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अभियान ‘एक पेड़ माँ के नाम’ वन एवं जलवायु मंत्रालय की ओर से बड़ी सौगात रहा 2024 में

नई दिल्ली
केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तत्वावधान में 'एक पेड़ माँ के नाम' के उद्घोष के साथ देश भर में चलाया गया वृक्षारोपण अभियान मंत्रालय की ओर से देश को वर्ष 2024 की एक बड़ी सौगात रही। पर्यावरण संरक्षण और कार्बन अवशोषण में वृक्षों की महती उपयोगिता के मद्देनजर इस अभियान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पूरा प्रोत्साहन मिला। मंत्रालय के अनुसार इस अभियान के तहत देश में अभी तक 102 करोड पेड़ लगाने की उपलब्धि हासिल हुई है और मार्च 2025 तक इसका लक्ष्य 140 करोड़ रखा गया है।
श्री मोदी ने गत 05 जून को विश्व पर्यावरण दिवस पर इस अभियान का उद्घाटन किया और लोगों को अपनी माँ के प्रति प्रेम, आदर और सम्मान के प्रतीक के रूप में एक पेड़ लगाने का आह्वान किया। इस अभियान के अंतर्गत पेड़ों और धरती माँ की रक्षा करने का संकल्प भी लिया जाता है।
मंत्रालय ने समाप्त हो रहे इस वर्ष के दौरान 26 सितंबर को 'लाइफस्टाइल फॉर एनवायरनमेंट' (लाइफ) के अनुरूप, इको-मार्क नियमावली अधिसूचित की है। यह 1991 की इको-मार्क योजना के स्थान पर है। यह योजना 'लाइफ' के सिद्धांतों के अनुरूप पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों की मांग को प्रोत्साहित करेगी, ऊर्जा की कम खपत, संसाधन दक्षता और सर्कुलर अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगी। इस योजना का उद्देश्य सटीक लेबलिंग सुनिश्चित करना और उत्पादों के बारे में भ्रामक जानकारी को रोकना है।
देश की जलवायु के अनुकूल कार्रवाई उसके अद्यतन राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) और 2070 तक नेट जीरो तक पहुंचने की दीर्घकालिक रणनीति द्वारा निर्देशित है और यह अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में फैली हुई है। वैश्विक जीएचजी उत्सर्जन में मामूली योगदान के बावजूद भारत ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में सबसे आगे रहने की अपनी इच्छा दिखाई है। भारत में वैश्विक आबादी का लगभग 17 प्रतिशत हिस्सा रहता है लेकिन इसका ऐतिहासिक तौर पर कुल योगदान चार प्रतिशत से भी कम है।
वर्ष 2005 से 2019 के बीच हमारे सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता में 33 प्रतिशत की कमी आई है। इसलिए उत्सर्जन तीव्रता में कमी का लक्ष्य तय समय से पहले ही हासिल कर लिया गया है। इस वर्ष 31 अक्टूबर तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से कुल विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता कुल संचयी विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता का 46.52 प्रतिशत है। देश ने 2030 तक उत्सर्जन तीव्रता में 45 प्रतिशत की कमी और गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से संचयी विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता का 50 प्रतिशत तक अपने एनडीसी लक्ष्यों को अद्यतन किया है।
कार्बन कैप्चर यूटिलाइजेशन एंड स्टोरेज (सीसीयूएस) की औद्योगिक और बिजली क्षेत्र को कार्बन मुक्त करने में महत्वपूर्ण और निर्णायक भूमिका रही है।
मंत्रालय का भारत शीतलन कार्य योजना (आईसीएपी) में सामाजिक-आर्थिक लाभों को अधिकतम करने के लिए चल रहे सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं के साथ तालमेल बिठाने पर बल है। केन्द्र सरकार ने आईसीएपी में दी गई सिफारिशों को लागू करने के लिए कई कदम उठाए हैं। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल कटौती कार्यक्रम के अनुसार 2020-24 के दौरान हाइड्रो क्लोरोफ्लोरोकार्बन (एचसीएफसी) के 35 प्रतिशत चरणबद्ध कटौती लक्ष्य के मुकाबले, भारत ने उपभोग क्षेत्र में हाइड्रो क्लोरोफ्लोरोकार्बन में 50 प्रतिशत की कमी हासिल की है।
एसी और फ्रिज जैसे नए उपकरणों के निर्माण में एचसीएफसी का उपयोग इस साल के आखिरी दिन तक चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया जाएगा।
मैंग्रोव को एक अद्वितीय, प्राकृतिक इकोसिस्टम के रूप में बहाल करने और बढ़ावा देने तथा तटीय आवासों की स्थिरता को संरक्षित करने और बढ़ाने के लिए इस वर्ष 05 जून को 'तटीय आवास और मूर्त आय मैंग्रोव पहल (मिष्टी)' शुरू की गई है। इस योजना के लिए प्रारंभिक परियोजना परिव्यय के रूप में प्रतिपूरक वनीकरण निधि प्रबंधन और योजना प्राधिकरण (सीएएमपीए) के माध्यम से 100 करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित की गई है। देश के 13 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में लगभग 22,561 हेक्टेयर खराब मैंग्रोव क्षेत्र को पुनर्स्थापन के तहत लाया गया है और छह राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में 3,836 हेक्टेयर पुनर्स्थापन के लिए कुल 17.96 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं।
देश ने इस वर्ष 17 अगस्त को तीसरे वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन की मेजबानी की, जिसका मुख्य विषय 'एक सतत भविष्य के लिए सशक्त वैश्विक दक्षिण' है। भारत ने वैश्विक दक्षिण के देशों को एकजुट होने, एक स्वर में साथ खड़े होने और एक दूसरे की ताकत बनने पर जोर दिया। पर्यावरण मंत्रियों के सत्र में वैश्विक दक्षिण के 18 देशों और एक बैंक ने भाग लिया। भारत ने टिकाऊ उपभोग और उत्पादन पैटर्न को प्रोत्साहित करने, टिकाऊ जीवन शैली को बढ़ावा देने, अपशिष्ट को कम करने और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और सम्मान की संस्कृति को बढ़ावा देने के महत्व पर जोर दिया। विचार-विमर्श में जलवायु न्याय और विकासशील देशों की जलवायु वित्त, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण की मांग पर प्रकाश डाला गया।
इस वर्ष असम में पहली बार गंगा नदी डॉल्फिन (प्लैटनिस्टा गैंगेटिका) को टैग किया गया। इस पहल को भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) ने असम वन विभाग और आरण्यक के सहयोग से राष्ट्रीय सीएएमपीए प्राधिकरण से वित्त पोषण के साथ लागू किया। यह न केवल भारत में, बल्कि इस प्रजाति के लिए भी पहली टैगिंग है, और यह मील का पत्थर प्रधानमंत्री मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में प्रोजेक्ट डॉल्फिन की एक महत्वपूर्ण प्रगति है।

 

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