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जबलपुर के गन कैरिज फैक्ट्री को एक बार फिर भारतीय सेना के लिए लाइट फिल्ड गन बनाने की आर्डर मिला

जबलपुर
 आयुध क्षेत्र की प्रमुख फैक्ट्रियों में शुमार गन कैरिज फैक्ट्री (जीसीएफ) में बनी लाइट फील्ड गन (एलएफजी) की गूंज फिर सीमा पर सुनाई पड़ेगी। गन का तय समय पर उत्पादन के बाद परीक्षण लांग प्रूफ रेंज में होगा। भारतीय सेना ने करीब एक दशक बाद एलएफजी को लेकर अपनी रुचि दिखाई है। जिसके बाद 18 गन का उत्पादन जीसीएफ करने जा रहा है। महत्वपूर्ण है कि पूर्व में जीसीएफ में बनने वाली लाइट फील्ड गन का उत्पादन नया आर्डर नहीं मिलने के कारण लगभग बंद कर दिया गया था। आखिरी लाइट फील्ड गन फैक्ट्री ने 2014-15 में बनाई थी।

17 से 19 किमी की दूरी तक गोला दागने वाली यह गन कभी फैक्ट्री का मुख्य उत्पादों में शामिल है। एलएफजी के साथ ही साथ निर्माणी ने सारंग और धनुष तोप पर भी फोकस किया है। लेकिन भार में हल्की एलएफजी को सेना की हरी झंडी मिली तो जीसीएफ के पास तीन अलग तरह के गन बनाने पर तेजी से कार्य शुरू हुआ और इस वित्त वर्ष के शेष माहों में लक्ष्य तक पहुंचने दक्ष टीम जुट गई।

यह गन 17 से 19 किमी की दूरी तक गोला दागने में सक्षम

प्रति मिनट चार राउंड फायर किए जा सकते हैं

इस बैरल फायरिंग पोर्ट पर 360 डिग्री घूम सकता है

इसकी क्षमता 100 राउंड की है

करगिल युद्ध में भी इस गन का इस्तेमाल

एडवांस वैपन एंड इक्विपमेंट कंपनी की एक इकाई जीसीएफ की 105 एमएम की इस गन की अहमियत इसलिए भी है, क्योंकि यह हल्के वजन की होती है। इसे हेलीकाप्टर के माध्यम से सुदूर सीमाई क्षेत्र, दुर्गम स्थानों में आसानी से पहुंचाया जा सकता है। करगिल युद्ध में भी इस गन का इस्तेमाल हुआ था। सामान्य तौर पर वह सालाना 50 गन का उत्पादन करती रही है।

वजन घटाकर बनाया गया लाइट फील्ड गन

पहले यह गन मार्क-1 व मार्क-2 नाम से विकसित हुई, बाद में इसे एलएफजी नाम दिया गया। वजन में कम होने की वजह से इसका परिवहन आसान होता रहा है। इसकी मारक क्षमता 17 से 19 किलोमीटर तक है। पहले इसे इंडियन फील्ड गन भी कहा जाता था। लेकिन इसका वजन अधिक होने के कारण इस्तेमाल करना थोड़ा कठिन था। इसे घटाने पर शोध हुआ। इसकी टेल यानी पीछे के हिस्से को मॉडिफाई किया गया। इसी पर गन मूव करती थी। उसमें लोहे के वजनदार टुकड़ों की जगह पाइप लगाया गया। ऐसे में यह हल्की हो गई और इस तरह बाद में इसका नाम लाइट फील्ड गन हो गया।

एक साल में 72 गन बनाने का रिकार्ड

माना जा रहा है कि रक्षा उत्पादन समय पर पूरा हुआ तो बढ़कर टारगेट मिलने की संभावना प्रबल होगी। अत: निर्माण का पूरा फोकस एलएफजी को आकार देने पर है। बता दें कि जीसीएफ के नाम एक साल में 72 गन बनाने का रिकार्ड है। इस संबंध में जीसीएफ के कार्यकारी निदेशक राजीव गुप्ता ने बताया कि अपनी खूबियों के कारण लाइट फील्ड गन की उपयोगिता महत्वपूर्ण है। अभी हम 18 गन पर कार्य कर रहे हैं और दक्ष टीम की मदद से मांग को ध्यान में तय समय पर उत्पादन पूरा हो सकेगा।

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