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प्रोत्साहन भी, मनाही भी – मुकेश तिवारी

भारत में नशाखोरी की समस्या विकराल रूप लेती जा रही है वर्जनाओं और पाबंदियों के लिए के लिए जाने जाना वाला हमारा देश इस समय नाशखोरी के मामले में दुनिया में दुसरे स्थान पर है।जाहिर तौर पर युवाओं की एक बडी आबादी किसी न किसी किस्म के नशे की आदी हो चुकी है।नशाखोरी किसी राज्य को कितनी क्षति पहुंचा सकती है पंजाब जैसा हरा-भरा राज्य इसका जीता जागता उदाहरण है। विडंबना यह है कि देश के अधिकांश प्रदेश राजस्व का बहाना लेकर नशाखोरी को बढावा देने में लगे हैं।

एक ओर भारत को बडे गर्व के साथ युवा -शक्ति के तौर पर पेश किया जा रहा है,लेकिन इस तल्ख सच्चाई को तब आघात पहुंचता है जब हमें यह पता चलता है िक इस समय हमारा मुल्क दुनिया में नशाखोरी के मामले में द्धितीय स्थान पर है। इस समय हमारे मुल्क में 10ः80करोड युवा आबादी धूम्रपान की गिरफत में है।देश में प्रतिवर्ष धूम्रपान की वजह से दस लाख लोगों की मौत होती है।यह आंकडा देश में होने वाली कुल मौतों का दस फीसदी है।भारत में स़त्रह साल पहले धूम्रपान करने वाले पुरूषों की संख्या 7ः9 करोड थी ।इसमें 2ः9 करोड ंका इजाफा हुआ है।देश में धूम्रपान करने वाली महिलाओं की संख्या 1ः1करोड है।

शोध के अनुसार भारत में पिछले डेढ दशक में सिगरेट पीने वालों की तादादा काफी बढी हैं। 15से 29 वर्ष तक की आयु वर्ग के लोगो में धूम्रपान की लत में वृद्धि हुई है। शहरों में धूमं्रपान करने वालों की संख्या में 68 और ग्रामीण क्षेत्रों में 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सिगरेट पीने के मामले में आज भारत पूरी दुनिया में द्धितीय स्थान पर है।अभी सिर्फ चीन से पीछे है।जिस तीव्र गति से महानगरों में 15-19 बर्ष की आयु के किशोरों में सिगरेट, शराबखोरी की लत बढ रही है यदि यही गति बनी रही तो जल्द ही वह चीन को भी पीछे छोड देगा।

ड्रग वार डिस्टॉर्सन और वर्डोमीटर की रिपोर्ट के अनुसार पुरी दुनिया में मादक पदार्थो का अवैध व्यापार सालाना लगभग 30 लाख करोड रूपए का है।वही नेशनल ड्रग डिपेडेंट ट्रीटमेंट एम्स की बर्ष 2019 की रिपोर्ट बताती है कि अकेले भारत में ही तकरीबन 16 करोड लोग शराब का नशा करते हैं। इसमें बडी संख्या महिलाओं की भी है। रिपोर्ट के अनुसार लगभग 1ः5 करोड महिलाए देश में शराब ,अफीम और कैनाबिकस का सेवन करती है।चिंताजनक बात है कि हर 16 में से एक महिला शराब की इतनी लती है कि इसके बिना वह रह नहीं रिपोर्ट के अनुसार भारत की 20 प्रतिशत आबादी 10 से 70 बर्ष के बीच है दरअसल में हमारे मुल्क में पारंपरिक नशे जैसे कि तम्बाकू हुक्का,शराब, अफीम के अलावा सिंथेटिक ड्रग्स ,स्मैक ,कोकीन,मारिजुआना ,हिरोइन ,का चलन तेजी से बढ रहा हैं।

नशे को विनाशकारी चीजों में शुमार किया जाता है।पहले सामाजिक स्तर पर पीने वाले आदमी को इसकी लत लगने में दस साल का समय लगता था,आज सिर्फ दो साल में ही उसे लत लग जाती है,राज्यों का आबकारी महकमा एक तरफ नशे को बढावा देने में लगा रहता है तो मध-निषेध महकमा इसे रोकने में । यह कैसा विरोधाभास है?दुनिया भर के तमाम चिकित्सीय शोध बता चुके है कि नशा कोई भी हो वह हैं धीमा जहर ही ।

