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ग्वालियर : पूरी तरह सुरक्षित और बच्चों के लिए सुरक्षा कवच है एमआर टीका 

टीकाकरण के लिए लोगों को प्रेरित कर मीडिया अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभाये 
हरिओम त्यागी, ग्वालियर : मीजल्स-रूबेला वायरस से होने वाली बीमारियों का कोई इलाज नहीं हैं । इनका एक मात्र समाधान केवल एमआर टीका ही है। मीजल्स-रूबेला (एमआर) टीका पूरी तरह सुरक्षित और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मानकों पर आधारित है। दुनिया के 192 देशों में जिस एमआर टीके को लगाया गया था। भारत में लगभग 41 करोड़ बच्चों को यह टीका लगाने का लक्ष्य है। इनमें से लगभग साढ़े 23 करोड़ बच्चों को यह टीका लग चुका है। इससे साबित होता है कि यह टीका पूरी तरह सुरक्षित व कारगर है। सम्पूर्ण प्रदेश के साथ ग्वालियर जिले में भी 9 माह से 15 वर्ष तक के बच्चों को यह टीका लगाया जा रहा है। इस टीके के संबंध में मीडिया व्यापक सकारात्मक प्रचार कर अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभाए।
इस आशय का आह्वान मीडिया कार्यशाला में प्रभारी कलेक्टर श्री दिनेश श्रीवास्तव तथा ग्वालियर के सुप्रतिष्ठित शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञ तथा भारतीय बाल अकादमी और साउथ एशिया पीडियाट्रिक सोसायटी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. सी.पी. बंसल, जीआर मेडीकल कॉलेज के शिशु एवं बाल रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. अजय गौड़, जिला पीडियाट्रिक एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. सुभाष ढोण्डे, यूनीसेफ के प्रतिनिधि डॉ. मानिक चटर्जी, विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधि डॉ. एम एस राजावत, अपर जिला दण्डाधिकारी श्री संदीप केरकेट्टा, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मृदुल सक्सेना व जिला टीकाकरण अधिकारी डॉ. व्ही के गुप्ता ने किया।
जाने-माने शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञों ने मीडिया प्रतिनिधियों को जानकारी दी कि जो एमआर टीका (वैक्सीन) लगाया जा रहा है, उसका निर्माण विश्व की सबसे बड़ी और विश्वसनीय लेबोरेटरी सीरम ऑफ इंडिया पुणे द्वारा किया जाता है। दुनिया के तमाम विकसित देश भारत से ही इस वैक्सीन का आयात करते हैं। यह वैक्सीन अत्याधुनिक कोल्ड चैन के जरिए वहाँ तक पहुँचाई जाती है जहाँ इसका उपयोग होता है। साथ ही ऑटो लॉक डिस्पोजल सिरिंज से यह टीका लगाया जाता है।
इसलिये किसी प्रकार के संक्रमण की संभावना नहीं रहती। प्रभारी कलेक्टर तथा शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञों ने मीडिया प्रतिनिधियों से आग्रह किया कि वे जिलेवासियों की भ्रांतियों को दूर करने में सहयोग करें, जिससे वे अपने बच्चों को टीके लगवाएं और समाज एवं राष्ट्र का भविष्य सुरक्षित हो सके।
डॉ. सी पी बंसल ने कार्यशाला में जानकारी दी कि भले ही नियमित एमएमआर टीके एक दिन पहले लगे हों, फिर भी एमआर का टीका जरूर लगवाया जाए। यदि एमआर का टीका आज लगा है तो एमएमआर के टीके चार हफ्ते बाद लगवाए जा सकते हैं।
जीआर मेडीकल कॉलेज के शिशु एवं बाल रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. अजय गौड़ ने स्पष्ट किया कि एमआर टीके पूरी तरह सुरक्षित हैं। इस बात की पुष्टि इस बात से भी होती है कि ग्वालियर जिले में भी गत 15 जनवरी से शुरू हुए अभियान के तहत लगभग 57 हजार बच्चों को सफलतापूर्वक यह टीके लगाए गए हैं। इनमें से लगभग दर्जनभर बच्चों को उसी प्रकार की थोड़ी सी दिक्कतें हुई जो किसी बीमारी के सामान्य इंजेक्शन लगाने से स्वाभाविक रूप से होती है।
जिन बच्चों को दिक्कत हुई थी, उनकी देखभाल जेएएच में भर्ती कर की गई। सभी बच्चे स्वस्थ हैं और अधिकांश की छुट्टी भी कर दी गई है। उन्होंने कहा मानव शरीर में कोई भी इंजेक्शन लगाया जाए, शरीर में उसकी थोड़ी बहुत प्रतिक्रिया होती ही है। यह एक सामान्य प्रक्रिया है। इसलिये अभिभावक अपने बच्चों को एमआर टीके जरूर लगवाएं।
जिला पीडियाट्रिक एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. ढोंडे ने कार्यशाला में कहा कि पीडियाट्रिक एसोसिएशन में शामिल सभी चिकित्सकों ने ऐसे सभी बच्चों का नि:शुल्‍क इलाज करने का फैसला किया है, जिन्हें एमआर टीके लगने से थोड़ी भी दिक्कत हुई हो। साथ ही एसोसिएशन के सभी डॉक्टर्स स्कूलों में जाकर एमआर टीके के संबंध में अभिभावकों को जागरूक करेंगे। साथ ही उनकी भ्रांतियां भी दूर करेंगे।
कार्यशाला में जानकारी दी गई कि रुबेला वायरस के संक्रमण से महिलाएँ बार-बार गर्भपात का शिकार होती हैं। यदि ये महिलाएँ गर्भवती हो भी जाती हैं, तो वे या तो मृत शिशु को जन्म देती हैं या गर्भस्थ शिशु अविकसित, कुछ न कुछ शारीरिक दोष जैसे दिल में छेद, शरीर का कोई भाग न होना या मानसिक मंद अथवा शारीरिक रूप से अविकसित हो सकते हैं। ऐसे शिशु के साथ माता-पिता का भी जीवन कष्टदायक हो जाता है। जिस बच्चे को बड़े होकर माता-पिता का सहारा बनना होता है, वही जीवनभर के लिये माता-पिता पर आश्रित हो जाता है।
इसी तरह मीजल्स या खसरा भी घातक बीमारी है। मीजल्स स्वयं इतना खतरनाक नहीं है, जितने इसके दुष्परिणाम जैसे अंधापन, मस्तिष्क में सूजन, निमोनिया और डायरिया। पीड़ित बच्चा कुपोषण का शिकार हो जाता है। कई बार बच्चे की मृत्यु तक हो जाती है। पूरे विश्व में मीजल्स से होने वाली 30 प्रतिशत बाल मृत्यु भारत में होती है।

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