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कला और संस्कृति देती है जीवन जीने की कला- संतोष चौबे

– कलाकारों की छटपटाहट को शांत कर रहा है विश्वरंग

– विश्वरंग के चौथे दिन हिंदी कहानियों के सुर्ख रंग कथादेश का लोकार्पण

आम सभा, भोपाल। टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव विश्वरंग के चौथे दिन गुरुवार को मिंटो हॉल के सभागार में विश्वरंग स्वागत वक्तव्य में बताते हुए संतोष चौबे ने कहा कि टैगोर की कविताएं हमेशा मुक्त होकर सृजन की बात करती हैं। नए जीवन को जीने के लिए उपयुक्त उपकरण विज्ञान के पास नहीं बल्कि साहित्य और कला के पास है। विश्वरंग के विन्यास से लोगों को परिचित कराते हुए बताया कि यह महोत्सव टैगोर की रचनात्मकता से शुरू होकर पूरे विश्व मे फैल रहा है। विश्व रंग के आरंभ में दो सौ वर्षों की 630 कहानियों का सुर्ख संकलन कथादेश का विमोचन हुआ। तीन हज़ार कहानियों के अध्ययन, परीक्षण, के बाद अट्ठारह खण्डों में सजाई गई कहानियों के संग्रह कथादेश को मंचासीन विभूतियों ने लोकार्पित किया। साहित्य उत्सव के मध्य में ‘कविता का विश्वरंग’ दस्तावेज़ का लोकार्पण भी किया गया। जिसमें कविता पाठ में शामिल सभी कवियों और अन्य प्रख्यात कवियों के शब्दों में रची-बसी कविताओं को संग्रहित किया गया है। जिसका संपादन यादवेन्द्र और राकी गर्ग ने किया। इस दौरान रबींद्र कैटलॉग का भी लोकार्पण किया गया।

इस अवसर पर पद्मश्री रमेश चंद शाह ने कहा आयोजन में हिंदी का विवरण और विश्व का हिंदी रंग दिखाई दे रहा है और यह सिर्फ एक बार का आयोजन नहीं है, यह सतत चलने वाला है, जिन्हें आने वाले समय में इस तरह के आयोजन होते रहेंगे और हम हिंदी को विश्व स्तर पर देखेंगे। टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव विश्वरंग के साहित्य उत्सव में मध्यप्रदेश शासन की सांस्कृतिक मंत्री विजय लक्ष्मी साधौ के साथ साहित्य अकादमी से सम्मानित मृदुला गर्ग, शीनकाफ निजाम, डॉ चित्रा मुद्गल, पद्मश्री से सम्मानित डॉक्टर रमेश चंद्र शाह, प्रख्यात हिंदी आलोचक डॉ धनंजय वर्मा, फिल्म अभिनेता रजत कपूर, अमेरिका से आईं प्रवासी हिंदी लेखिका डॉ सुषम बेदी, रूस से आमंत्रित प्राध्यापक प्रतिनिधि लुडमिला खोखोलोवा, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की हेड मौली कौशल, टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति व विश्व रंग के निदेशक संतोष चौबे, कथादेश के संपादक एवं कथाकार मुकेश वर्मा, विश्वरंग के सह निदेशक लीलाधर मंडलोई, सिद्धार्थ चतुर्वेदी, टैगोर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर ए.के. अग्रवाल, राष्ट्रीय वनमाली कथा सम्मान से सम्मानित प्रियवंद की उपस्थिति ने साहित्य उत्सव को गौरवान्वित किया। साहित्य के इस उत्सव का प्रवाहमय संचालन कर प्रसिद्ध कला समीक्षक व टैगोर विश्वकला एवं संस्कृति केंद्र के निदेशक विनय उपाध्याय ने मंच की शोभा बढ़ाई।

