अहमदाबाद : अहमदाबाद की एक विशेष अदालत ने शहर में 2008 में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों के मामले में 38 दोषियों को शुक्रवार को मौत और 11 अन्य को उम्रकैद की सजा सुनायी। इन धमाकों में 56 लोगों की मौत हो गयी थी और 200 से अधिक घायल हो गए थे। न्यायाधीश ए आर पटेल ने धमाकों के करीब 14 साल बाद मामले में सजा सुनायी है। अदालत ने आठ फरवरी को मामले में 49 लोगों को दोषी ठहराया था और 28 अन्य को बरी कर दिया था। गौरतलब है कि शहर में सरकारी सिविल अस्पताल, अहमदाबाद नगर निगम द्वारा संचालित एलजी हॉस्पिटल, बसों में, पार्किंग में खड़ी मोटरसाइकिलों, कारों तथा अन्य स्थानों पर 26 जुलाई 2008 को 70 मिनट के भीतर एक के बाद एक करके 21 धमाके हुए थे, जिसमें 58 लोगों की मौत हो गयी थी।
लोक अभियोजक अरविंद पटेल ने पत्रकारों को बताया कि अदालत ने 7,000 से अधिक पन्नों के फैसले में मामले को दुर्लभ से दुर्लभतम बताया और 38 दोषियों को फांसी, जबकि 11 अन्य को मौत होने तक उम्रकैद की सजा सुनायी। अदालत ने गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून (यूएपीए) के प्रावधानों और भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) और धारा 120 बी (आपराधिक षडयंत्र) के तहत 49 दोषियों में से 38 को मौत की सजा सुनायी। बाकी के 11 दोषियों को मौत होने तक उम्रकैद की सजा सुनायी गयी। अदालत ने 48 दोषियों में से प्रत्येक पर 2.85 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया और एक अन्य पर 2.88 लाख रुपये का जुर्माना लगाया।
न्यायाधीश ए आर पटेल ने धमाकों में मारे गए लोगों को एक-एक लाख रुपये तथा गंभीर रूप से घायलों में से प्रत्येक को 50-50 हजार रुपये तथा मामूली रूप से घायलों को 25-25 हजार रुपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया। जिन लोगों को मौत की सजा सुनाई गई उनमें सफदर नागौरी, कयुमुद्दीन कपाड़िया, जाहिद शेख, कमरुद्दीन नागौरी और शम्शुद्दीन शेख शामिल हैं। अहमदाबाद में साबरमती केंद्रीय कारागार, दिल्ली में तिहाड़, भोपाल, गया, बेंगलुरू, केरल और मुंबई समेत आठ अलग-अलग जेलों में बंद सभी दोषी वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए सुनवाई के वक्त मौजूद रहे। लोक अभियोजक ने कहा, ‘‘मैं कह सकता हूं कि यह ऐसा मामला है, जिसमें सबसे अधिक संख्या में दोषियों को मौत की सजा सुनाई गयी। इससे पहले एक मामले में 26 लोगों को मौत की सजा सुनाई गई थी।
लेकिन इस मामले में 38 लोगों को मौत की सजा सुनाई गयी है।” अदालत ने पिछले साल सितंबर में 77 आरोपियों के खिलाफ मुकदमे की सुनवाई पूरी की थी। कुल 78 आरोपियों में से एक सरकारी गवाह बन गया था। प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन (आईएम) से जुड़े 77 लोगों के खिलाफ दिसंबर 2009 में मुकदमे की सुनवाई शुरू हुई थी। एक वरिष्ठ सरकारी वकील ने बताया कि बाद में चार और आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन उनका मुकदमा अभी शुरू नहीं हुआ है। इन धमाकों के अगले कुछ दिनों बाद सूरत में 29 और बम मिले थे, लेकिन उनमें से किसी में भी विस्फोट नहीं हुआ था। राज्य सरकार ने इसकी जांच अहमदाबाद अपराध शाखा को सौंप दी थी।
मामले में अब तक नौ अलग-अलग न्यायाधीशों ने सुनवाई की। मामले में सजा सुनाने वाले विशेष न्यायाधीश ए आर पटेल ने 14 जून 2007 को मामले की सुनवाई शुरू की थी। पुलिस ने दावा किया था कि प्रतिबंधित स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के एक धड़े आईएम के सदस्य इन धमाकों के पीछे थे। जांचकर्ताओं ने कहा कि आईएम ने गुजरात में 2002 में हुए गोधरा दंगों का बदला लेने के लिए धमाकों की योजना बनायी थी। गोधरा दंगों में एक हजार से अधिक लोग मारे गए थे, जिनमें से ज्यादातर मुस्लिम समुदाय के थे।