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बाग प्रिंट केवल एक हस्तशिल्प नहीं, यह संस्कृति, परंपरा और आत्म-अभिव्यक्ति का संगम है- ताहिर अली

बाग प्रिंट: एक विरासत, एक पहचान

मध्यप्रदेश के धार जिले का छोटा सा कस्बा "बाग" केवल भौगोलिक पहचान नहीं, बल्कि एक समृद्ध हस्तकला का केंद्र है। यहां विकसित हुई "बाग प्रिंट" की कला सदियों पुरानी विरासत को जीवित रखते हुए वैश्विक मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है।  यह हस्तशिल्प कला प्राकृतिक रंगों और हाथ से तराशे गए लकड़ी के ब्लॉकों के माध्यम से कपड़ों पर एक अनोखी छाप छोड़ती है। इस कला को पुनर्जीवित करने और इसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में मोहम्मद यूसुफ खत्री और उनका परिवार महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उनके अथक प्रयासों ने बाग प्रिंट को भारत और वैश्विक मंच में एक विशिष्ट पहचान दिलाई है।

बाग प्रिंट: ऐतिहासिक धरोहर का पुनर्जागरण
बाग प्रिंट की परंपरा सदियों पुरानी है और यह मूल रूप से खत्री समुदाय द्वारा संरक्षित और संवर्धित की गई। पहले यह कला केवल स्थानीय जरूरतों तक सीमित थी, लेकिन समय के साथ आधुनिक तकनीकों और मिलावट भरे रंगों के चलते इसकी पारंपरिक पहचान खतरे में पड़ने लगी। बाग प्रिंट को विलुप्त होने से बचाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका स्वर्गीय इस्माईल खत्री की रही। उन्होंने इस कला को पुनर्जीवित करने के लिए परंपरागत तकनीकों में नवाचार किए और प्राकृतिक रंगों के उपयोग को बढ़ावा दिया। बाग प्रिंट के जनक स्वर्गीय इस्माईल खत्री द्वारा स्थापित इस कला की विरासत को आज भी उनके परिवार के सदस्य पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ आगे बढ़ा रहे हैं।
बाग प्रिंट की इस समृद्ध परंपरा को जीवित रखने में मो. यूसुफ़ खत्री, स्व. मो. अब्दुल क़ादर खत्री, श्रीमती रशीदा बी खत्री, बिलाल खत्री, मो. रफ़ीक खत्री, उमर मो. फारूख खत्री, मो. काज़ीम खत्री, मो. आरिफ खत्री, अब्दुल करीम खत्री, गुलाम मो. खत्री, कासिम खत्री, अहमद खत्री और मोहम्मद अली खत्री जैसे शिल्पकारों का उल्लेखनीय योगदान है।यह परिवार कला, नवाचार और परंपरा के संतुलन को बनाए रखते हुए, बाग प्रिंट को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

बाग प्रिंट को जीवंत रखने और वैश्विक पहचान दिलाने में खत्री परिवार दशकों से दे रहा है योगदान
बाग प्रिंट को आज के दौर में जीवित रखने और आगे बढ़ाने में खत्री परिवार की कई पीढ़ियों का योगदान रहा है। उनके परिश्रम और समर्पण ने इस कला को एक नए मुकाम तक पहुंचाया है। एक समय था जब बाग प्रिंट की चमक धीरे-धीरे फीकी पड़ने लगी थी। आधुनिकता के प्रभाव में हस्तशिल्प उद्योग सिकुड़ने लगा था, लेकिन स्वर्गीय इस्माईल खत्री ने इसे पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया। उन्होंने पारंपरिक तकनीकों को संरक्षित रखते हुए, नए प्रयोग किए, जिससे बाग प्रिंट को नया जीवन मिला।
स्वर्गीय अब्दुल कादर खत्री और मोहम्मद यूसुफ खत्री ने इस यात्रा को आगे बढ़ाया और इस कला को वैश्विक मंचों तक पहुंचाया। उनके प्रयासों से यह प्रिंटिंग तकनीक सिर्फ धार जिले तक सीमित नहीं रही, बल्कि भारत और विदेशों में भी प्रसिद्ध हो गई।
