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ईरान-इजरायल में बढ़ा तनाव तो .. भारत को भी लगेगा झटका, होगा 1.21 लाख करोड़ का नुकसान!

नई दिल्ली
ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव के कारण होर्मुज जलडमरूमध्य (Strait of Hormuz) में स्थिति गंभीर हो गई है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ICRA ने चेतावनी दी है कि अगर इस रास्ते से तेल और गैस की सप्लाई में रुकावट आती है तो भारत की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ सकता है। इससे तेल आयात बिल और चालू खाता घाटा (CAD) बढ़ने की आशंका है। साथ ही इससे प्राइवेट सेक्टर का निवेश भी रुक सकता है। 13 जून को इजरायल ने ईरान के सैन्य और ऊर्जा ठिकानों पर हमले किए थे। इसके बाद तेल की कीमतें बढ़ गई थीं। ICRA का अनुमान है कि अगर कच्चे तेल की कीमत 10 डॉलर प्रति बैरल बढ़ती है तो भारत का तेल आयात बिल 13-14 अरब डॉलर तक बढ़ सकता है। सीएडी भी बढ़कर जीडीपी का 0.3% होने के आसार हैं। तेल के ऊंची दाम देश में पेट्रोल, डीजल और अन्य वस्तुओं की कीमतों को बढ़ाएंगे। इससे आम आदमी पर सीधा वित्तीय बोझ पड़ेगा और महंगाई दर बढ़ेगी।

होर्मुज जलडमरूमध्य बहुत ही महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग है। दुनिया का लगभग 20% तेल और एलएनजी इसी रास्ते से जाता है। ICRA के अनुसार, भारत के कच्चे तेल (क्रूड) के आयात का 45-50% और प्राकृतिक गैस के आयात का 60% इसी रास्ते से होता है। रिपोर्ट में कहा गया है, 'इराक, सऊदी अरब, कुवैत और यूएई से आने वाला कच्चा तेल, जो होर्मुज से होकर गुजरता है, भारत के कुल कच्चे तेल के आयात का लगभग 45-50% है। भारत की ओर से आयात की जाने वाली प्राकृतिक गैस का लगभग 60% SoH से होकर गुजरता है।'

दिल्ली में निर्यातक से लेकर कोटा मंडियों में खड़े किसान, सब परेशान हैं. युद्ध के चलते न केवल चावल का निर्यात अटका है, बल्कि धान के दाम में भी तेज गिरावट आई है. राजस्थान के कोटा मंडी में इन दिनों तीन करोड़ बोरी से अधिक धान आ चुका है, लेकिन खरीदार नहीं हैं. मध्य प्रदेश के हाड़ौती समेत कई जिलों से आए किसान यहां मंडियों में अपनी उपज बेचने के लिए पहुंचे हैं, लेकिन उन्हें उचित दाम नहीं मिल रहे. पहले जहां धान का रेट 3900 रुपये क्विंटल था, अब वही घटकर 3200 रुपये तक आ गया है.

14,000 टन चावल रास्ते में फंसा

दिल्ली के चावल कारोबारियों का कहना है कि ईरान-इज़रायल युद्ध ने चावल एक्सपोर्ट चेन को बुरी तरह प्रभावित किया है. साल 2024 में भारत ने करीब 52 लाख टन बासमती चावल ईरान को भेजा था, जिसकी वैल्यू लगभग 6374 करोड़ रुपये थी. लेकिन इस साल हालात बिल्कुल अलग हैं. युद्ध के चलते करीब 14,000 टन चावल रास्ते में फंसा हुआ है और पेमेंट भी रुका पड़ा है.

    भारत हर साल 50 लाख टन सेला चावल ईरान को भेजता है
    इसमें से 80% चावल मध्य प्रदेश के हाड़ौती क्षेत्र से जाता है
    युद्ध के चलते 3900 रुपये क्विंटल धान अब 3200 पर आ गया है
    2023-24 में भारत ने:10 लाख टन चावल सऊदी अरब को
    8 लाख टन इराक को और 6 लाख टन बासमती चावल ईरान को भेजा गया

सऊदी और इराक को भेजे जाने वाले चावल पर भी असर 

लेकिन इस बार हालात खराब है. दिल्ली के एक्सपोर्टर्स बताते हैं कि इस बार युद्ध के कारण सऊदी अरब और इराक को भेजा जाने वाला चावल भी प्रभावित हुआ है. इससे छोटे व्यापारी और किसान दोनों प्रभावित हो रहे हैं. जिन किसानों को पहले 3600 रुपये क्विंटल का भाव मिल रहा था, उन्हें अब उसी धान के लिए 500 रुपये तक कम मिल रहे हैं. भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक चावल व्यापार में भारत की हिस्सेदारी करीब 40% है. इसमें से 60% चावल खाड़ी देशों को जाता है. ऐसे में अगर युद्ध लंबा चला, तो इसका असर पूरे कृषि-व्यापार पर पड़ेगा.

