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मै मध्यप्रदेश की भावना डेहरिया माउंट एवेरेस्ट से

भावना डेहरिया ने शेयर किया माउंट एवेरेस्ट से अपना अनुभव

आम सभा, काठमांडू (नेपाल): 2 अप्रैल 2019 को मैं भोपाल से रवाना हुई। मेरे परिवार और मेरे कॉलेज के कई सारे लोग मुझे स्टेशन छोड़ने आये और मेरे मिशन के लिए बधाई दी। 3 अप्रैल को मेरी दिल्ली से काठमांडू की फ्लाइट थी। जाते ही मैंने नेपाल का एक लोकल नंबर लिया जिससे मैं अपने लोगो से बात कर सकूं। एवेरेस्ट पर उपयोग होने वाले इंस्ट्रूमेंट मैने एक महीने पहले ही काठमांडू आ कर परचेस कर लिए थे ताकि आखरी समय में कुछ कमी या साइज का इशू न हो। 6 अप्रैल को हमे लूकला (2840 मी) के लिए निकलना था पर वेदर खराब होने के चलते उस दिन की सारी फ्लाइट कैंसिल हो गयी थी। इसके कारण हमे हेलीकाप्टर से जाना पड़ा। लूकला पहुचते ही हमने फाकडिंग की 2610 मी का ट्रैक किया। 7 अप्रैल को हम नामचे बाजार पहुचे जो कि 3440 मी की ऊँचाई पर हैं।

8 अप्रैल तक हम जलवायु-अनुकूलन के लिए यहीं रुके। 9 अप्रैल को हमने खुमजंग जो कि ग्रीन वैली के नाम से भी जाना जाता है का 3780 मी का ट्रैक किया। 10 अप्रैल को टेंगबोचे मोनेस्ट्री 3860 मी पहुचे और यहां पहली बार हमे एवेरेस्ट दिखाई दिया जिसने हमारा जोश दुगना कर दिया। सबसे अच्छी बात यह भी रही कि मेरे शुद्ध शाकाहारी होने के बाद भी मुझे मेरी पसंद का खाना मिलता रहा। 11 अप्रैल को डिंगबोचे 4410 मी फिर 12 अप्रैल को लोबुचे 4910 मी पहुँच कर फिर जलवायु-अनुकूलन के लिए एक दिन यहां रुके। 14 अप्रैल को हम एवेरेस्ट बेस कैम्प के लिए रवाना हुए जो कि 5364 मी की ऊँचाई पर है। 15 अप्रैल से 16 मई तक हमने कैम्प 1, कैम्प 2 और कैम्प 3 के प्रैक्टिस राउंड किये। 18 मई की सुबह फाइनल समिट के लिए मैने एवेरेस्ट बेस कैम्प से कैम्प 2 की 6500 मी की चढ़ाई शुरू की।

एक दिन कैम्प 2 में रेस्ट करने के बाद 20 मई को हम कैम्प 3 की 7400 मी की चढ़ाई ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ की। कैम्प 3 पहुचते ही हमें वेदर अच्छा मिला और हम 21 मई की रात समिट को निकल गए। 22 मई 2019 की सुबह मै 8848 मी की दुनिया के सबसे ऊंचे शिखर माउंट एवेरेस्ट पर पहुच गयी। एवेरेट के शिखर पर पहुचना और फिर उसे व्यक्त करना शब्दो में बयान नही किया जा सकता। यह धरती के सबसे उँचे शिखर पर पहुचने की सोच से कई ज्यादा परे है। यह सिर्फ प्रदेश में पहली महिला बनने से कई ज्यादा महिला सशक्तिकरण और हिम्मत को बढ़ावा देना है। अगर मैं मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव की मध्यम वर्ग परिवार की लड़की माउंट एवेरेस्ट फतेह कर सकती है तो मेरा संदेश देश की लड़कियो को है की किसी भी क्षेत्र में अगर वो दृढ़ निश्चय करे तो जीतना संभव है। हार न मानने की इच्छा और मेरी पसंद ही मुझे इस मुकाम पर ले कर आई। में तामिया जिला छिंदवाड़ा की रहने वाली हूँ और मेरे पिताजी सरकारी स्कूल में शिक्षक है। मेरी माँ सोशल वर्कर हैं। जिस तरह मेरे माता पिताजी ने मुझ पर विश्वास किया और डॉक्टर इंजीनियर से हट कर फिजिकल एजुकेशन की पढ़ाई और इससे रिलेटेड टूर और ट्रैकिंग के लिए हमेशा साथ दिया इसी तरह बाकी पेरेंट्स भी अगर अपने बच्चो की इच्छा को समझेंगे और उनका साथ देंगे तो देश मे आने वाले समय मे अलग अलग क्षेत्र में काफी बच्चे अपने पेरेंट्स और देश का नाम रोशन करेंगे।

शिखर की चढ़ाई के वक्त मेरा ऑक्सीजन सिलेंडर का रेगुलेटर लीक करने लगा था। मै डेढ़ घंटे लीकेज वाली जगह को पकड़ कर बैठी रही। हमारे पास एक्स्ट्रा रेगुलेटर नही था। शेरपा के अनुसार हमे वापस कैम्प 4 लौटना पड़ता। यह कठिन समय था और में वापस नही लौटना चाहती थी। शेरपा के काफी कहने पर भी में नही मानी और मेरी जिद्द के आगे शेरपा मान गया और मुझे अपना रेगुलेटर दिया और मुझे दूसरे ग्रुप के साथ आगे जाने को कहा। सिलेंडर भी इतने समय मे खाली होने लगा था। मैंने इस सिचुएशन में अपने ऑक्सीजन सिलेंडर का वाल्व आधा ही ओपन रखा जिससे में शिखर तक पहुँच पाई इसी बीच मेरा शेरपा भी आ गया। उन्होंने रेगुलेटर ठीक कर लिया था। शिखर पर फोटो लेते वक्त अचानक में गिर पड़ी तब मेरा ऑक्सीजन सिलेंडर खाली हो चुका था। मेरे शेरपा ने उसको रिप्लेस किया। तब वापस में सम्भली और दस मिनट शिखर पर रुकने के बाद वापस लौटने को तैयार हुई। शिखर पर मैने खुद को बधाई दी साथ मे मेरे परिवार की फोटो थी जो में साथ ले कर गयी थी। फिर मैंने भारत का तिरंगा और मध्य प्रदेश का ध्वज के साथ फोटो ली और हमारे प्रदेश के चीफ मिनिस्टर श्री कमलनाथ जी को धन्यवाद दिया जिनके सहयोग से में यहां तक आ सकी। इस पूरे सफर में मेरा स्वास्थ्य पूरी तरह ठीक रहा और आगे भविष्य में मौका लगा तो फिर में सागर माथा जाना पसंद करूँगी मगर उससे पहले दुनिया के कुछ और शिखर भी मेरे टू डू लिस्ट में है। मुझे पहाड़ो ने इतना नाम दिया है और मुझे इनसे बहुत लगाव है।

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