कलाकारों का दृष्टिकोण – बाग प्रिंट को संजोने और वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने में खत्री परिवार की कई पीढ़ियों का योगदान रहा है। जब इस कला के संरक्षण और भविष्य को लेकर खत्री परिवार के सदस्यों और अन्य कलाकारों से चर्चा की गई, तो उनके विचारों से पता चला कि यह केवल व्यवसाय नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन है।
मो. यूसुफ़ खत्री का कहना है कि – "हमारे पिता ने हमें सिखाया कि कला केवल जीविका का साधन नहीं, बल्कि आत्मा की अभिव्यक्ति है। स्वर्गीय अब्दुल कादर भाई ने इस सीख को आत्मसात किया और बाग प्रिंट को नई ऊंचाइयों तक ले गए। हमें गर्व है कि हमारी कला आज एक पहचान बन चुकी है। हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी इस कला को जीवित रखने में लगी हुई हैं।"
श्री बिलाल खत्री (मो. यूसुफ़ खत्री के बेटे) कहते हैं: "पिता जी का सपना था कि बाग प्रिंट को एक ब्रांड के रूप में पहचाना जाए। आज, जब हम इसे वैश्विक स्तर पर देख रहे हैं, तो हमें गर्व महसूस होता है। लेकिन हमारी जिम्मेदारी यहीं खत्म नहीं होती, हमें इसे और आगे ले जाना है।"
श्रीमती रशीदा बी खत्री (स्वर्गीय श्री अब्दुल कादर खत्री की पत्नी) कहती हैं कि: "हम सब इस कला के लिए एकजुट हैं। यह सिर्फ हमारा व्यवसाय नहीं, बल्कि हमारी परंपरा और पहचान है। जब हम किसी कपड़े पर हाथ से छपाई करते हैं, तो उसमें हमारी आत्मा झलकती है।"
एक अमूल्य धरोहर की यात्रा
बाग प्रिंट केवल एक हस्तशिल्प नहीं, बल्कि यह संस्कृति, परंपरा और आत्म-अभिव्यक्ति का संगम है। यह एक ऐसी कला है, जो समय की कसौटी पर खरी उतरी है और आधुनिकता की चुनौतियों के बावजूद अपनी मौलिकता बनाए रखने में सफल रही है।
इस यात्रा को करीब से देखने के बाद, यह स्पष्ट होता है कि बाग प्रिंट को जिंदा रखना केवल एक परिवार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है। यह एक ऐसी धरोहर है, जिसे अगर समय रहते संरक्षित नहीं किया गया, तो यह केवल संग्रहालयों की वस्तु बनकर रह जाएगी।
खत्री परिवार इस कला को जीवित रखने के लिए जिस जुनून और समर्पण के साथ काम कर रहे हैं, वह काबिले-तारीफ है। लेकिन यह भी जरूरी है कि सरकार और समाज मिलकर इस कला को और अधिक समर्थन दें। आर्ट फंडिंग, डिज़ाइन इनोवेशन और डिजिटल मार्केटिंग जैसी नई रणनीतियों को अपनाकर इसे और अधिक व्यापक रूप से प्रचारित किया जा सकता है।
बाग प्रिंट को लेकर उनका क्या अनुभव रहा?
श्री उमर फ़ारूख़ खत्री इस सवाल के जवाब में कहते हैं, "शुरुआत में लोगों को समझाना बहुत मुश्किल था कि यह केवल एक परंपरागत कला नहीं, बल्कि एक जीवंत धरोहर है। धीरे-धीरे जब हमारे डिज़ाइनों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली, तो हमें लगा कि हम सही दिशा में जा रहे हैं। आज, जब विदेशों में लोग हमारे प्रिंट पहने हुए दिखते हैं, तो खुशी का अहसास होता है।"
भविष्य की संभावनाएं
बाग प्रिंट आज दुनिया के कई देशों में अपनी पहचान बना चुका है। स्पेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली, अमेरिका, कोलंबिया, थाईलैंड, रूस, चीन, अर्जेंटीना और बहरीन में इस कला का प्रदर्शन किया जा चुका है। श्री आरिफ़ खत्री कहते हैं: "हमारी अगली पीढ़ी को बाग प्रिंट को केवल संरक्षित नहीं, बल्कि इसे और अधिक वैश्विक बनाना होगा। नई तकनीकों और डिजाइनों से इसे आधुनिक फैशन उद्योग से जोड़ना हमारा लक्ष्य है। इससे न केवल इस कला को नया जीवन मिलेगा, बल्कि हमारे शिल्पकारों को भी अधिक अवसर प्राप्त होंगे।" यूसुफ खत्री भी इस बात पर सहमति जताते हैं। उनका मानना है कि बाग प्रिंट को सिर्फ पारंपरिक कपड़ों तक सीमित न रखते हुए, इसे होम डेकोर, एक्सेसरीज़ और आधुनिक फैशन ब्रांड्स के साथ जोड़ना होगा।
