अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ आज आदेश देगी कि इस मामले को कोर्ट द्वारा नियुक्त मध्यस्थता को सौंपा जाए या नहीं। इससे पहले पिछले मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले को सुलझाने के लिए मध्यस्थता का सुझाव देते हुए कहा था कि वह रिश्तों को सुधारने की संभावना पर विचार कर रहा है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा था कि इस मामले को न्यायालय द्वारा नियुक्त मध्यस्थता को सौंपने या नहीं सौंपने के बारे में पांच मार्च को आदेश दिया जायेगा। पीठ ने कहा था कि अगर मध्यस्थता की एक फीसदी भी संभावना हो तो राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील इस भूमि विवाद के समाधान के लिये इसे एक अवसर दिया जाना चाहिए।
– संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस के बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। पीठ ने न्यायालय की रजिस्ट्री से कहा कि सभी पक्षकारों को छह सप्ताह के भीतर सारे दस्तावेजों की अनुदित प्रतियां उपलब्ध कराये। पीठ ने कहा कि इस मामले पर अब आठ सप्ताह बाद सुनवाई की जायेगी।
– शीर्ष अदालत ने पिछले मंगलवार को कहा कि वह इस आठ सप्ताह की अवधि का इस्तेमाल मध्यस्थता की संभावना तलाशने के लिये करना चाहता है। इसके बाद ही इस मामले में सुनवाई की जायेगी। इस मामले में सुनवाई के दौरान जहां कुछ मुस्लिम पक्षकारों ने कहा कि वे इस भूमि विवाद का हल खोजने के लिये न्यायालय द्वारा मध्यस्थता की नियुक्ति के सुझाव से सहमत हैं वहीं राम लला विराजमान सहित कुछ हिन्दू पक्षकारों ने इस पर आपत्ति करते हुये कहा कि मध्यस्थता की प्रक्रिया पहले भी कई बार असफल हो चुकी है।
– पीठ ने पक्षकारों से पूछा कि क्या वे इस भूमि विवाद का हल खोजने के लिये मध्यस्थता की संभावना तलाश सकते हैं और कहा, ”यदि एक प्रतिशत भी उम्मीद हो तो मध्यस्थता की जानी चाहिए। क्या आप गंभीरता से यह समझते हैं कि इतने सालों से चल रहा यह पूरा विवाद संपत्ति के लिये है? हम सिर्फ संपत्ति के अधिकारों के बारे में निर्णय कर सकते हैं परंतु हम रिश्तों को सुधारने की संभावना पर विचार कर रहे हैं। इस पर, एक मुस्लिम पक्षकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले का जिक्र किया और कहा कि पहले भी मध्यस्थता का प्रयास किया गया लेकिन वह असफल रहा।