अठारह जिल्दों में भारत की हिंदी कहानियों का एक सम्यक कोश है कथादेश

लगभग सवा सौ साल के परिदृश्य में लिखी गई कहानियों में से 650 प्रतिनिधि कहानियों को जिल्दबद करता यह वृहद कथा कोश 18 खंडों में विभाजित है। इसमें उन कहानियों का समन्यव है जिसमें काल चेतना के साथ अपना रचनात्मक सामंजस्य स्थापित करते हुए नवीन सौंदर्य अभिरुचियों का सृजन किया है। साथ ही कहानी की संपूर्ण विकास यात्रा सांगोपांग रेखांकन व निरीक्षण करते 75 से अधिक आलोचनात्मक आलेखों तथा संकलित प्रत्येक कहानी पर स्वतंत्र टिप्पणियों को भी संग्रहित किया गया है जो पाठक की दृष्टि भंगिमा का समुचित निर्देशन करेंगे। प्रत्येक खंड अलग-अलग होते हुए भी एक-दूसरे से परस्पर संबद्ध है। पाठक चाहे तो इसे स्वतंत्र संग्रह के रूप में भी पढ़ सकते हैं। क्रमवार अध्ययन हिंदी कहानी की प्रांजल विरासत का आज के पाठक से अवश्य ही साक्षात्कार करवा सकेंगे। इसकी उपयोगिता कहानी के शोधार्थियों के लिए है ही, कथा रस के सामान्य आस्वादकों के लिए भी है।

प्रियंवद को राष्ट्रीय वनमाली कथा सम्मान से किया सम्मानित

वनमाली सृजन पीठ द्वारा प्रत्येक दो वर्षों में दिए जाने वाले प्रतिष्ठित राष्ट्रीय वनमाली कथा सम्मान से लोकप्रिय और चर्चित कथाकार प्रियंवद को गुरुवार को विश्व रंग के मुख्य समारोह में सम्मानित किया गया। इस दौरान उन्हें प्रशस्ति पत्र, शॉल, प्रतीक चिह्न और एक लाख रुपए की राशि भेंट की गई। इससे पूर्व वनमाली कथा सम्मान पर निर्मित फिल्म का प्रदर्शन भी किया गया। कथाकार प्रियंवद का चयन कहानी में उनके सरस कथन और विरल क्राफ्ट को दृष्टिगत करते हुए किया गया। वे प्रेम के अद्वितिय चितेरे हैं। उनकी भाषा ठेठ गद्य की भाषा है और सूक्ष्म अन्वेषण के चलते वे कथा को अधिक प्रभावी तथा विश्वसनीय बनाते हैं। गौरतलब है कि कथा सम्मान की स्थापना कथाकार जगन्नाथ प्रसाद चौबे `वनमाली’ की स्मृति में 1993 में की गई थी।

पुरस्कार प्राप्ति के बाद प्रियवंद ने बताया परास्नातक की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण करने के बाद पहली बार गुरु ने चाय पिलाकर पुरस्कृत किया था। उस दिन मैं बहुत खुश हुआ था और आज इस पुरस्कार से अलंकृत होकर ठीक उसी आनंद की अनुभूति हो रही है।

ध्रुपद गायन से सुसज्जित रही विश्व रंग की संध्या

विश्व रंग के चौथे दिन की संध्या का शुभारम्भ हुआ शास्त्रीय संगीत के एक अनूठी और अप्रतिम शैली “ध्रुपद गायन” से। पद्मश्री गुंदेजा बंधुओं ने राग भोपाली में गणेश वंदना “शंकर सूत गणेशा” के साथ संध्या का शुभारंभ किया। पद्मश्री श्री रमाकांत और उमाकांत गुंदेचा ने भोपाल में ध्रुपद संस्थान की स्थापना की थी। कार्यक्रम के दौरान उन्होंने निराला द्वारा रचित टूटे सकल बंध, राग शंकरा की प्रस्तुति दी। क्रायक्रम के अंत में उन्होंने शिव आराधना की ऐसी अनूठी प्रस्तुति दी कि सभागार में उपस्थित हिंदी भाषी जनों के साथ ही मौजूद विदेशी अतिथि भी ओतप्रोत नज़र आये।

प्रकृति के बेहद करीब मानव जीवन का दर्शन है करमा-सैला नृत्य

रबींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित साहित्य और कला के महोत्सव विश्व रंग के चौथे दिन सांस्कृतिक संध्या में छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले से आए आदिवासी कलाकारों ने करमा सैला नृत्य की मनोरम प्रस्तुति दी।

