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तीन साल के प्रयोगशाला अनुभव के बाद एमएससी डिग्री वाले पेशेवर नैदानिक प्रयोगशाला में अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता बन सकते हैं

आम सभा, भोपाल : स्वास्थ्य मंत्रालय ने आधिकारिक घोषणा कर दी है कि तीन साल के प्रयोगशाला अनुभव के साथ मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी या मेडिकल बायोकैमिस्ट्री में एमएससी डिग्री वाले पेशेवर नैदानिक प्रयोगशाला में अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता बन सकते हैं. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने क्लिनिकल एस्टाब्लिशमंेट (केंद्र सरकार) संशोधन नियम 2020 के संबंध जारी अपनी नवीनतम राजपत्र अधिसूचना में आधिकारिक घोषणा की है कि तीन साल के प्रयोगशाला अनुभव के बाद मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी या मेडिकल बायोकैमिस्ट्री में एमएससी डिग्री वाले पेशेवर प्रयोगशाला परिणामों की किसी भी राय या व्याख्या को रिकॉर्ड किए बिना अपनी विशेषज्ञता से संबंधित परीक्षणों के लिए डायग्नोस्टिक लैबोरेट्री में अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता बन सकते हैं। मध्यम और उन्नत प्रयोगशालाओं के लिए मेडिकल माइक्रोबायोलाॅजी या मेडिकल बायोकैमिस्ट्री में पीएचडी आवश्यक होगी। एमसीआई के सुपर सेशन में बोर्ड ऑफ गवर्नर्स द्वारा मंत्रालय को अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता की भूमिका के बारे में अपना निर्णय दिए जाने के बाद यह अधिसूचना आई।

डॉ. श्रीधर राव, अध्यक्ष, नेशनल एमएससी मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन ने मंत्रालय के इस कदम का स्वागत करते हुए कहा, ’यह वास्तव में हमें अपने अधिकारों को वापस पाने की एक लंबी लड़ाई थी। हमसे साइनिंग अथॉरिटी छीन ली गई थी और हमारे कई सदस्यों की नौकरी चली गयी या वे कार्यस्थल पर पदावनत हुए और उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।’

उन्होंने एसोसिएशन के आवेदन पर उचित विचार करके हस्ताक्षर करने के अधिकार को बहाल करने के लिए बोर्ड ऑफ गवर्नर्स और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा, ’लैब रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने वाले नैदानिक वैज्ञानिकों की दुनिया भर में मान्यता है, जिनमें अमेरिका, यूके, यूरोपीय संघ, मध्य पूर्व देश, न्यूजीलैंड, श्रीलंका, नेपाल आदि शामिल हैं। वास्तव में, पश्चिम बंगाल सरकार ने अपने क्लिनिकल एस्टाब्लिशमेंट एक्ट के दिशानिर्देशों में नैदानिक वैज्ञानिकों को शामिल किया था। केंद्र सरकार द्वारा मार्ग प्रशस्त किये जाने के साथ ही बाकी राज्यों को भी इन दिशानिर्देशों को अपनाना चाहिए।’

श्री अर्जुन मैत्रा, सचिव, नेशनल एमएससी मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन ने कहा कि क्लीनिकल साइंटिस्ट (मेडिकल एमएससी या पीएचडी के साथ) समुदाय के लिए यह यह मंत्रालय द्वारा एक तरह का वेलेंटाइन डे उपहार है। उन्होंने कहा, ’हम इस दिन के लिए लंबे समय से इंतजार कर रहे थे। हम अपनी पेशेवर गरिमा और अपनी विशेषज्ञता के क्षेत्र में काम करने का अवसर पाने के लिए 2014 से लड़ रहे थे। उचित रूप से प्रशिक्षित नैदानिक वैज्ञानिक प्रयोगशाला चिकित्सा में विशेषज्ञता वाले डॉक्टरों की भारी कमी को पूरा करेंगे।’

चूंकि प्रयोगशाला परीक्षणों में उपयोग की जाने वाली तकनीकों के बारे में जरूरी ज्ञान और कौशल स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम (मेडिकल एमएससी) में मिल जाता है और यह एक तथ्य है कि पीएचडी में नियमित निदान संबंधी कोई अतिरिक्त ज्ञान या कौशल नहीं दिया जाता है, इसलिए मध्यम और उन्नत प्रयोगशालाओं के लिए पीएचडी की अनिवार्यता छोड़ी जा सकती है। एनएमएमटीए ने हमेशा ही पीजी योग्यता के आधार पर, भले ही पीएचडी हो या न हो, हस्ताक्षर करने का अधिकार देने को कहा है। अब हम मंत्रालय के फैसले और अन्य सभी का धन्यवाद और स्वागत करते हैं, जिन्होंने हमें समर्थन दिया।

नेशनल एमएससी मेडिकल टीचर्स एसोसिएशन (एनएमएमटीए) ऐसे व्यक्तियों का एक पंजीकृत संघ है, जिनके पास एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, बायोकैमिस्ट्री, फार्माकोलॉजी या माइक्रोबायोलॉजी में मेडिकल एमएससी की डिग्री है, जो कि मेडिसिन फैकल्टी के तहत प्रदान की जाती है और यह कोर्स मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा मान्यता प्राप्त मेडिकल कॉलेज या संस्थान में कराया जाता है।

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