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अफवाहों पर अंकुश को बने प्रभावी तंत्र

कोरोना वायरस महामारी के दौरान सोशल मीडिया के तमाम प्लेटफार्मों पर निराधार और दूसरों को ठेस पहुंचाने वाली खबरों, वीडियो क्लिप और टीका-टिप्पणियों का बोलबाला है। ये खबरें सामाजिक समरसता के ताने-बाने को भी तार-तार करने में भूमिका निभा रही हैं।

कोरोना वायरस महामारी के दौरान सोशल मीडिया के माध्यम से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सांप्रदायिक कटुता और वैमनस्य पैदा करने का प्रयास करने वालों की बाढ़ आयी हुई है। सांप्रदायिक समरसता बनाये रखने के लिए ऐसा प्रयास करने वाले तत्वों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता, आपदा प्रबंधन कानून, महामारी बीमारी कानून और सूचना प्रौद्योगिकी कानून के प्रावधानों के तहत कठोर कार्रवाई की आवश्यकता है।

सोशल मीडिया पर इस समय कंगना रनौत की बहन रंगोली और दंगल गर्ल बबीता फोगाट की पोस्ट पर घमासान मचा हुआ है। स्वरा भास्कर से लेकर ज्वाला गुट्टा तक ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया। रंगोली का ट्विटर अकाउंट सस्पेंड हो गया है तो कंगना ने ट्विटर को ही बंद करने की मांग कर डाली। इस बीच, मुरादाबाद की घटना के बाद रंगोली के एक विवादित ट्वीट के कारण उनके खिलाफ पुलिस में भी शिकायत दर्ज करायी गयी है। फेसबुक पर आपत्तिजनक पोस्ट डालने के आरोप में अभिनेता एजाज खान को गिरफ्तार किया जा चुका है। इससे पहले भी सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट डालने के आरोप में अनेक लोगों को गिरफ्तार किया गया है। लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जिन पर कानून के चाबुक का कोई असर ही नहीं होता।

सरकार इस तरह के भ्रामक और तनाव तथा कटुता पैदा करने वाली सामग्री अपलोड होने वाले स्रोत जानना चाहती थी, लेकिन व्हाटसएप जैसे प्लेटफार्म सहयोग करने के लिए तैयार नहीं थे। नतीजा यह हुआ कि सरकार को सख्ती दिखानी पड़ी और उसने फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम आदि दूसरे प्लेटफार्म को परामर्श जारी करके भ्रम पैदा करने वाली सामग्री तथा वीडियो क्लिप आदि के खिलाफ तत्परता से कार्रवाई सुनिश्चित करने की हिदायत दी। जहां समाज का एक वर्ग यह कहने में संकोच नहीं कर रहा कि कोरोना वायरस के मामलों में तेजी से वृद्धि तबलीगी जमात के सदस्यों की देन है तो दूसरे वर्ग का तर्क है कि तबलीगी जमात की आड़ में समूचे मुस्लिम समाज को कठघरे में खड़ा करने के प्रयास सही नहीं हैं।

कोरोना वायरस के संक्रमण से पीडि़त व्यक्तियों का पता लगाने और उनके उपचार के लिए गली-मोहल्लों तक पहुंचने वाले चिकित्सकों, स्वास्थ्यकर्मियों और सुरक्षाकर्मियों पर हमलों को व्हाट्सएप से भेजे जा रहे भ्रामक संदेशों और वीडियो क्लिप का नतीजा माना जा रहा है।

स्थिति यह हो गयी है कि दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में मार्च महीने में आयोजित मरकज के बाद तबलीगी जमात के सदस्यों के देश के विभिन्न हिस्सों में जाने और इनमें से कई लोगों में वायरस के संक्रमण पाये जाने की घटनाओं के बाद कोरोना वायरस के मामलों में तेजी से हुई वृद्धि को तबलीगी जमात से जोड़ा जाने लगा।

कोरोना वायरस से संबंधित आंकड़ों और सामाजिक ताने-बाने में दोनों ही दलीलें तर्कसंगत नजर आ रही हैं लेकिन सवाल यह है कि मौजूदा माहौल में अफवाहों और कटुता पैदा करने वाली खबरों के बाजार पर काबू कैसे पाया जाये।

इस समय देश में दो विशेष कानून, महामारी बीमारी कानून, 1897 और आपदा प्रबंधन कानून, 2005 लागू हैं। महामारी बीमारी कानून के तहत बनाये गये किसी भी नियम या आदेश की अवहेलना दंडनीय है। इसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत मामला दर्ज किया जा सकता हैं

इसी तरह, आपदा प्रबंधन कानून में भी किसी आपदा या संकट के बारे में मिथ्या संकट सूचना देना दंडनीय अपराध है। इस कानून में कम से कम नौ धाराओं में सज़ा का प्रावधान है। लेकिन कानूनी प्रावधानों के बावजूद आरोप-प्रत्यारोपों का सिलसिला बेखौफ जारी है।

ऐसी स्थिति में सवाल उठता है कि क्या सरकार को कोरोना वायरस संक्रमण के दौरान सोशल मीडिया के लिए कोई नयी नीति तैयार करनी चाहिए ताकि समाज में कटुता या भ्रम पैदा करने वाली खबर, संदेश या वीडियो क्लिप अपलोड करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाये।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि सांप्रदायिक सौहार्द बिगाडऩे का प्रयास करने वाले अधिकांश वीडियो क्लिप भारत में नहीं बने हैं और चुनिन्दा देशों से इस तरह के क्लिप अपलोड किये जा रहे हैं ताकि एक समान बोलचाल, वेशभूषा तथा खानपान की वजह से यहां परस्पर अविश्वास और तनाव का माहौल पैदा किया जा सके। सोशल मीडिया पर ऐसे लोगों की बहुत बड़ी संख्या है जो अपनी असलियत छिपाकर फर्जी नाम से सक्रिय हैं। सोशल मीडिया पर तमाम अनर्गल पोस्ट और वीडियो क्लिप अपलोड करने वाले तत्वों में अधिकांश यही छद्म उपभोक्ता हैं, जिनका पता लगाना और उनके खिलाफ पुलिस कार्रवाई करना आवश्यक है।

– अनूप भटनागर

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