नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (यूसीसी) की अनुवर्ती कंपनियों से अतिरिक्त 7,844 करोड़ रुपये मांगने के लिए उपचारात्मक याचिका दाखिल करने पर मंगलवार को केंद्र से नाखुशी जताई। न्यायालय ने कहा कि वह न्याय-अधिकार क्षेत्र की ‘मर्यादा’ से बंधा है और सरकार कंपनी के साथ हुए समझौते को 30 साल से अधिक समय बाद दोबारा नहीं खोल सकती। शीर्ष अदालत ने कहा कि लोगों को पसंद आना न्यायिक समीक्षा का आधार नहीं हो सकता है।
उसने कहा कि वैश्वीकृत दुनिया में यह अच्छा नहीं लगता कि भले ही आपने भारत सरकार के साथ कुछ तय किया हो, इसे बाद में फिर से खोला जा सकता है। पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा, ‘‘अदालत ऐसी किसी चीज में प्रवेश नहीं करेगी जो स्वीकार्य नहीं है। मामले के पक्षों के बीच एक समझौता हुआ था और अदालत ने उसे मंजूरी दी थी। अब उपचारात्मक न्यायाधिकार के अधीन हम इसे फिर से नहीं खोल सकते। किसी मामले में हमारे फैसले का व्यापक प्रभाव होगा। आपको समझना होगा कि उपचारात्मक न्यायक्षेत्र किस सीमा तक लागू हो सकता है।” पीठ की अगुवाई न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने की जिसमें न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी शामिल रहे।