तेल सप्लाई पर संकट, भारत की जेब पर असर

क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ICRA ने चेतावनी दी है कि अगर होर्मुज से तेल और गैस की आपूर्ति बाधित हुई, तो भारत को 13 से 14 अरब डॉलर तक का अतिरिक्त आयात बिल झेलना पड़ सकता है. CAD में 0.3% की बढ़ोतरी और महंगाई में उछाल का खतरा मंडरा रहा है.

भारत अपना 45-50% कच्चा तेल और 60% प्राकृतिक गैस इसी मार्ग से आयात करता है. यहां किसी भी तरह की रुकावट का मतलब है— तेल महंगा, ट्रांसपोर्ट महंगा, और आम उपभोक्ता पर बोझ.
ईरान पर हमले के बाद उछलीं कीमतें

13 जून को इजरायल द्वारा ईरान के ऊर्जा और सैन्य ठिकानों पर किए गए हमलों के बाद से कच्चे तेल की कीमतें 64-65 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 74-75 डॉलर तक पहुंच गई हैं. ICRA का अनुमान है कि अगर यह टकराव बढ़ता है तो कच्चे तेल की कीमतें और ऊपर जा सकती हैं, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा.
निवेश पर क्या होगा असर?

ICRA की रिपोर्ट कहती है कि तेल के दाम लगातार ऊंचे रहे तो प्राइवेट सेक्टर का निवेश प्रभावित हो सकता है, जिससे ग्रोथ धीमी हो सकती है. हालांकि, अभी तक 2025-26 के लिए GDP ग्रोथ का अनुमान 6.2% पर बरकरार है, लेकिन लंबे समय तक तनाव रहा तो समीकरण बदल सकते हैं.
उत्पादन बनाम रिफाइनिंग: कौन होगा फायदेमंद?

तेल उत्पादन करने वाली कंपनियों को कीमतों में वृद्धि से फायदा जरूर होगा, लेकिन रिफाइनरियों की मुनाफाखोरी पर बुरा असर पड़ सकता है. LPG पर सब्सिडी भी कट सकती है, जिससे आम घरों का बजट और बिगड़ सकता है.
क्या है विकल्प?

होर्मुज के विकल्प के तौर पर सऊदी अरब और UAE की पाइपलाइनों की अतिरिक्त क्षमता महज 2.53.0 mbd ही है, जो पूरी तरह पर्याप्त नहीं मानी जा रही. रोजाना 2 करोड़ बैरल तेल इसी जलडमरूमध्य से गुजरता है, जिसमें से 80% से अधिक एशिया के लिए होता है. भारत, चीन, जापान और साउथ कोरिया इस मांग के बड़े हिस्सेदार हैं.
ईरान की तेल आपूर्ति पर संकट

ईरान लगभग 3.3 mbd तेल का उत्पादन करता है, जिसमें से 1.82.0 mbd का निर्यात होता है. सैन्य हमलों के चलते रिफाइनरियों और ऊर्जा स्टोरेज हब पर नुकसान की खबरें सामने आ रही हैं. अगर ईरान से आपूर्ति ठप हुई तो इसका असर पूरी दुनिया की तेल उपलब्धता और कीमतों पर सीधा दिखेगा.

सेला चावल पर 12 रुपये का नुकसान

दिल्ली के निर्यातक सचिन कहते है, युद्ध शुरू होने के बाद से हम परेशान है. सेला चावल जो मुख्यत ईरान भेजा जाता है वह पहले 71 रुपये प्रति किलो था जो युद्ध के कारण कम होकर 59 रुपए हो गया है. यानी प्रतिकिलो लगभग 12 रुपये का नुकसान. ये कोई छोटा मोटा नहीं बल्कि बहुत बड़ा नुकसान है. उनका कहना है कि सरकार को इसमें निर्यातकों की मदद करनी चाहिए. 

युद्ध होने से ईरान के साथ ही खाड़ी देशों में जाने वाले चावल पर असर पड़ रहा है. चावल लेकर जहाज बीच समुद्र में खड़े है. युद्ध के कारण जहाजों को इंश्योरेंस देने वाली कंपनियां भी पीछे हट गई है. 

