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पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन बोले, ‘भारत के सामने अभी भी हैं 3 बड़ी दिक्कतें’

वॉशिंगटन:

रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने नोटबंदी, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को देश की आर्थिक वृद्धि की राह में आने वाली ऐसी दो बड़ी अड़चन बताया जिसने पिछले साल वृद्धि की रफ्तार को प्रभावित किया. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सात प्रतिशत की मौजूदा वृद्धि दर देश की जरूरतों के हिसाब से पर्याप्त नहीं है. राजन ने बर्कले में शुक्रवार को कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में कहा कि नोटबंदी और जीएसटी इन दो मुद्दों से प्रभावित होने से पहले 2012 से 2016 के बीच चार साल के दौरान भारत की आर्थिक वृद्धि काफी तेज रही.

राजन ने कहा कि भारत के सामने अभी तीन दिक्कतें हैं. पहली दिक्कत उबड़-खाबड़ बुनियादी संरचना है. उन्होंने कहा कि निर्माण वह उद्योग है जो अर्थव्यवस्था को शुरुआती चरण में चलाता है. उसके बाद बुनियादी संरचना से वृद्धि का सृजन होता है. उन्होंने कहा कि दूसरा अल्पकालिक लक्ष्य बिजली क्षेत्र की स्थिति को बेहतर बनाना हो सकता है. यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि सालाना उत्पन्न बिजली उनके पास पहुंचे जिन्हें इसकी जरूरत है. तीसरा मुद्दा बैंकों के कर्ज खातों को साफ सुथरा बनाना है.

भारत के भविष्य पर आयोजित द्वितीय भट्टाचार्य व्याख्यान में राजन ने कहा, “नोटबंदी और जीएसटी के दो लगातार झटकों ने देश की आर्थिक वृद्धि पर गंभीर असर डाला. देश की वृद्धि दर ऐसे समय में गिरने लग गई जब वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर गति पकड़ रही थी.”

राजन ने कहा कि 25 साल तक सात प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि दर बेहद मजबूत वृद्धि है लेकिन कुछ मायनों में यह भारत के लिये वृद्धि की नयी सामान्य दर बन चुकी है जो कि पहले साढ़े तीन प्रतिशत हुआ करती थी. उन्होंने कहा, “सच यह है कि जिस तरह के लोग श्रम बाजार से जुड़ रहे हैं उनके लिये सात प्रतिशत पर्याप्त नहीं है और हमें अधिक रोजगार सृजित करने की जरूरत है. हम इस स्तर पर संतुष्ट नहीं हो सकते हैं.” राजन ने वैश्विक वृद्धि के प्रति भारत के संवेदनशील होने की बात स्वीकार करते हुए कहा कि भारत अब काफी खुली अर्थव्यवस्था है. यदि विश्व वृद्धि करता है तो भारत भी वृद्धि करता है. उन्होंने कहा, “2017 में यह हुआ कि विश्व की वृद्धि के गति पकड़ने के बाद भी भारत की रफ्तार सुस्त पड़ी. इससे पता चलता है कि इन झटकों (नोटबंदी और जीएसटी) वास्तव में गहरे झटके थे… इन झटकों के कारण हमें ठिठकना पड़ा.”

कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों की चुनौती
राजन ने पुन: रफ्तार पकड़ रही भारतीय अर्थव्यवस्था के समक्ष कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों की चुनौती के बाबत ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए तेल आयात पर देश की निर्भरता का जिक्र किया. पूर्व गवर्नर ने कहा कि कच्चा तेल की कीमतें बढ़ने से घरेलू अर्थव्यवस्था के समक्ष परिस्थितियां थोड़ी मुश्किल होंगी, भले ही देश नोटबंदी और जीएसटी की रुकावटों से उबरने लगा हो.

बढ़ते एनपीए पर यह बोले राजन
बढ़ती गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) के बारे में उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति को साफ सुथरी बनाना ही बेहतर होगा. राजन ने कहा, यह जरूरी है कि बुरी चीजों से निपटा जाए ताकि बैलेंस शीट साफ हो और बैंक वापस पटरी पर लौट सकें. भारत को बैंकों को साफ करने में लंबा वक्त लगा है इसका आंशिक कारण है कि प्रणाली के पास बुरे ऋण से निपटने के साधन नहीं थे. राजन ने कहा कि दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता बैंकों के खातों को साफ सुथरा बनाने में अकेले सक्षम नहीं हो सकती है. उन्होंने कहा कि यह इस तरह की सफाई की बड़ी योजना का एक तत्व भर है. देश में एनपीए की चुनौती से निपटने के लिये बहुस्तरीय रुख अपनाने की जरूरत है.

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