गुजरात के गांधीनगर में नामांकन से पहले अमित शाह ने रैली और रोड शो किया। यूं तो रैली में राजनाथ सिंह से लेकर राम विलास पासवान तक कई नेता रहे लेकिन शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने छोटे से एक भाषण में बीते कुछ सालों की तल्खी को धोने की कोशिश की।
रैली में उद्धव ने कहा, “कुछ लोगों को मेरे यहां पहुंचने से आनंद हुआ पर कुछ को पेट मे दर्द हो रहा होगा। कुछ लोग खुशी मना रहे थे कि एक विचारधारा वाले दल लड़ झगड़ रहे थे।। हममें मनमुटाव जरुर था पर जब अमितभाई मेरे घर आये और बात हुई तो यह सब खत्म हो गया। शिवसेना और भाजपा की विचारधारा एक है जो हिंदुत्व है। मेरे पिताजी कहते थे कि हिंदुत्व हमारी सांस है। यह रुक जाये तो कैसे चल सकते हैं।”
2014 में केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के ठीक बाद ही दोनों के रिश्ते बिगड़ने लगे थे। पहले केंद्र में हिस्सेदारी को लेकर और फिर राज्य के स्तर पर। शिवसेना, महाराष्ट्र के भीतर सत्ता में बेहतर भागीदारी चाहती थी, मुख्यमंत्री की कुर्सी चाहती थी। लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो तल्खी और बढ़ गई। बीते साल एक वक्त ऐसा भी आया, जब शिव सेना ने एलानिया तौर पर कह दिया कि 2019 के चुनाव में वो अकेले उतरने वाली है। लेकिन जब 2019 आ ही गया और भाजपा की तरफ से रिश्ते सुधारने की कोशिश हुई तो पुराना मैल काफी हद तक धुल गया। अमित शाह ने उद्धव से, मातोश्री जाकर मुलाकात की, गुलदस्ते भेंट करने की तस्वीरें मीडिया में आईं और साथ आए गठबंधन के बयान।
महाराष्ट्र में अब दोनों पार्टियां मिल कर लड़ रही हैं। महाराष्ट्र की कुल 48 सीटों में से 25 सीटों पर भाजपा तो 23 पर शिव सेना लड़ेगी।