छत्तीसगढ़ से करमा सैला की प्रस्तुति देने आईं अग्नेश केरकेट्टा और गीता नाग ने बताया कि करमा एक पेड़ का नाम है जिसकी भगवान के रूप में पूजा की जाती है। इस पेड़ को सदियों से छत्तीसगढ़ के उरांव आदिवासी अंचल के लोग पूजते आ रहे हैं। विशेष रूप से कुंवारी लड़कियां अच्छे वर की प्राप्ति और खेतों में अच्छी फसल की कामना करते हुए करमा पेड़ की करमा सैला नृत्य कर आराधना करती हैं। इस दौरान आदिवासी युवतियां पूरे दिन उपवास रखती हैं और पूरी रात करमा पेड़ का पूजन करती हैं। अग्नेश केरकेट्टा के संयोजन में 20 कलाकारों ने ‘करमा करमा कहालै गे आयो’ , उरांव मुंडा खड़िया सबै आदिवासी’ समेत 12 गीतों पर नृत्य की प्रस्तुति दी। खास बात यह है कि यह कलाकार मांदर, नगाड़ा, ढोल, मंजीरे जैसे वाद्य यंत्रों के साथ गीत गाते हुए नृत्य करते हैं। इस नृत्य के दौरान आदिवासी महिलाएं ठोसा की माला, कलिंगा, पैड़ा के साथ खादी से तैयार मोठा पहनकर नृत्य करती हैं।

जलियांवाला बाग प्रदर्शनी में दिखा आजादी का संघर्ष

रबींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव विश्व रंग के चौथे दिन गुरुवार को जलियांवाला बाग नरसंहार पर पार्टीशन म्यूजियम द्वारा प्रदर्शनी लगाई गई। जलियांवाला बाग के शताब्दी वर्ष पर आयोजित इस प्रदर्शनी में नरसंहार के दौरान की तस्वीरों और संबंधित सूचनाओं को साझा किया गया। जलियांवाला बाग प्रदर्शनी की परिकल्पना करने वाली लेखिका डॉ किश्वर देसाई ने कहा कि जलियांवाला बाग एक दिन का हादसा नहीं था। अंग्रेज सरकार कई दिनों से इसकी योजना बना रही थी। देसाई ने बताया कि जनरल डायर की गोलियों से डरकर कोई भी भारतीय कुएं में नहीं कूदा था बल्कि भगदड़ में कुछ लोग गिर गए थे। अंग्रेज लेखकों ने जलियांवाला बाग नरसंहार की घटना का सही वर्णन नहीं किया। नरसंहार हमारी आज़ादी की लड़ाई का टर्निंग पॉइंट है। इसलिए हमें अपनी आजादी की गंभीरता का सम्मान करना चाहिए।

हमारी संस्कृति की पूरी झलक विश्वरंग में देख सकते हैं- शिवराज

मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम में शामिल हुए पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मैं टैगोर विश्विद्यालय को विश्वरंग का आयोजन करने के लिए धन्यवाद देता हूं। यह विश्व का ऐसा अनूठा आयोजन है जिसमें विश्व के सभी रंग अपनी पूरी चमक के साथ मौजूद हैं। हमारी संस्कृति की पूरी छटा भी विश्वरंग में दिखाई दे रही है। शिवराज सिंह ने कहा जलियांवाला बाग प्रदर्शनी से आजादी की लड़ाई का संघर्ष पता चलता है। अंग्रेजों ने हमें चांदी की थाली में परोसकर आजादी नहीं दी थी। इसके लिए हजारों भाइयों-बहनों ने जान तक गंवाई है और इस बात का ज्ञान भावी पीढ़ी को होना चाहिए। उन्होंने विश्वविद्यालय प्रबंधन को इस बात की शुभकामना दी कि इतिहास के ऐसे पन्नों से युवाओं को अवगत कराया जा रहा है। यह जरूरी है नहीं तो हम बलिदान देने वाले शहीद भाइयों को भूल जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा कि कविता, कला, साहित्य के बिना कोई जीवन नहीं हो सकता। जिस तरह मनुष्य केवल शरीर ही नहीं उसका मन भी है और मन को कला साहित्य संस्कृति से सुख मिलता है इसी तरह बुद्धि का भी सुख होता है और आत्मा का भी सुख। आत्मा का सुख दूसरों की भलाई करने से होता है परोपकार करने से होता है।

कार्यक्रम की शुरुआत में विश्व रंग के निदेशक संतोष चौबे ने स्वागत भाषण देते हुए कहा देश में पहली बार है कि कोई शैक्षिक संस्थान साहित्य और कला का कार्यक्रम कर रहा है। विश्वरंग साहित्य, कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में पूरे एशिया में एक नई शुरुआत है। रबींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय विज्ञान पर ही उतना ही जोर देता है जितना कलाओं पर देता है। साथ ही हिंदी और भारतीय भाषाओं पर जोर देता है। हमें अपने देश की बोलियों को भी अपने बीच शामिल करना होगा। हिंदी को केंद्र में रखकर हमें अपनी भाषाओं के वैश्विक विकास की बात करनी है। विश्व रंग के तहत हमने पुस्तक यात्रा निकाली। यह मानना गलत है कि लोग किताबें नहीं पढ़ते, हम लोगों तक नहीं पहुंच पाते। हमें किताबों को लेकर गांवों-कस्बों तक पहुंचना है। पुस्तक यात्रा ने एक बड़ा माहौल बनाया, इस विश्व रंग तक आने का। जलियांवाला बाग प्रदर्शनी यह बताती है कि हमने किस तरह से आजादी पाई और देश यहां तक कैसे पहुंचा। संचालन विश्व रंग के सह-निदेशक सिद्धार्थ चतुर्वेदी ने किया।

