हाल ही में तीन राज्यों की सियासी जंग फतह करने के बाद पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपने संसदीय क्षेत्र के दो दिवसीय दौरे पर शुक्रवार को अमेठी पहुंच रहे हैं. उनके खिलाफ अमेठी से चुनाव लड़ चुकीं केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी भी इसी क्षेत्र में होंगी. 2014 के बाद पहली बार दोनों दिग्गज एक ही दिन अमेठी में होंगे. ऐसे में दोनों नेताओं के तंज से अमेठी का सियासी पारा गर्म होने की संभावना है, लेकिन आखिरी वक्त में राहुल के कार्यक्रम में बदलाव किए गए हैं.
राहुल गांधी के दौर में अचानक बदलाव किया गया है. राहुल अब लखनऊ अमौसी एयरपोर्ट की जगह रायबेरली के फुरसतगंज उतरेंगे, जहां पार्टी के नेता उनका स्वागत करेंगे. इसके बाद राहुल शुक्रवार को अपने संसदीय क्षेत्र के गौरीगंज में अभिवक्ताओं के कार्यक्रम में शामिल होंगे. बता दें कि संसद सत्र के चलते राहुल के पहले से तय कार्यक्रमों में बदलाव किए गए हैं.
राहुल गांधी अमेठी के अपने दो दिवसीय दौरे के दौरान कई कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे. वह किसानों के साथ उनकी हालत पर चर्चा, नोटबंदी और राफेल के मुद्दे पर मोदी सरकार को घेर सकते हैं. जबकि केंद्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी भी शुक्रवार को यहां कंबल वितरण कार्यक्रम में शिरकत करेंगी. राघवराम सेवा संस्थान अमेठी में यह कार्यक्रम कर रहा है. इसके अलावा वह अमेठी में एक आवासीय विद्यालय की आधारशिला रखेंगी और सीएचसी गौरीगंज में सीटी स्कैन मशीन का उद्घाटन भी करेंगी.
राहुल गांधी के गढ़ अमेठी में बीजेपी की सक्रियता और स्मृति ईरानी की मौजूदगी से कांग्रेसी खेमे में बेचैनी बढ़ गई है. दरअसल अमेठी गांधी परिवार की परंपरागत संसदीय सीट मानी जाती है. बीजेपी की स्मृति ईरानी ने 2014 में राहुल के खिलाफ चुनाव लड़ी थीं. हालांकि वो जीत नहीं सकी थीं, लेकिन उन्होंने अमेठी से नाता नहीं तोड़ा.
स्मृति ईरानी की अमेठी में सक्रियता से राहुल गांधी लगातार अमेठी का दौरा कर रहे हैं. ऐसे में 4 जनवरी को दोनों नेताओं की एक ही समय अमेठी में मौजूदगी काफी दिलचस्प होगी. माना जा रहा है कि ऐसे में दोनों नेताओं की ओर से एक दूसरे पर जुबानी हमले किए जा सकते हैं.
माना जा रहा है कि स्मृति राहुल के दुर्ग से अगस्ता घोटाले में मिसेज गांधी के आए नाम को मुद्दा बनाकर हमला कर सकती हैं. वहीं, अमेठी को लेकर कांग्रेस 2019 लोकसभा चुनाव के पहले कोई भी चूक करने के मूड में नहीं है. कांग्रेस अमेठी के अपने पुराने नेताओं को पार्टी कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने में जुटी है ताकि इस बार जीत के लिए 2014 जैसा संघर्ष न करना पड़े.