यों द्वारा ज़ाहिर की गई गंभीर चिंताओं का हवाला दिया था. केंद्र सरकार ने याचिकाकर्ताओं की चिंताओं और आरोपों को ख़ारिज किया और अपने दावों के समर्थन में पूर्व रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर के एक बयान का ज़िक्र किया.
मनोहर पर्रिकर ने कहा था, “प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा किसी सौदे की प्रगति पर नज़र रखना, सौदे में दख़लअंदाज़ी करना नहीं है.”
रफ़ाल सौदे में दख़लअंदाज़ी के आरोप बात रक्षा मंत्रालय के लीक हुए काग़जात के आधार पर लगाए गए हैं.