श्री बिलाल खत्री इस दिशा में कई नवाचार कर रहे हैं। वे कहते हैं, "आज, जब दुनिया सस्टेनेबल फैशन और इको-फ्रेंडली प्रोडक्ट्स की ओर बढ़ रही है, बाग प्रिंट की प्राकृतिक रंगाई और हस्तनिर्मित छपाई इसे एक अनोखी और टिकाऊ कला बनाती है। हमें इसे बड़े डिज़ाइन हाउस और फैशन ब्रांड्स तक पहुंचाने का प्रयास करना होगा।"
युवा पीढ़ी की भूमिका
बाग प्रिंट को नई ऊंचाइयों तक ले जाने में युवा कलाकारों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। बिलाल खत्री जैसे युवा कलाकार अब इस कला को डिजिटल युग और अंतरराष्ट्रीय बाजारों के साथ जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं।
"हमारी अगली पीढ़ी को बाग प्रिंट को केवल संरक्षित नहीं, बल्कि इसे और अधिक वैश्विक बनाना होगा। नई तकनीकों और डिजाइनों से इसे आधुनिक फैशन उद्योग से जोड़ना हमारा लक्ष्य है।" — श्री आरिफ खत्री (स्वर्गीय अब्दुल कादर खत्री के बेटे)
हमारा लक्ष्य सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि हमारी परंपरा को जीवित रखना है
यूसुफ खत्री और उनका परिवार इस दिशा में सराहनीय कार्य कर रहे हैं। अगर इसी गति से नवाचार और विस्तार जारी रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब बाग प्रिंट वैश्विक फैशन और आर्ट इंडस्ट्री का अभिन्न हिस्सा बन जाएगा।
स्वर्गीय श्री अब्दुल कादर खत्री कहते थे कि "हमारा लक्ष्य सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि हमारी परंपरा को जीवित रखना है। जब कोई युवा इसे सीखता है और अपनी आजीविका बनाता है, तो हमें सबसे ज्यादा खुशी होती है।"
बाग प्रिंट सिर्फ एक कला नहीं, बल्कि यह भारत की आत्मा का प्रतिबिंब है। यह एक ऐसी विधा है, जिसने समय के साथ खुद को ढालते हुए भी अपनी मौलिकता नहीं खोई है। लेखक के रूप में इस यात्रा को समझने के बाद, यह स्पष्ट होता है कि बाग प्रिंट का भविष्य तभी उज्ज्वल रहेगा जब यह केवल एक पारंपरिक कला नहीं, बल्कि एक विकसित और व्यावसायिक रूप से सफल ब्रांड बने। इसके लिए सरकार, समाज, और शिल्पकारों को मिलकर काम करना होगा।
परंपरागत बाग प्रिंट कार्य-विधि (संक्षिप्त विवरण)
बाग प्रिंट की पूरी प्रक्रिया को विभिन्न चरणों में विभाजित किया जाता है, जिसमें कपड़े की तैयारी, रंगाई, छपाई, और अंतिम परिष्करण शामिल हैं।
1. खारा विधि – कपड़े को धोकर सुखाया जाता है और बकरी की मेंगनी व अरंडी तेल के घोल में डुबोया जाता है। फिर इसे भूमिगत तापमान पर रखा जाता है और बहते पानी में धोया जाता है। यह प्रक्रिया कपड़े को मुलायम बनाती है और रंगों को बेहतर अवशोषित करने में मदद करती है।
2. पीला विधि – कपड़े को हरड़ के घोल में डुबोकर धूप में सुखाया जाता है, जिससे यह पीले रंग का हो जाता है। इसे ही "बेस" कहा जाता है, जो छपाई के लिए कपड़े को तैयार करता है।
3. लाल और काला रंग निर्माण
•लाल रंग: फिटकरी, गोंद और इमली के बीज से तैयार किया जाता है।
•काला रंग: लोहे की जंग, गुड़, गेहूं का आटा और चूने के मिश्रण को 8-10 दिन तक सड़ाकर बनाया जाता है।
4. ब्लॉक प्रिंटिंग – लकड़ी के ब्लॉकों (भांतों) की मदद से हाथों से छपाई की जाती है। संतुलित दबाव और कोनों की सटीक छपाई से उत्कृष्ट डिज़ाइन उभरते हैं।
