यूपी में सपा-बसपा गठबंधन से बाहर हुए राहुल गांधी ने कांग्रेस को मजबूत करने के लिए नया ब्लू प्रिंट तैयार किया है. इसके तहत यूपी को 13 जोन में बांटा गया है. सभी 13 जोन में राहुल रैलियां करेंगे. हर जोन में 6 लोकसभा सीटों की पहचान की जाएगी और हर जोन में राहुल एक-एक रैली करेंगे. गुलाम नबी आजाद और राज बब्बर ने इस प्लान को अंतिम रूप दे दिया है.
2019 का महासमर शुरू होने में अब बस कुछ ही दिन बचे हैं. सबसे दिलचस्प लड़ाई यूपी में होगी. बीएसपी-एसपी से जोर का झटका लगने के बाद कांग्रेस ने रणनीति बनाई है. इसके तहत राहुल गांधी फरवरी में यूपी के 13 जोन में 13 रैलियां करेंगे. इन रैलियों के माध्यम से कांग्रेस सूबे में अपनी ताकत का अहसास कराएगी.
यूपी में मायावती और अखिलेश यादव के बीच हुए गठबंधन के बाद कांग्रेस के लिए खुद को लड़ाई में बनाए रखने के लिए नए सिरे से तैयारी करनी पड़ रही है. सपा-बसपा गठबंधन के बाद बिना देरी किए कांग्रेस ने भी ऐलान कर दिया कि वे भी 2019 के इस महासमर में यूपी में अकेले लड़ेगी. राहुल ने भी दावा किया कि इस बार यूपी में मजबूती से लड़ाई लड़ेंगे.
सपा और कांग्रेस ने राज्य की 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. हालांकि किसके खाते में कौन सी सीट आएगी, इसका अभी तक निर्णय नहीं हो सका है. उम्मीद जताई जा रही कि सीटों का बंटवारा भी मंगलवार को हो जाएगा. दोनों ही दलों ने अमेठी और रायबरेली में अपना उम्मीदवार नहीं उतारने का ऐलान किया है. इन दो सीटों को छोड़कर बाकी सभी 78 सीटों पर बुआ-भतीजे के गठबंधन के उम्मीदवार मैदान में ताल ठोकेंगे.
इधर आरजेडी ने भी यूपी में मोदी सरकार के खिलाफ बने गठबंधन से खुशी जताई है. सोमवार को आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने अखिलेश यादव के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सीधे मोदी सरकार पर हमला किया था. तेजस्वी यादव के लखनऊ आने और बिहार से भी बीजेपी का सफाया करने की हुंकार ने चुनावी गठजोड़ को एक कदम और आगे बढ़ा दिया है.
कांग्रेस ने इस बात पर तसल्ली जताई है कि गठबंधन से बाहर रहने पर उन्हें अब पूरी 80 सीटों पर लड़ाई का मौका मिलेगा. अगर गठबंधन में रहते तो ये सीटें बेहद कम रहतीं.
उन्होंने उम्मीद जताई कि इस बार उन्हें 2009 में मिली सीटों से दोगुना ज्यादा सीटें मिलेंगी. हालांकि कांग्रेस ने अभी अन्य दलों के लिए अपने पत्ते नहीं खोले हैं. यानि तीसरा मोर्चा भी राज्य में नया गुल खिला सकता है. कांग्रेस ने साफ किया है कि धर्मनिरपेक्ष क्षेत्रीय पार्टियों का वे स्वागत करेंगी.