यह एक विडंबना ही है कि नशे को लेकर हमारी सरकारों का मापदंड दोहरा है।किसी भी किस्म के नशे को अच्छा नही माना जाता है फिर भी इसका चलन बदस्तूर जारी है।यही वजह है किसिगरेट,शराब,तंबाकू,बीडी ,गुटखा आदि नशीली चीजों का उत्पादन और बिक्री हो रही है,गौरतलव हैं कि वही दूसरी तरफ नशीली चीजों का सेवन न करने के खर्चीले अभियान चलाए जा रहे है। पंजाब जैसा साधन संपन्न प्रदेश नशाखोरी की वजह से पूरेदेश में चर्चा का बिषय बना हुआ हैं।

सिगरेट का सेवन ज्यादा खतरनाक है,क्योकि यह उन लोगो केा भी प्रभावित करती है, जो पीने वाले के इर्द-गिर्द होते है। शराब या तंबाकू का सेवन करने वाले सीधे तौर पर खुद को क्षति पहुंचाते है, लेकिन आथर््िाक रूप से वे अपने परिवार को ही बबार्द कर देते हैं।

भारत में सिगरेट की तरह शराब का सेवन करने वालो तादाद बढ रही है।जहरीली शराब पीने से लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं।अभी हाल ही में उज्जैन में जहरीली शराब के सेवन से14 लोगो की मौत हुई है। आश्चर्यजनक है,सरकार का ही एक अंग नशा बिकवाने में मशगूल रहता है और दूसरा रूकवाने में ।मगर वास्तविकता यह है कि शराब सिगरेट तबाकू की बिक्री से सरकार के खजाने में पैसा आता है।लेकिन असल सवाल तो यह है कि एक तरफ सरकारें खजाना भरती है और दूसरी और नशा-विरोधी अभियान पर मोटी रकम फूकती है।यदि नशाखोरी से लोगों का अहित हो रहा है तो ऐसी आमदनी किस काम की ?भारत में लंबे समय से गुजरात और बिहार में शराब की बिक्री पर रोक हैंवह भी तब जब बिहार को गरीब राज्यों में गिना जाता है और विकास कार्यो के लिए उसे राजस्व की सबसे ज्यादा जरूरत है।

उधर हालात बदतर होते देख नशे पर पांबदी को लेकर अदालते भी काफी सक्रिय हुई है । दो अक्टूबर 2008 को पहली बार सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर प्रतिबंध लगाया गया ।2004 में स्कूलों से तीन सौ मीटर के दायरे में तंबाकू और गुटखा आदि की बिक्री और सेवन आदि पर प्रतिबंध लगा। मई 2009 में पहली बार कानून बनाया गया कि तंबाकू किसी भी उत्पाद के पैकेट पर चालीस प्रतिशत हिस्से पर फेफडो के चित्र से बनी चेतावनी दिखाई जाएगी वर्तमान में एक सिगरेट के पैकेट के तकरीबन 65 प्रतिशत भाग पर मुंह और गले के कैसर के चित्र और 15 प्रतिशत जगह पर लिखित चेतावनी दी जाती है। इस सबके बाबजूद भारत में पढे-लिखे युवाओं में सिगरेट पीने की लत तेजी से बढ रही हैं

हकीकत यह है कि नशे की चीजों के पैकेटों पर दी जाने वाली स्वास्थ्य चेतावनी गले और मुह के कैसर के चित्र और तमाम तरह के विज्ञापन किसी भी नशे को कम करने के लिए रत्ती भर भी भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं। आने वाले बरसों में नशाखोरी की लत न जाने कितनी तबाही लेकर आएगा क्या कोई सुन रहा है और इस तबाही की बू संूघ भी पा रहा है?

लेखक के विषय में- स्व़त़ं़त्र पत्रकार है

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