“जनता के ध्यान को भटकाने के लिए अंतिम समय में मंदिर निर्माण की बात की जा रही है. सामने चुनाव है तो चर्चा इस बात पर होनी चाहिए कि हमने महंगाई, बेरोजगारी, ग़रीबी दूर की या नहीं? लेकिन देश की जनता इस पर सवाल नहीं पूछे इसलिए वे (भाजपा) लोकसभा चुनाव के पहले मंदिर निर्माण का मुद्दा उठाने की बात कर रहे हैं.”
बिहार के मोतिहारी में एक सभा में भाजपा पर यह आरोप किसी विपक्षी नेता ने नहीं, बल्कि भाजपा के ही सहयोगी दल राष्ट्रीय लोकतांत्रिक समता पार्टी (रालोसपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा ने लगाया है.
कुशवाहा यहीं नहीं रुके उन्होंने राम मंदिर निर्माण जैसे भाजपा के कोर एजेंडे का विरोध करते हुए कहा, “रालोसपा भाजपा के इस रवैये का सख्त विरोध करती है. हम इस पर ऐतराज़ व्यक्त करते हैं. हम भाजपा से कहना चाहते हैं कि मंदिर निर्माण में हस्तक्षेप न करे और वह कम-से-कम चुनावी लाभ के लिए यह काम बिल्कुल न करे.”
बिहार एनडीए में सम्मानजनक सीट की मांग पर बीते करीब सवा महीने से नर्म-गर्म तेवर दिखा रहे उपेंद्र कुशवाहा ने गुरुवार को पहली बार भाजपा की खुलकर आलोचना की. भाजपा की आलोचना के साथ-साथ उन्होंने कहा कि चंपारण की धरती से हम संकल्प लेते हैं कि बिहार की निकम्मी सरकार को जितनी जल्दी हो सकेगा, उखाड़ने का काम करेंगे.
“एनडीए टूटने के कगार पर”
मोतिहारी में उपेन्द्र कुशवाहा ने राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के इन शब्दों के साथ अपना गुरुवार का भाषण ख़त्म किया, “अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ. याचना नहीं, अब रण होगा, संघर्ष बड़ा भीषण होगा.”
लेकिन विरोध और संघर्ष की घोषणा के बावजूद उन्होंने यह नहीं बताया कि संघर्ष किस तरह का होगा? कुशवाहा और उनकी पार्टी चाहती क्या है? उन्होंने यह साफ़ नहीं किया कि राम मंदिर निर्माण पर उनके विरोध के बाद भी भाजपा के पीछे नहीं हटने पर उनका कदम क्या होगा?
इन सवालों के जवाब में रालोसपा के राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता माधव आनंद ने बताया, “बीजेपी अगर 2014 के कॉमन मिनिमम प्रोग्राम से अलग कुछ करती है तो हम इसका विरोध करेंगे. साथ ही जिस तरह बिहार बीजेपी ने नीतीश कुमार के सामने घुटने टेकने का काम किया है उससे हमलोग एनडीए में सहज नहीं हैं. निश्चित रूप से एनडीए टूटने के कगार पर है. कुछ दिन का वक़्त दीजिए सब कुछ सामने आ जायेगा.”
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उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी इन दिनों भले ही एनडीए टूटने की बात कर रही हो मगर दो सप्ताह पहले कुशवाहा का कहना कुछ और था. मुंगेर के पोलो मैदान में 24 नवंबर को पार्टी के ‘हल्ला बोल, दरवाजा खोल’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उपेंद्र कुशवाहा ने कहा था, “मैं ईमानदारी से कहना चाहता हूँ कि मैं एनडीए में हूँ और मैं चाहता हूँ कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहें.”
नरेन्द्र को उपेन्द्र की कितनी ज़रूरत?
जानकारों का मानना है कि कुशवाहा और एनडीए का रिश्ता अब राजनीतिक मोल-भाव से आगे बढ़ चुका है. कुशवाहा कभी हां-कभी ना की उहापोह से भी बाहर निकल चुके हैं और शीतकालीन सत्र से पहले सब साफ़ हो जाएगा.
जैसा कि वरिष्ठ पत्रकार एसए शाद कहते हैं, “इस्तीफ़ा देने पर वे कहेंगे कि धर्मनिरपेक्षता के सवाल पर राम मंदिर के मुद्दे का विरोध करते हुए हमने मंत्री पद छोड़ा और अगर उन्हें नरेन्द्र मोदी अपने मंत्रिमंडल से बाहर निकालते हैं तो वे मुद्दे के साथ-साथ खुद को राजनीतिक शहीद बताकर भी जनता के बीच जाएंगे.”
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इस बीच, एक सवाल यह भी कि उपेन्द्र कुशवाहा की ज्यादा सीटों की ख्वाहिश भाजपा क्यों पूरी नहीं कर रही है? क्या नरेंद्र मोदी को अब उपेन्द्र कुशवाहा की ज़रूरत नहीं है?
वरिष्ठ पत्रकार सुरूर अहमद कहते हैं, “नरेन्द्र मोदी को 2014 के मुक़ाबले आज उपेन्द्र कुशवाहा की ज़रूरत ज्यादा है, लेकिन उनके सामने दिक्कत यह है कि उन्हें आपस में छत्तीस का आंकड़ा रखने वाले नीतीश कुमार और उपेन्द्र कुशवाहा में से किसी एक को चुनना है.”
सुरूर अहमद के मुताबिक कुशवाहा और नीतीश कुमार के बीच इस कारण भी नहीं बनती क्योंकि कुशवाहा बहुत ज्यादा महत्वाकांक्षा रखने के कारण सीधे-सीधे मुख्यमंत्री बनने की ख़्वाहिश जताते रहते हैं और ये किसी भी सूरत में नीतीश और जदयू को गवारा नहीं है.
वहीं, कुशवाहा की ज्यादा सीट की मांग पूरी नहीं हो पाने की एसए शाद ये वजह मानते हैं, “भाजपा ने बिहार में एक बड़ी पार्टी से फिर से गठबंधन किया है. ऐसे में वह जदयू की नाराजगी उठाकर रालोसपा की ज्यादा सीटों की मांग को पूरा करने के हालत में नहीं है. दूसरी ओर अगर वह रालोसपा की मांग पूरा करती तो फिर उसे रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा की मांगें भी पूरी करनी होती और ऐसी सूरत में भाजपा का पूरा चुनावी गणित बिगड़ जाता.”
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