5. विछलियाँ विधि – छपे हुए कपड़े को नदी के बहते पानी में धोकर अतिरिक्त रंग हटाया जाता है।
6. भट्टी विधि -कपड़े को प्राकृतिक रंगों के घोल में उबाला जाता है, जिससे लाल, काले और सफेद रंगों में निखार आता है।
7. तपाई विधि -कपड़े को पत्थरों पर सुखाया जाता है, जिससे यह स्वाभाविक रूप से सफेद और चमकदार हो जाता है।
8. अन्य रंग निर्माण –
•खाकी रंग: धावड़े के पत्तों और अनार के छिलकों से बनाया जाता है।
•नीला रंग: इंडिगो पौधे के पत्तों से तैयार किया जाता है।
•हरा रंग: इंडिगो से रंगे कपड़े को अनार के छिलकों या धावड़े के पत्तों के घोल में डुबोकर बनाया जाता है।
बाग प्रिंट की यह पारंपरिक विधि पूरी तरह से प्राकृतिक और पर्यावरण के अनुकूल है, जो इसे एक अनोखी और टिकाऊ कला बनाती है।
बाग प्रिंट में खत्री परिवार के प्रमुख शिल्पकारों का योगदान
बाग प्रिंट भारत की एक प्राचीन हस्तकला है, जिसमें प्राकृतिक रंगों और हाथ से बने लकड़ी के ब्लॉकों का उपयोग कर कपड़ों पर सुंदर और जटिल डिज़ाइन उकेरे जाते हैं। मध्य प्रदेश के धार जिले के बाग कस्बे में इस कला को जीवित और विकसित करने में कई प्रमुख शिल्पकारों का योगदान रहा है। इनमें से कुछ प्रमुख नाम इस प्रकार हैं:
श्री इसमाईल सुलेमानजी खत्री – श्री इसमाईल सुलेमानजी खत्री बाग प्रिंट ठप्पा छपाई कला के जनक और संरक्षक थे, जिन्होंने इस परंपरागत कला को वैश्विक पहचान दिलाई। मध्यप्रदेश के मनावर में जन्मे, उन्होंने अपने पिता से इस विरासत को अपनाया और इसके संरक्षण व विकास में जीवन समर्पित कर दिया। 1946 में गांधीवादी आंदोलन के दौरान हाथ की छपाई को बढ़ावा मिला, जिससे उन्होंने नान्दना प्रिंट और अलिजरीन प्रिंट जैसी नई तकनीकों को विकसित किया।
उन्होंने आदिवासी और पारंपरिक लोक कलाओं को बाग प्रिंट में समाहित कर इसे नया आयाम दिया। 1977-78 में उन्हें राज्य स्तरीय पुरस्कार और 1984 में राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। समाजसेवा की भावना से प्रेरित होकर, उन्होंने गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले 2500 से अधिक युवाओं को निःशुल्क प्रशिक्षण दिया, जिससे कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित हुए।
उनके शिष्य, विशेष रूप से मोहम्मद यूसुफ खत्री, इस कला को आगे बढ़ा रहे हैं और बाग प्रिंट को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। श्री इसमाईल सुलेमानजी खत्री का योगदान न केवल इस कला के संरक्षण में है बल्कि इसके भविष्य को भी सुनिश्चित करने में अहम रहा है।
श्रीमती जैतून बी (पत्नी स्व. इस्माईल खत्री) – श्रीमती जैतून बी बाग प्रिंट की वयोवृद्ध शिल्पकार थीं, जिन्होंने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। उनके पिता श्री इलियास खत्री ने गुजरात के दाहोद में इस कला को जीवित रखा था, जिससे उन्होंने इसे सीखा। विवाह के बाद वे मध्य प्रदेश आईं और अपने पति, स्व. इस्माईल खत्री, जो बाग प्रिंट के जनक माने जाते हैं, के साथ मिलकर इस कला को विकसित किया। उन्होंने गुजरात की लोक कला और मध्य प्रदेश की आदिवासी लोक कला को मिलाकर बाग प्रिंट को विशिष्ट पहचान दी। उनके प्रयासों से कई महिलाओं और युवाओं को प्रशिक्षण मिला, जिससे यह कला रोजगार का माध्यम बनी।
