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गूगल मैप्स ने अब देश भर में COVID-19 भोजन केंद्र और रैनबसेरा स्थानों की लोकेशनें शामिल कीं

नई दिल्ली : COVID -19 महामारी के कारण सभी शहरों, कस्बों और गांवों में तमाम लोगों का जीवन अस्तव्यस्त हो गया है, और आजीविका, तथा नियमित भोजन उपलब्धता जैसी चीज़ें प्रभावित हो रही हैं। देशव्यापी लॉकडाउन के कारण परिवहन व्यवस्थाएं भी बुरी तरह प्रभावित हुई हैं जिससे लाखों प्रवासी मज़दूरों ने भारत में विभिन्न शहरों से अपने घर की ओर पैदल ही यात्राएं शुरू कर दीं। इस कठिन समय में लोगों की मदद करने के लिए गूगल मैप्स ने अब पूरे भारत में शहरों में भोजन केंद्रों और रैनबसेरों की लोकेशनें दर्शाना भी शुरू कर दिया है।

गूगल, इन राहत केंद्रों की लोकेशनें दिखाने के लिए राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारियों से मिलकर काम कर रहा है। अब तक 30 शहरों के लोग गूगल मैप्स, खोज, और गूगल असिस्टैंट पर ‘में भोजन के स्थान’ या ‘ में रैन बसेरे’ इनमेंसे किसी गूगल उत्पाद पर सर्च करके इन लोकेशनों को पता कर सकते हैं।यह जल्दी ही हिन्दी में भी ‘मेंभोजनकेंद्र’ या ‘मेंरैनबसेरा’ जैसी पूछताछ के साथ उपलब्ध होगा।

लोग उक्त पूछताछ को गूगल सर्च पर भी दर्ज कर सकते हैं, या स्मार्टफोन या KaiOS डिवाइस पर अपने गूगल असिस्टैंट से पूछ सकते हैं। आने वाले सप्ताहों में गूगल इसे अन्य भाषाओं में लाने की योजना बना रहा है, जिसके साथ देश भर में और अधिक शहरों में अतिरिक्त आश्रय भी जोड़े जाएंगे।

गूगल मैप्स ऐप पर सर्च बार के नीचे दिखने वाले क्विक-ऐक्सेस शार्टकट, KaiOS फीचर फोन पर गूगल मैप्स पर शार्टकट, तथा पहली बार मैप्स ऐप खोले जाने पर मानचित्र पर डिफॉल्ट रूप में भोजन और रैनबसेरा स्थानों की पिनें दिखाई देने के साथ, आने वाले दिनों में इस विशेषता तक पहुंच और भी आसान हो जाएगी।

इस विशेषता की लांच के अवसर पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अनल घोष, सीनियर प्रोग्राम मैनेजर, गूगल इंडिया ने कहा कि,“चूंकि COVID-19 की स्थिति दिनोंदिन गंभीर होती जा रही है, ऐसी ज़रूरत के समय में लोगों की मदद करने वाले समाधान तैयार करने के लिए हम केंद्रित प्रयास कर रहे हैं।

गूगल मैप्स पर भोजन केंद्रों और रैनबसेरों की लोकेशनें दिखाना, ज़रूरतमंद उपयोक्ताओं के लिए यह जानकारी आसानी से उपलब्ध कराने की दिशा में एक कदम है जो सरकार की ओर से दी जा रही भोजन और रैनबसेरा सुविधाओं का उनके द्वारा लाभ लिया जा सकना सुनिश्चित करेगा। स्वयंसेवकों, एनजीओ, और यातायात प्राधिकारियों की मदद से, हमें आशा है कि यह महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रभावित लोगों तक पहुँच सकेगी, जिनमें से अनेक लोगों की इस समय स्मार्टफोन या मोबाइल डिवाइस तक पहुँच नहीं हो सकती है।”

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