चंबल के बीहड़ यानी राजस्थान के पूर्वी छोर पर चंबल नदी किनारे बरसों से सुनसान जंगल, बागी और बंदूकों के लिए कुख्यात रहे हैं. इन बीहड़ों और डकैताें का रिश्ता दो सौ साल पुराना है. 20 साल पहले तक इन बीहड़ों में 100 से ज्यादा डकैत सक्रिय थे जिनमें कई लाखों के इनामी डाकू इतने कुख्यात थे कि धौलपुर के इन बीहड़ों में आजादी के बाद भी जंगलराज चलता था. लेकिन हालात अब भी ज्यादा नहीं सुधरे, घनघोर बीहड़ आज भी डकैतों की शरण स्थली बना हुआ है. जगन गुर्जर जैसे दस्यु और उसके साथी डकैत इन्हीं बीहड़ों में कानून के राज का धत्ता बताते हुए गरीब, दीनहीन वर्ग पर अपना हूकम चलाते हैं. बुधवार को महिलाओं को निर्वस्त्र कर गांव में सरेआम घुमाने की घटना तो इस जंगलराज का सिर्फ एक पहलू है, धौलपुर के बसई डांग इलाके में डकैतों की ज्यादती के कई किस्से आज भी वहां की बदहाली की दास्तां बयां करते हैं.
40 हजार रुपए के इनामी जगन डकैत ने सरेंडर किया
डांग इलाके में गांव सायरपुर करनसिंह का पुरा में 12 जून को पुलिस की मुखबिरी के संदेह पर जगन गुर्जर और उसके साथियों ने न सिर्फ महिलाओं और बच्चों के साथ मारपीट की बल्कि दो महिलाओं का निर्वस्त्र कर घुमाया भी. चंबल में एक बार फिर डकैतों के आतंक का पर्याय बना जगन कभी 11 लाख रुपए का इनामी रहा जगन गुर्जर हाल ही जेल से बाहर आया और फिर से अपना खौफ पैदा करने के लिए इस वारदात को अंजाम दिया. करीब एक साल पहले ही उसने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया था. पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने के डर से 15 दिनों से जंगलों में छिपते फिर रहे जगन डकैत ने गुरुवार को सरेंडर कर दिया.
पुलिस कायम कर पाएगी कानून का राज?
बसई डांग इलाके के सायरपुर करनसिंह का पुरा जैसे गांवों में आज भी डकैतों का ही राज चलता है. एक ग्रामीण मनसा राम की माने तो डकैत यहां आए दिन कोहराम मचाते हैं. बीहड़ों से निकल कर जब भी गांवों में आते हैं उनके खाने-पीने व्यवस्था गांव वालों को ही करना होती है. 14 जून की रात को पुलिस जगन को पकड़ने में नाकाम रही और दोनों तरफ से 300 से ज्यादा फायर हुए. जानकारी के अनुसार इस दौरान जगन गुर्जर के डकैतों ने हथगोले भी फेंके. आखिर 27 जून को चारों तरफ से घीरे जगन ने मीडिया संस्थानों में फोन किया और खुद के सरेंडर करने की जानकारी दी. ऐसा हुआ भी शुक्रवार को जगन ने पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया लेकिन अब भी उसके साथी और भाई बाहर है. ऐसे में डकैतों का खौफ अब भी बरकरार है.