पूर्व रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडिस का 88 साल की उम्र में मंगलवार को निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली के मैक्स अस्पताल में आखिरी सांस ली। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जॉर्ज फर्नांडिस को सार्जवनिक तौर पर श्रद्धांजलि देते हुए रो पड़े। बिहार सरकार ने उनके सम्मान में दो दिवसीय राजकीय शोक घोषित किया है।
जॉर्ज फर्नांडिस से अपने रिश्तों के बारे में बात करते हुए नितीश ने कहा उनके मार्गदर्शन में एक नई पार्टी का गठन किया गया था। मैनें जो कुछ भी सीखा और लोगों की सेवा के लिए जो किया उसमें उनका महत्तवपूर्ण योगदान है। हम सब को इस दुनिया से एक दिन चले जाना है, ये ही सच्चाई है पर हम सभी के लिए यह बेहद दुखद घड़ी है।
उनके मार्गदर्शन और जनता के अधिकारों के लिए लड़ाई के उनके मार्गदर्शन को मैं कभी नहीं भुला सकूंगा। उन्होंने आगे कहा कि जॉर्ज फर्नांडिस के निधन से देश ने एक बड़े राजनीतिक शख्सियत और प्रखर वक्ता को खो दिया है। बता दें कि 3 जून, 1930 को जन्में फर्नांडिस 10 भाषाओं के जानकार थे। वह हिंदी और अंग्रेजी के अलावा तमिल, मराठी, कन्नड़, उर्दू, मलयाली, तुलु, कोंकणी और लैटिन भी अच्छे से बोलते थे।
जॉर्ज पंचम की प्रशंसक थीं मां
फर्नांडिस की मां जॉर्ज पंचम की बहुत बड़ी प्रशंसक थीं। यही वजह थी कि उन्होंने अपने सबसे बड़े बेटे का नाम जॉर्ज रखा। जॉर्ज 6 बहन-भाई में सबसे बड़े थे। मंगलौर में पले बढ़े फर्नांडिस की उम्र उस वक्त महज 16 साल थी, जब उन्हें पादरी बनने की शिक्षा लेने के लिए एक क्रिश्चियन मिशनरी में भेजा गया। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ जिसके बाद वह चर्च छोड़कर चले गए।
जिस वक्त वह चर्च में पादरी की शिक्षा ले रहे थे, तब वहां का पाखंड देखकर उनका मोहभंग हो गया। जिसके बाद उन्होंने इस शिक्षा को जारी रखना ठीक नहीं समझा और 18 साल की उम्र में चर्च छोड़ दिया। इसके बाद वह रोजगार की तलाश में बंबई चले गए।