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विचारधारा की सीमाएं तोड़ देश में लोकतंत्र बचाना जरूरी

* मधु लिमये जन्मशती समापन समारोह में विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने बतई एकजुट होने की जरूरत

आम सभा, दिल्ली।

दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में गत रविवार की शाम प्रखर सांसद, स्वतंत्रता सेनानी मधु लिमये को उनकी जन्मशताब्दी के समापन समारोह के अवसर पर याद किया गया। विभिन्न राज्यों के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक की अध्यक्षता में आयोजित इस समारोह के मंच पर उपस्थित देश के विपक्षी दलों के नेताओं ने विचारधारा की सीमाओं को तोड़कर एकजुट होने को समय की जरूरत बताया।
अध्यक्षीय वक्तव्य में सत्यपाल मलिक ने मधु लिमये को याद करते हुए कहा कि वे कहते थे संसद भाषण के लिए नहीं, सरकारों को पकड़ने के लिए होती है। संवैधानिक संस्थाओं को जिस तरह नष्ट करने की कोशिश हो रही है उसे देखते हुए आज विपक्षी दलों को एक होने के साथ साथ यह तय करने की जरूरत है कि आगामी चुनावों में सत्तापक्ष के मुकाबले केवल एक ही उम्मीदवार को मैदान में उतारा जाये। अगर ऐसा न हुआ तो भविष्य में कभी चुनाव भी शायद ही हों। सावधानी से काम नहीं किया तो सब बरबाद हो जायेंगे। इस समय अच्छाइयों को इस ढंग से खतम किया जा रहा है कि हमें पता ही नहीं चलता। समय ऐसा भी आ सकता है कि मीडिया की आज़ादी खतम हो जाये और उसे निर्देशित किया जाये।
मधु लिमये की महानता और को याद करते हुए सत्यपाल मलिक ने कहा- ‘ वो आसमान था जो सर झुकाकर चलता था। ‘ मधु जी जब संसद में प्रिविलेज मोशन के तहत बोलते थे तब सरकार के मंत्रियों की पिंडलियां कांपती थीं। प्रिविलेज मोशन में सरकार को घेरने की जैसी महारत हासिल थी वैसी दुनिया में शायद ही किसी को हासिल थी।
मधु लिमये के साहित्य के प्रकाशन के लिए समापन समारोह के संयोजक रमाशंकर सिंह की सराहना करते हुए मलिक ने कहा कि यदि देश के नायकों पर केन्द्रित साहित्य हम नहीं छापेंगे तो आने वाली पीढ़ियों को इनके विषय में कुछ पता ही नहीं होगा।
मधु जी किस प्रकार अपने से कनिष्ठ के विचार और असहमति का भी सम्मान करते थे उसे याद करते हुए सीपीएम के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी ने बताया कि मधु जी ने ‘ स्टैट्समैन के एक लेख में जब वामपंथियों के कुछ दोष गिनाये तो जवाब में येचुरी जी ने एक चिठ्ठी लिखी थी जिसका न केवल मधु जी ने उत्तर दिया था बल्कि सीपीएम नेता वीटी रणदिवे से प्रशंसा करते हुए पूछा था कि आपकी पार्टी में सीताराम कौन हैं। बाद में रणदिवे जी सीताराम येचुरी को मधु जी से मिलाने ले गये। सीताराम येचुरी ने कहा कि समाजवादी व वामपंथी विचारधारा की राजनीति में समन्वय के अभाव से देश को नुकसान हुआ है। इस कमी को दूर कर एकजुट होना जरूरी है।
बहुजन समाज पार्टी के सांसद दानिश अली ने मौजूदा वक्त को अघोषित आपातकाल बताते हुए कहा कि लोकतंत्र को यदि बचाना है तो सबको एकजुट होना पड़ेगा।
जनता दल ( यू) के महासचिव के सी त्यागी ने राजनीतिक विचारधाराओं के श्रेष्ठता के द्वंद्व को आज के समय के लिए नुकसानदेह बताते हुए कहा कि मधु जी समाजवादी और वामपंथी एकता के सदैव पक्षधर रहे। आज लोकतंत्र की अंतिम परीक्षा का समय है। ऐसे वक्त में मधु जी के रास्ते पर चलकर ही लोकतंत्र को बचाया जा सकता है। सीपीआई नेता सैय्यद अजीज़ पाशा ने मधु लिमये को याद करते हुए कहा कि उन्होंने कभी जेल से रिहाई की अपील नहीं की। मधु जी पर महात्मा गाँधी का गहरा प्रभाव रहा। बहुत किताबें उन्होंने सामयिक प्रश्नों पर लिखीं। सीपीआई ( माले) महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि देश की आज़ादी के समय पांच राजनीतिक धारायें थीं। आज एक धारा को छोड़कर बाक़ी हाशिये पर हैं। आज़ादी के आन्दोलन की तरह आज सबके एकजुट होने और व्यापक विपक्षी एकता की जरूरत है। किसानों के हित में संघर्ष व समान नागरिकता आंदोलन समय की मांग है।
रालोद नेता त्रिलोक त्यागी ने मधु जी को बहुत आत्मीयता से याद करते हुए कहा कि उन जैसी सादगी अब दूर दूर तक दिखाई नहीं देती। खुद चाय बनाकर पिलाते थे। आज छोटे छोटे नेता भी अपना स्टाफ़ और सहायक रखते हैं। मधु जी अपने सारे काम खुद करते थे। एक ओर राजनीति में ईमानदारी के वे पुरोधा थे दूसरी ओर ज्ञान का भंडार। मधु जी अगर दोहरी सदस्यता का सवाल न उठाते तो जनता पार्टी नहीं टूटती। लेकिन उन्होंने सत्ता के वजाय समय पर सवाल उठाना जरुरी समझा।
कांग्रेस नेता सन्दीप दीक्षित ने कहा कि मधु जी से यह सीखना जरूरी है कि हम अपने जीवन में सादगी अपनायें। राजनीतिक दल पूंजीवाद में न जियें।
इंडियन नेशनल लोकदल के नेता अभय चौटाला ने बताया कि चौधरी देवीलाल से मधु लिमये जी की सादगी के किस्से सुने थे। उन्होंने न स्वतंत्रता सेनानी होने की पेंशन ली न सांसद होने की। मधु जी संविधानविद थे। संसद में पूरी तैयारी से जाते थे।