पेमेंट सिस्टम पूरी तरह जाम

कोटा मंडी के व्यापारी विकास चंद जैन कहते है कि हम हर साल हाड़ौती से हजारों टन चावल ईरान, इराक और दुबई भेजते हैं. इस बार युद्ध के कारण वहां की पोर्ट्स और पेमेंट सिस्टम पूरी तरह जाम है. हम सामान भेज नहीं पा रहे. मुंद्रा और कांडला जैसे बंदरगाहों पर हाड़ौती और एमपी से भेजा गया चावल ट्रकों और कंटेनरों में लोड होकर खड़ा है, लेकिन पोर्ट से आगे नहीं बढ़ पा रहा. कई मालवाहक जहाज ईरान और इज़रायल के समुद्री क्षेत्र से दूरी बनाकर चल रहे हैं, जिससे कंटेनरों की शॉर्टेज भी बन गई है.

दिल्ली से लेकर कोटा तक, व्यापारी परेशान

चावल मिल मालिकों कहना है कि फैक्ट्री में तैयार माल रखने की जगह नहीं बची. एक्सपोर्ट बंद होने से काम रोकना पड़ सकता है. हम किसानों से खरीदी भी बंद करेंगे तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगेगा. वैश्विक व्यापार के इस युग में किसी भी दो देशों के बीच युद्ध का प्रभाव सीमित नहीं रहता. दिल्ली से लेकर कोटा तक, हर व्यापारी और किसान की नजर अब भारत सरकार पर है कि वह इस संकट से निपटने के लिए क्या कदम उठाती है.
 

संघर्ष बढ़ा तो कीमतें और बढ़ेंगी

तेल की कीमतें 64-65 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 74-75 डॉलर प्रति बैरल हो गई हैं। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि लोगों को डर था कि तेल की सप्लाई में रुकावट आ सकती है। ICRA का कहना है कि अगर यह संघर्ष और बढ़ता है तो कच्चे तेल की कीमतें और भी बढ़ सकती हैं। एजेंसी ने कहा, 'संघर्ष में लगातार बढ़ोतरी से कच्चे तेल की कीमतों के हमारे अनुमानों में वृद्धि हो सकती है। नतीजतन, शुद्ध तेल आयात और चालू खाता घाटा भी बढ़ सकता है।'

ICRA का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2025-26 में कच्चे तेल की औसत कीमत 70-80 डॉलर प्रति बैरल रहेगी। लेकिन, इस क्षेत्र में लंबे समय तक संघर्ष चलता है तो कीमतें और भी बढ़ सकती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, 'अगर कीमत मौजूदा स्तर पर बनी रहती है तो इससे भारत की GDP विकास दर के अनुमान में कोई खास बदलाव नहीं होगा, जो फिलहाल 6.2% है। हालांकि, मौजूदा स्तर से लगातार बढ़ोतरी होने पर इंडिया इंक. की प्रॉफिटेबिलिटी पर असर पड़ेगा। अनिश्चितता बढ़ने से प्राइवेट सेक्टर का निवेश और भी रुक सकता है।'

तेल उत्पादन करने वाली कंपनियों को तेल की कीमतें बढ़ने से फायदा होगा। लेकिन, तेल रिफाइनरी कंपनियों के लिए स्थिति थोड़ी अलग होगी। ICRA ने कहा, 'कच्चे तेल और गैस की कीमतों में बढ़ोतरी से तेल उत्पादन करने वाली कंपनियों को फायदा होगा। लेकिन, तेल रिफाइनरी कंपनियों के मुनाफे पर बुरा असर पड़ेगा।' उन्होंने यह भी कहा कि कीमतें बढ़ने पर LPG पर मिलने वाली सब्सिडी भी कम हो सकती है।

होर्मुज से बचने के लिए बहुत कम हैं विकल्प

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि होर्मुज जलडमरूमध्य से बचने के लिए बहुत कम विकल्प हैं। सऊदी अरब और यूएई के पास पाइपलाइन हैं। इनमें 2.5-3.0 mbd की अतिरिक्त क्षमता है। लेकिन, संघर्ष बढ़ता है तो भी सप्लाई में कमी हो सकती है।

होर्मुज जलडमरूमध्य से रोजाना 2 करोड़ बैरल तेल गुजरता है। इसमें से 80% से अधिक तेल एशिया में इस्तेमाल होता है। भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया मिलकर इस तेल की मांग का लगभग 65% हिस्सा बनाते हैं।

ईरान के तेल ढांचे को कितना नुकसान हुआ है, यह अभी तक पूरी तरह से पता नहीं चल पाया है। लेकिन, रिफाइनरियों, स्टोरेज हब और ऊर्जा संपत्तियों पर हमले की खबरें आई हैं। ईरान लगभग 3.3 mbd तेल का उत्पादन करता है। इसमें से 1.8-2.0 mbd का निर्यात किया जाता है। इसका मतलब है कि अगर सप्लाई में रुकावट आती है तो दुनिया भर में तेल की कमी हो सकती है।

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