कविता का विश्वरंग कविता संग्रह का विमोचन

विश्व रंग के चौथे दिन पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विश्व रंग में आयोजित काव्य पाठ पर आधारित कविता संग्रह ‘कविता का विश्व रंग’ और विश्व रंग के किटबैग का लोकार्पण भी किया।

आर्मी बैंड ने प्रस्तुत किये देशभक्ति के तराने

टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव विश्वरंग में मिंटो हॉल के मुक्ताशय मंच से इंडियन आर्मी बैंड ने देशभक्ति गीतों की सुरमय प्रस्तुति दी। इंडियन आर्मी बैंड की इस प्रस्तुति ने श्रोताओं में राष्ट्रभावना का संचार करते हुए गर्मजोशी से भर दिया। इंडियन आर्मी के थ्री ईएमई सेंटर बैंड ने मेरा भारत महान, कदम कदम बढ़ाए जा, सारे जहां से अच्छा के साथ साथ दस गानों को देशभक्ति की मार्शल धुनों में पिरोया।

मेनस्ट्रीम सिनेमा का उद्देश्य पैसा कमाना- रजत कपूर

टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव विश्वरंग में शिरकत करने पहुंचे प्रसिद्ध अभिनेता, लेखक व फिल्म निर्माता रजत कपूर ने विशेष बातचीत में बताया कि आज का सिनेमा बदलाव के लिए नहीं बल्कि पैसे कमाने के लिए फिल्में बना रहा है। हमारा सिनेमा समाज को रिफ्लेक्ट करता है तो हमें जरूरत है कि हम अपने सिनेमा के जरिए आम जीवन को दर्शकों तक पहुंचाएं। रबीन्द्रनाथ टैगोर की विरासत को याद करते हुए रजत ने कहा कि टैगोर पूरे भारत की मानसिकता में आज भी ज़िंदा हैं।

विश्व के सभी रंगों को मंच दे रहे विश्वरंग के बारे में बताते हुए रजत कपूर ने कहा कि यह महोत्सव कलाकारों के स्वप्न को समायोजित कर रहा है। बचपन से ही साहित्य से जुड़ाव रखने वाले रजत सभी कलाओं में कोई फ़र्क नहीं देखते और विश्वरंग को कला और कलाकारों का एक नया भविष्य मानते हैं।

पारंपरिक लोक नृत्यों की प्रस्तुति ने मोहा मन

उज्जैन की लोक कलाकार व लोक गुंजन संस्था से जुड़ी डॉ, तृप्ति नागर व टीम ने पारंपरिक राजस्थानी लोक नृत्य की प्रस्तुति देकर दर्शकों का मन मोह लिया। प्रसिद्ध राजस्थानी लोकनृत्य घूमर सहित अन्य लोकनृत्यों की प्रस्तुति दी। 8 लोगों की टीम ने मटकी पर आग लगाकर और उसे सिर पर रखकर ऐसा अभूतपूर्व नृत्य किया कि लोग आर्श्चयचकित रह गए।

8 नवंबर के प्रमुख कार्यक्रम

कार्यक्रम की शुरुआत सुबह 10 बजे ध्रुपद गान से होगी। इसके साथ मुख्य सत्र में टैगोर, इकबाल और फैज पर आधारित वक्तव्य होंगे। दूसरा मुख्य सत्र 21वीं सदी में विश्व साहित्य विषय पर आधारित होगा। दोपहर में समानांतर सत्रों का आयोजन होगा। इसके अतिरिक्त लेखक से मिलिये विशेष कार्यक्रम आयोजित होगा। सायंकालीन सत्र में एक मुलाकात- आशुतोष राणा से खास होगी। इसके अतिरिक्त शाम 7.30 बजे से अंतर्राष्ट्रीय मुशायरा का आयोजन किया जाएगा।

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