महाराणा प्रताप मेवाड के शासक एव्ं एक ऐसे महान वीर योद्धा थे, जिसने कभी मुगल बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। पूरे जीवन मुगलो से लड़ते रहे और कभी हार नही मानी। उनका जन्म 9 मई 1540 ईस्वी को कुंभलगढ़ मे हुआ था। प्रताप के पिता उदय सिंह कुंभलगढ़ के शासन और एक कुशल योद्धा थे। महाराणा प्रताप कुशल प्रशासक होने के साथ साथ पीड़ितों और विद्वानों का आदर भी करते थे।
प्रताप बचपन से ही मजबूत शरीर के थे। प्रताप ने अपने कुलदेव से वादा किया था, कि वह मर जाने पर भी मुगलो से हार स्वीकार नहीं करेगा।
महाराणा प्रताप ने अपने जीवन मे एक घोड़े पर सवारी की उस घोड़े का नाम चेतक था। जो युद्ध मे प्रताप की काफी सहायता करता था। चेतक ने मरने तक प्रताप का साथ दिया।
महाराणा प्रताप को गोगुंदा मे राजा बनाया गया।
मुगल सेना के भय के कारण सभी पड़ौसी राजाओ ने अधीनता स्वीकार कर ली पर प्रताप ने अस्वीकार करते हुए मुगलो की विशाल सेना को युद्ध के लिए ललकारा जो कि उनकी वीरता का परिचय था।
मुगलो कि अधीनता स्वीकार नहीं करने के कारण प्रताप और मुगलो के मध्यय 18 जून को 1576 को हल्दीघाटी का युद्ध हुआ।
ये युद्ध तीन दिन तक चला इस युद्ध मे अपनी कम सेना के साथ प्रताप ने मुगलो की विशाल सेना का बखूबी सामना किया। पर अंत समय मे प्रताप घायल हो गए। और ये युद्ध अनिर्णायक रहा।
अकबर हर रात ये दुआ कर सोता कि कही सपने में वो नीले का सवार भाला लेकर न आ जाए, हाँ नाम दिलों में बसता हैं प्रताप का, जिन्होंने अपने स्वाभिमान एवं धर्म की खातिर आजीवन मुगलों के आगे शीश न झुकाया।
भारत की भूमि पर न जाने कितने हजार लाख शासक हुए. और काल की परतों में दमन हो गये, मगर शिवाजी, प्रताप, सभाजी, झांसी की रानी, वीर कल्ला फत्ता, अजित सिंह, दुर्गादास, सूरजमल जी जैसे नाम आज भी बड़े सम्मान के साथ लिए जाते हैं।
इन्होने राष्ट्र धर्म निभाया तथा अपने जीवन को राष्ट्र की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया.गुलामी की बेड़ियों में कराहती माँ भारती के सपूतों ने देश के कोने कोने से सम्प्रभुता को बचाने के यत्न जारी रखे, मेवाड़ से महाराणा प्रताप ने अपने दायित्वों का निर्वहन किया.
प्रताप को मेवाड़ की गद्दी पर बिठाने में मेवाड़ी सरदारों का अहम योगदान था, जिन्होंने जगमाल की स्थान पर राणा प्रताप को अपना शासक चूना.
बलिष्ठ काया, शक्तिशाली, बहादुरी और युद्ध कला में प्रताप का कोई सानी नहीं था।
अकबर जानता था कि वह ऐसे जिद्दी और मातृभूमि के लिए प्राणों की बाजी लगाने वाले सच्चे शासक को अपनी ओर आसानी से नहीं मिला सकता, अतः उसने चार बार राजस्थान के ही महत्वपूर्ण शासकों को संधि का प्रस्ताव देकर मेवाड़ भेजा, मगर राणा का इरादा कभी न बदलने वाला था.
वे जानते थे कि अकबर की सेना को प्रत्यक्ष तौर पर नहीं हर सकते, उन्होंने कई योजनाएं बनाई. अफगानी शासक हाकिम खान सूरी को अपना सेनापति बनाया, मेवाड़ के भीलों को अपना सरदार चूना तथा छापामार शैली से युद्ध की तैयारी करने लगे।
अन्तोगत्वा 15 जून 1576 को ऐतिहासिक हल्दी घाटी का युद्ध लड़ा गया, जिसमें प्रताप की सेना ने निर्णायक विजय हासिल की.
महाराणा प्रताप शिकार के दौरान बुरी तरह घायल हो गए और उनकी 56 वर्ष की आयु में मौत हो गई। इस तरह महाराणा प्रताप इतिहास के पन्नों में अपनी बहादुरी और जनप्रियता के लिए अमर हो गये।
*-नवनीत कुमार, बिहार*