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जीवन-चिंतन : चिंतन और योजना, परिश्रम, संकल्प और निरंतरता सफल जीवन के प्रमुख अवयव

जिंदगी का मूल ही निरंतर संघर्ष श्रम संकल्प और प्रगति है। सकारात्मक उद्देश्य को लेकर किया गया श्रम सदैव श्रेष्ठ परिणाम देता है। श्रम और संघर्ष का कोई विकल्प ही नहीं है। निरंतर श्रम करना उच्च मनोबल बनाए रखना और सफलता की कामना और पवित्र महत्वाकांक्षा सफल मनुष्य के सच्चे मित्र होते हैं। जीवन है चलने का नाम, गति का नाम ही जीवन है। सभी समाज एवं राष्ट्र की संस्कृतियों ने यह माना है कि मनुष्य और जानवरों के बीच विभेद करने वाला प्रमुख कारक मस्तिष्क है, और मस्तिष्क ही मनुष्य को सृजनात्मक शक्ति प्रदान करता है। मनुष्य के रचनात्मक विचार नयापन लाते हैं उसे पूर्व काल से पृथक करते हुए प्रगति के पथ प्रदर्शक बनते हैं। इसे ही नवप्रवर्तन माना जाता है। नावप्रवर्तन और कुछ नहीं बल्कि समाज की परंपरागत और प्रगतिशील मानसिकता के बीच एक बड़ी लाइन खींचना है। इसीलिए यह माना जाता है कि नवप्रवर्तन समाज मैं 3% नवाचार का निर्धारित है, शेष 97 प्रतिशत परंपरावादी विचारों के लिए है। पुराने समय से ही आर्थिक समृद्धि में नवप्रवर्तन की भूमिका को स्वीकार किया गया है चाहे वह मनुष्य के खाद्य संग्राहक से खाद्य उत्पादक में परिवर्तन हो या फिर 18वीं सदी में यूरोप की वाणिज्य क्रांति का औद्योगिक क्रांति में बदलना इन सभी में नवप्रवर्तन ने प्रेरक का काम किया है। हम चौथी क्रांति की तरफ बढ़ रहे हैं, इसलिए कहा जाता है कि विचारों को कभी सुसुप्त होने या मरने ना दिया जाए। हो सकता है आपके विचार करोड़ों डॉलर के हो। वर्तमान अर्थव्यवस्था में समृद्धि के इंजन माने जाने वाले सनराइज उद्योग, सॉफ्टवेयर, खाद्य संस्करण, इलेक्ट्रॉनिक्स, रोबोटिक के विकास के पीछे भी नवप्रवर्तन का हाथ है। इसी के आधार पर नगरों को स्मार्ट नगरों में बदला जा रहा है। नवप्रवर्तन या नवाचार से मैं सिर्फ मानव जीवन की परेशानियों को न्यूनतम किया है, बल्कि मानव जीवन को आसान और सुखमय भी बनाया जा रहा है। नवप्रवर्तन और मस्तिष्क की खोज के कारण ही जापान में 6.5 रेक्टर का भूकंप सामान्य माना जाता है, जबकि भारत में यह तबाही ला सकता है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में पेनिसिलिन जैसी प्रतिजैविक (एंटीबायोटिक) के अविष्कार ने रोगों की संभावना को कम कर दिया एवं स्वास्थ्य प्रणाली के भावी विकास को एक गति प्रदान की है। जेनेरिक औषधि, रोबोटिक सर्जरी, जीन एडिटिंग जैसी प्रक्रिया स्वास्थ्य सुधार हेतु एक मजबूत आधार मानी जाती है। सामाजिक विकास आर्थिक समन्वयक और न्याय प्रणाली में पारदर्शिता लाने का प्रयास नवप्रवर्तन के योगदान से ही आया है। सोशल मीडिया जैसे नवीन प्लेटफार्म ने व्यक्ति की अभिव्यक्ति के अधिकार को स्वतंत्र किया है। भारतीय अर्थव्यवस्था के ग्रामीण से आधुनिक रूपांतरण में कृषी क्षेत्र से भारी उद्योगों पर बल देने में किसानों के देश को सॉफ्टवेयर उद्योग का सिरमौर बनाने में नवप्रवर्तन का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। भारतीय कृषि में भी आधुनिकीकरण और पाश्चात्य उपकरण का प्रादुर्भाव भी नवीन नवाचार के कारण संभव हुआ है। भारतीय राज्य को लोक कल्याणकारी राज्य से लोगों के सशक्तिकरण करने वाले राज्य में बदलने की नवप्रवर्तन की भूमिका अत्यंत सराहनीय है। इसके कारण भार मानी जाने वाली महिलाएं अब भार ढोने वाली की भूमिका में आ चुकी हैं। इसी तरह न्यायिक क्षेत्र में जनहित याचिका की अवधारणा ने न्याय की अवधारणा को सर्वांगीण बनाने में सहायता प्रदान की है। यह अलग बात है कि केवल नवप्रवर्तन को ही एकमात्र निर्धारक कारक के रूप में नहीं माना जा सकता क्योंकि नवीन विचारों को स्वीकार करना और आगे बढ़ना बहुत हद तक समाज पर निर्भर करता है। पश्चिमी देशों में नवीन विचारों को जगह देने के कारण वहां पुनर्जागरण आया है। हमें समाज को नव परिवर्तन की तरफ जागरूक करने की आवश्यकता होगी और नवप्रवर्तन में ज्यादा से ज्यादा आर्थिक मदद देकर उस और और ज्यादा विचार-विमर्श कर नीति बनाने की आवश्यकता होगी। इस तरह हमें महात्मा बुद्ध के कथन अनुसार अपने या दूसरों के विचारों नवप्रवर्तनों को तर्क बुद्धि पर देखे जाने की जरूरत है, और फिर आगे बढ़ने का प्रयास किया जाना चाहिए।

*-संजीव ठाकुर*
स्तंभकार , चिंतक, लेखक, रायपुर छत्तीसगढ़
मो- 9009415415

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