‘ संडे ‘ पत्रिका व हिन्दुस्तान टाइम्स में कार्यरत रहे पत्रकार- सम्पादक शुभव्रत भट्टाचार्य ने कहा कि समाजवादियों और वामपंथियों की एकता कोई नयी बात नहीं है। आजादी से बहुत पहले यह सम्भव हुआ था और आज भी यह सम्भव है। मधु जी को याद करते हुए उन्होंने कहा राजकुमार जैन के विद्यार्थी जीवन में हिन्दी में परीक्षा देने पर पावंदी लगाई गई तब मधु जी उनके पक्ष में खड़े हुए थे। उन जैसी सादगी अब देखने नहीं मिलती।
कवि-आलोचक- संस्कृतिविद अशोक वाजपेयी ने कहा समता और मुक्ति मधु लिमये के केन्द्रीय सरोकार थे। उनके लिए राजनीति बौद्धिक कर्म था। मधु जी एक सभ्य और सुसंस्कृत राजनेता थे। शास्त्रीय संगीत से उनका गहरा लगाव था। पं. कुमार गंधर्व के गायन की प्रशंसा में आपातकाल में नरसिंहगढ़ की जेल से लिखी चिट्ठी में कहा था कि ऐसा लगता है कि उनका संगीत जीवन के रहस्य को छू सा रहा है। साहित्यकार निर्मल वर्मा एक गोष्ठी में मधु जी को सुनने के बाद यह देख चकित हुए थे कि ऐसे सुसभ्य और शास्त्रीय कलाओं के मर्मज्ञ भी राजनीति में हैं। आज का समय संस्कृति-शून्य समय है और अधिकांश राजनेता असभ्य। विरोध को अपराध माना जा रहा है। आयोजन में एकत्रित विभिन्न विचारधाराओं के राजनेताओं की उपस्थिति पर अशोक वाजपेयी ने कहा ऐसा लगता है हमारा आत्मविश्वास लौट रहा है।
समारोह में स्वागत भाषण देते हुए प्रोफेसर आनंद कुमार ने दुष्यंत कुमार की गजल पढ़ी-‘फिर धीरे धीरे यहाँ का मौसम बदलने लगा है/ वातावरण सो रहा था फिर आंख मलने लगा है।’
समारोह में मधु लिमये के बेटे अनिरुद्ध लिमये सहित मधु जी के विचार और संघर्ष के साथी डॉ. पारीख (मुम्बई) रावेला सोमैया (हैदराबाद), विजय नारायण सिंह (बनारस) , राजनीति प्रसाद सिंह (पटना), कल्याण जैन( इन्दौर), सरदार जयपाल सिंह दुगल, पंडित रामकिशन (राजस्थान) और जयवंत रामचंद्र भोंसले (महाराष्ट्र) का सम्मान प्रशस्ति व अंगवस्त्र से किया गया। प्रशस्ति का वाचन मधु लिमये जन्मशती समारोह के संयोजक रमाशंकर सिंह ने किया।
जन्मशती समारोह समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर राजकुमार जैन व सदस्यगण हरभजन सिंह सिद्धू, महेन्द्र शर्मा, श्रीमती मंजू मोहन, शाहनवाज़ कादरी ने मधु लिमये के वैचारिक साथियों को सम्मानित किया। मधु लिमये, रावेला सौमैया, जीजी पारीख की प्रशस्ति को क्रमशः अनिरुद्ध लिमये, डॉ. सुनीलम व टी गोपाल सिंह ने ग्रहण किया।
समारोह का शुभारंभ पंडित कुमार गंधर्व की सुपुत्री विदुषी कलापिनी कोमकली के कबीर गायन से हुआ। उनके साथ तबले पर शम्भूनाथ भट्टाचार्य, हारमोनियम पर चेतन निगम व मंजीरे पर अनुरोध जैन ने संगत की।
इस अवसर प्रख्यात कला समीक्षक प्रयाग शुक्ल, गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत, हरीश खन्ना, प्रोफेसर अजीत झा, डॉ. अनिल ठाकुर, सहित राजधानी व देश के अनेक गण्यमान्य लोग उपस्थित रहे।

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