स्व. अब्दुल कादिर खत्री – स्वर्गीय अब्दुल कादिर खत्री, इस्माईल खत्री के पुत्र, बाग प्रिंट के एक अनुभवी शिल्पकार थे, जिन्होंने इस हस्तकला को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाया। उन्होंने पारंपरिक डिज़ाइनों में आधुनिकता जोड़ते हुए इसे नया रूप दिया और इसे व्यावसायिक रूप से स्थापित करने में मदद की। वे निफ्ट (नई दिल्ली, अहमदाबाद) जैसे प्रमुख फैशन संस्थानों में छात्रों को प्रशिक्षण देते थे। उन्हें भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार, यूनेस्को और वर्ल्ड क्राफ्ट्स काउंसिल द्वारा अंतरराष्ट्रीय अवार्ड ऑफ एक्सीलेंस मिला।
रशीदा बी खत्री (पत्नी स्व. अब्दुल कादिर खत्री) – रशीदा बी खत्री ने अपने ससुर इस्माईल खत्री और पति अब्दुल कादिर से बाग प्रिंट की कला सीखी और उनके निधन के बाद भी इसे आगे बढ़ाया। उन्होंने बैम्बू मैट, लैदर और जूट पर बाग प्रिंट के प्रयोग किए, जिससे इस कला का विस्तार हुआ। उन्हें राष्ट्रीय मेरिट पुरस्कार और मध्य प्रदेश सरकार द्वारा विशिष्ट राज्य स्तरीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
शिल्प गुरु मोहम्मद युसूफ खत्री – मोहम्मद युसूफ खत्री बाग प्रिंट के शिल्प गुरु माने जाते हैं और उनके पास 47 वर्षों का अनुभव है। उन्होंने नए वेजिटेबल डाई (प्राकृतिक रंग) विकसित किए, जिससे बाग प्रिंट की अंतरराष्ट्रीय मांग बढ़ी। वे दो राष्ट्रीय पुरस्कार, सात अंतरराष्ट्रीय यूनेस्को पुरस्कार और "शिल्प गुरु" पुरस्कार से सम्मानित हैं। उन्होंने सैकड़ों जनजातीय, पिछड़े वर्ग और निर्धन युवाओं को प्रशिक्षित किया और जर्मनी, फ्रांस, इटली, अमेरिका, स्पेन, अर्जेंटीना जैसे देशों में भारतीय शिल्प को बढ़ावा दिया।
श्रीमती हसीना खत्री (पत्नी मोहम्मद युसूफ खत्री) – हसीना खत्री ने अपने पति और ससुराल में रहते हुए बाग प्रिंट सीखा और इस कला में योगदान दिया। उन्होंने परंपरागत तकनीकों को नई डिज़ाइनों के साथ जोड़कर विकसित किया और राष्ट्रीय स्तर की प्रदर्शनियों में भाग लिया। उन्हें मध्य प्रदेश सरकार द्वारा "विश्वकर्मा पुरस्कार" से सम्मानित किया गया।
श्री मोहम्मद रफीक खत्री – मोहम्मद रफीक खत्री, इस्माईल सुलेमानजी खत्री के पुत्र, बाग प्रिंट के कुशल शिल्पकारों में से एक हैं। उन्होंने बहुत कम उम्र में यह कला सीखी और नए डिज़ाइनों तथा रंग संयोजन का प्रयोग किया। वे स्पेन, पुर्तगाल, इजराइल जैसी जगहों पर अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में भाग ले चुके हैं और कई राष्ट्रीय तथा राज्य स्तरीय पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं।
श्री मोहम्मद दाऊद खत्री – मोहम्मद दाऊद खत्री पारंपरिक बाग प्रिंट शिल्पी हैं, जिन्होंने बचपन में ही इस कला को सीख लिया था। वे मध्य प्रदेश सरकार के सिल्क फैडरेशन और खादी ग्रामोद्योग के लिए बाग प्रिंट की साड़ियों, सूट, दुपट्टे, स्टोल और अन्य कपड़ों की आपूर्ति कर चुके हैं। उन्होंने कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पुरस्कार प्राप्त किए हैं और बाग प्रिंट को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई है।
श्री उमर फारूक खत्री – उमर फारूक खत्री, इस्माईल सुलेमानजी खत्री के पुत्र, बाग प्रिंट में नये प्रयोग करने वाले कलाकारों में से एक हैं। उन्होंने इंडिगो डाई (नील) के प्रयोग को पुनर्जीवित किया और राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पुरस्कार प्राप्त किए।
