* वन भूमि में सैंकड़ों सड़कों को विभाग ने कैसे दी अनुमति, फिर क्यों एक सडक़ बनने से रोका
* ग्राम विकास में रोड़ा बन रहा वन विभाग, सडक़ निर्माण को नहीं दी जा रही अनुमति
* वन भूमि में बसी है मुरादपुर चक्क बस्ती तो 50 साल से कहां थे अधिकारी, क्यों दी रहने को शरण
(संतोष कुमार मीना)
आम सभा, गुना।
शहर से लेकर ग्रामीण और ग्रामीणों से लेकर जंगलों तक हर जगह गरीबों को सताया जा रहा है। उनके द्वारा हक, अधिकार और न्याय की मांग की जाती है, लड़ाई लड़ी जाती है जब वे सफल हो जाते हैं तो श्रेय लेने वालों की होड़ लग जाती है। इसके उलट जब तक उन्हें सफलता नहीं मिलती तब तक उनके पीछे कोई खड़ा नही दिखाई देता। चाहे फिर सरकार और जनप्रतिनिधि किसी भी पक्ष के हों, चुनाव जीतने के बावजूद भी संवैधानिक अधिकार लेकर लोगों को सहारा देने की बजाय घर बैठ जाते हैं। वर्तमान में सडक़ बनने की मांग ग्रामीणों के द्वारा की जा रही है और वह जानकारी के अभाव में दर-दर भटक रहे हैं। जिन्होंने वन मंडलाधिकारी डीएफओ कार्यालय पहुंचकर सडक़ बनाने हेतु अनुमति देने की मांग की है।
दरअसल ऐसा ही एक उदाहरण ग्राम पंचायत मुरादपुर चक्क हरिजन बस्ती का सामने आया है। विधानसभा चुनाव से पहले तक पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के पूर्व कैबिनेट मंत्री महेन्द्रसिंह सिसोदिया द्वारा सडक़ बनाने की कोशिश की गई, यहां तक कि सडक़ प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के अंतर्गत राज्य मद से स्वीकृत होकर भूमिपूजन भी किया गया। इसके बाद आदर्श आचार संहिता लगने से काम डिले क्या हुआ कि वन विभाग ने अड़ंगा डाल दिया। सवाल ये है कि सत्तापक्ष के नेता हावी थे तब तक विभाग मूखदर्शक बना रहा और जैसे ही सत्तापक्ष के नेता का परिवर्तन क्या हुआ कि वन विभाग के अफसर ने सडक़ निर्माण के भूमिपूजन वक्त लगाए गए बोर्ड तक उखड़वा दिए। जिसका किसी भी नेता ने विरोध तक नही किया, जबकि कायदे से सरपंच को हस्तक्षेप करना चाहिए और नवनियुक्त विधायक को। हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में यहां की जनता ने कांगे्रस पार्टी का समर्थन करते हुए ऋषि अग्रवाल को अपना विधायक चुना है। जिनके पास भी ग्रामीण पहुंचे और उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराया है। अब देखते हैं कि विधायक कुछ खास कर पाएंगे या फिर ग्रामीण ही अपने हक की लड़ाई लडक़र जंग जीत पाएंगे।
खटिया पर रखकर इलाज कराने ले जाते हैं मरीज
मुरादपुर से लेकर हरिजन बस्ती तक करीब 3 किमी सडक़ की हालत ये है कि लोग खटिया पर रखकर मरीजों को इलाज कराने ले जाते हैं। यह स्थिति ग्रामीणों को बारिश के दौरान वर्षों से सता रही है। हालांकि उस बस्ती में कुटीर आवास, नल जल योजना, सडक़, बिजली जैसे मूलभूत सुविधाएं मिल रही हैं। शिक्षा की बात करें तो गांव में प्राथमिक शाला भी है जिस पर एक शिक्षक और एक शिक्षिका पदस्थ हैं जिन्हें भी पैदल कीचड़ से होकर ही बस्ती तक पहुंचना होता है। उसी बस्ती के आसपास सरकारी की कपिलधारा योजना से दो कुंआ भी बने हैं। विडम्बना सिर्फ एक ही है कि स्थानीय और क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों की अनदेखी के चलते सडक़ का काम रूका पड़ा हुआ है।
20 बीघा वन भूमि से क्यों नही हटा दबंगों का कब्जा
ग्रामीणों का कहना है जिस सडक़ को बनना है उस सडक़ से एक दिन वन विभाग के अधिकारियों को भी गुजरना पड़ेगा, किंतु वे बनने के दौरान अड़ंगा क्यों डाल रहे हैं यह समझ से परे है। जबकि बस्ती के पास करीब 20 बीघा वन भूमि पर बरोदिया गांव के लोग खेती कर रहे हैं जिन्हे आज तक नही रोका गया। सूत्र बताते हैं कि वन परिक्षेत्र दक्षिण के अधिकारी विवेक चौधरी से सांठगांठ कर राजाराम यादव, महेश यादव, सुरेश, चंद्रभान आदि ने पी-323 नम्बर पर दो साल से कब्जा कर रखा है जिन्हे आज तक नही हटाया। जिन्होंने हनुमान मंदिर की जमीन तक नही छोड़ी, ऐसी स्थिति में पुजारी न होने से मंदिर के गेट दो साल से बंद है।