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बुधनी से शिवराज के खिलाफ कांग्रेस का हैवीवेट कैंडिडेट, घर में घेरने की रणनीति

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव की सियासी रणभूमि में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर है. कांग्रेस ने बीजेपी के सबसे बड़े चेहरे और सत्ता के सिंहासन पर काबिज मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को उनके ही ‘घर’ में घेरने की रणनीति के तहत अरुण यादव को बुधनी सीट से उम्मीदवार बनाया है. ऐसे में देखना होगा कि शिवराज पांचवीं बार परचम फहराते हैं या फिर अरुण उनकी राह में रोड़ा बनते हैं?

अरुण यादव राज्‍य के पूर्व उप मुख्‍यमंत्री और कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे सुभाष यादव के बड़े बेटे हैं. सुभाष यादव 1993 से 2008 तक कांग्रेस के टिकट पर कसरावद के विधायक रहे. अरुण यादव कभी विधानसभा के सदस्‍य नहीं रहे, लेकिन दो बार लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं और मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं.

अरुण 2014 में प्रदेश कांग्रेस के अध्‍यक्ष बने थे. इस साल अप्रैल में जब उन्‍हें हटाकर कमलनाथ को प्रदेश कांग्रेस की कमान दी गई थी तो गुस्‍साए अरुण यादव ने घोषणा की थी कि वे विधानसभा या लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे. कांग्रेस उन्हें उनके ही जिले खरगौन से पहले चुनाव लड़ाना चाहती थी, लेकिन वो राजी नहीं हुए है. इसके बाद कांग्रेस की आखिरी लिस्ट में बुधनी से उम्मीदवार के तौर पर उतार दिया है.

ऐसे में  सवाल तो यही है कि यादव चुनाव लड़ने के लिए राजी कैसे हुए. फिर अपने गृह जिले खरगौन को छोड़कर सीहोर के बुधनी क्षेत्र से पार्टी के उममीदवार बनने को कैसे राजी हुए. ऐसे में वो शिवराज के गढ़ में कितनी बड़ी चुनौती साबित होंगे ये अहम सवाल है.

हालांकि कांग्रेस से बुधनी से टिकट के दावेदार रहे अर्जुन आर्य ने अरुण यादव को हरसंभव मदद करने का भरोसा दे रहे हैं. लेकिन शिवराज के किले को भेदना कांग्रेस के लिए इतना भी आसान नहीं नजर आ रहा है.

दरअसल, बुधनी सीट से पांचवीं बार चुनावी मैदान में ताल ठोंक रहे शिवराज ने 2013 में कांग्रेस उम्मीदवार महेंद्र सिंह चौहान को करीब 84 हजार मतों से हराया था. इस बार पर्चा दाखिल करने के बाद उन्होंने कहा था कि अब वो यहां नहीं आएंगे, इस सीट पर आप लोगों को विजयश्री दिलानी है. शिवराज सिंह को भरोसा है कि 2013 से भी ज्यादा बंपर मतों से उन्हें विजय हासिल होगी. वो इस सीट पर इसलिए दोबारा नहीं आएंगे क्योंकि उनके ऊपर 229 सीटों की जिम्मेदारी है.

बुधनी से शिवराज सिंह ने पहला चुनाव 1990 में लड़ा था. इसके बाद 2005 उनके लिए बदलाव लेकर आया जब उन्हें मध्यप्रदेश में बाबूलाल गौर को हटाकर मुख्यमंत्री बनाया गया. इसके बाद 2006 में अपनी पुरानी सीट बुधनी से उपचुनाव में कांग्रेस के राजकुमार पटेल को करीब 36 हजार मतों से हराकर विधानसभा के सदस्य बने.

इसके बाद चौहान ने लगातार 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव में बुधनी सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा. 2008 में उन्होंने कांग्रेस के महेश सिंह राजपूत को 41 हजार वोटों से परास्त किया जबकि 2013 में महेंद्र सिंह चौहान को 84 हजार मतों से हराया था.

2018 के विधानसभा चुनाव को 2019 के लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल कहा जा रहा है. ऐसे में कांग्रेस ने शिवराज के खिलाफ दिग्गज नेता अरुण यादव को मैदान में उतारा है. हालांकि अरुण यादव के लिए ये सीट नई है. यहां उन्हें अपनी जमीन खुद ही तैयार करनी है. ऐसे में वो शिवराज की राह में कितने बड़े रोड़ा साबित होंगे, ये कहना आसान नहीं है.

दरअसल शिवराज सिंह चौहान के प्रदेश कांग्रेस के कई नेताओं की निकटता जगजाहिर है. इन नेताओं पर अक्‍सर प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष रूप से चौहान को मदद पहुंचाने के आरोप भी लगते रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि कहीं वरुण यादव को उतारकर घेरने के बजाय वाक ओवर देने का संदेह पैदा हो रहा है.

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