श्री मोहम्मद बिलाल खत्री – मोहम्मद बिलाल खत्री बाग प्रिंट की नई पीढ़ी के उभरते हुए कलाकारों में से एक हैं। उन्होंने पारंपरिक डिज़ाइनों में आधुनिक तकनीकों का समावेश किया और राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में भाग लेकर बाग प्रिंट को नई पहचान दिलाई।
श्री अरिफ खत्री – अरिफ खत्री बाग प्रिंट के समर्पित शिल्पकारों में से एक हैं, जो इस कला को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में जुटे हैं। उन्होंने अपने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए बाग प्रिंट में नवीन प्रयोग किए और प्राकृतिक रंगों के साथ आधुनिक डिज़ाइन विकसित किए। उनकी कलाकृतियों ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में खास पहचान बनाई है। वे युवा शिल्पकारों को प्रशिक्षित कर इस पारंपरिक कला को संजोने का कार्य कर रहे हैं।
बाग प्रिंट कला को जीवित रखने और विकसित करने में इन शिल्पकारों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। उनकी मेहनत और नवाचारों के कारण यह कला भारत ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सम्मान प्राप्त कर चुकी है।
1.    स्व. श्री ईस्माइल खत्री
बाग प्रिंट के जनक
2.    स्व. श्रीमती जैतून बी खत्री
बाग प्रिंट शिल्पी
3.    स्व. श्री अब्बदुल कादर खत्री
बाग प्रिंट शिल्पकार
4.    श्रीमती राशीदा बी खत्री
बाग प्रिंट शिल्पी
5.    श्री युसूफ खत्री
बाग प्रिंट शिल्पकार
6.    श्रीमती हसीना खत्री
बाग प्रिंट शिल्पी
7.    श्री मोहम्मद रफीक खत्री
बाग प्रिंट शिल्पकार
8.    श्री मोहम्मद दाऊद खत्री
बाग प्रिंट शिल्पकार
9.    श्री उमर फारूख खत्री
बाग प्रिंट शिल्पकार
10.    श्री  मोहम्मद बिलाल खत्री
बाग प्रिंट शिल्पकार
11.    श्री आरिफ खत्री
बाग प्रिंट शिल्पकार
प्रधानमंत्री श्री मोदी ने ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट भोपाल में बाग प्रिंट कला को सराहा
खुद बाग प्रिंट का ठप्पा लगाकर पारंपरिक कला को किया प्रोत्साहित
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने ग्लोबल इन्वेस्टर समिट भोपाल में एमपी पवेलियन का अवलोकन किया। जहां मध्यप्रदेश के हस्तशिल्प, टेक्सटाइल और स्थानीय उद्योगों का प्रदर्शन किया गया। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने बाग प्रिंट के युवा शिल्पकार मोहम्मद आरिफ खत्री के स्टॉल का अवलोकन किया और खुद बाग प्रिंट का ठप्पा लगाकर इस पारंपरिक कला की महत्ता को रेखांकित किया। इस अवसर पर राज्यपाल श्री मंगुभाई पटेल, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सहित अन्य गणमान्य जन उपस्थित थे। भोपाल में आयोजित दो दिवसीय ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में  60 देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए, जिनमें 13 राजदूत, 6 उच्चायुक्त और कई महावाणिज्यदूत मौजूद रहे।
उल्लेखनीय है कि आरिफ खत्री, जो 15 वर्षों से इस कला में सक्रिय हैं, ने बाग प्रिंटिंग को आधुनिक डिजाइनों और तकनीकों से जोड़ते हुए इसे वैश्विक पहचान दिलाई है। उन्हें 2021 में यूनेस्को एवं विश्व शिल्प परिषद द्वारा अवार्ड ऑफ एक्सीलेंस से सम्मानित किया गया था। उनके परिवार ने अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, जापान, रूस, स्पेन सहित कई देशों में बाग प्रिंट का प्रदर्शन कर भारत और मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया है।

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