आम सभा, भोपाल।
खास बात यह है कि जिस यूनियन के कर्ताधर्ता रहे उसी यूनियन के झूठी शिकायत पर हुई कार्यवाई।
जिस कर्मचारी पर आपसी द्वेष की भावना से कार्यवाई हुई है उसका नाम रोहित कुमार बताया जा रहा है। वेज रिवीजन के समय रोहित कुमार की वार्गेनिंग एवं नेगोसिएशन स्किल की खूब चर्चा हुई थी। कर्मचारियों में यह भी चर्चा का विषय बना है कि जिनके नेतृत्व का बखान कर एवं जिनके कार्य के दम पर यूनियन नंबर वन बनी आज उसी को निपटाने हेतु धन बल एवं पूरी यूनियन का ताकत लगा दिया गया है। ये यूनियन ने कर्मचारियों के शोषण से मुक्ति दिलाने का कसम खाई थी आज कर्मचारियों को पडताडित करने में लगे है। कर्मचारियों के मुद्दे इंसेंटिव, एस आई पी, पीपी बोनस इत्यादि तीन महीनों में हक दिलबाने का बादा किया । परंतु कई तीन महीने निकल गए कोई भी मुद्दे हल कराने का प्रयास नही किया। मुख्य पदाधिकारी अपने स्वार्थ के लिए बैठकों का तो बहिष्कार किया ही परंतु प्रबंधन से सुविधाओं का खूब उपभोग किया।
पडताडित कर्मचारी रोहित कुमार के विषय मे जानकारी खंगाली गई तो पता चला कि वर्ष 2014 से 2021 तक वो हेवू – भारतीय मजदूर संघ बीएचईएल भोपाल में उपाध्यक्ष, वर्ष 2019 से 2021 तक बीएमएस PSENC में राष्ट्रीय कार्यकारणी में एक्जुटिव सदस्य, वर्ष 2019 से 2021 तक भेल बीएमएस महासंघ में उपाध्यक्ष के दायित्व का निर्वहन किया एवं बीएचईएल भोपाल के प्लांट कौंसिल और केंद्रीय जेसीएम की बैठकों में यूनियन का प्रतिनिधित्व करते हुए कर्मचारियों के बाजिव मुद्दे को उठता रहा। साथ ही यूनियन के कारखाना एवं कर्मचारी हित के कार्यो को क्रियान्वयन में अपना पूर्ण रूप से भागीदारी देता रहा है।
उक्त यूनियन के अध्यक्ष व महामंत्री के कंपनी एवं कर्मचारी विरोधी, ब्लैक मेलिंग एवं दलाली संबंधी गतिविधियों का विरोध भी खूब किया है। भारतीय मजदूर संघ के रीति नीति के अनुसार एक व्यक्ति एक पद पर अधिकतम दो कार्यकाल ही रह सकता है। इसलिए उन्होंने उपाध्यक्ष के दायित्व का दो कार्यकाल पूर्ण करने के पश्चात पद का त्याग कर दिया। इनके विषय मे यह भी कहा जा रहा है कि वो हमेशा अपने कंपनी के दायित्वों के प्रति पूर्ण समर्पण भाव से कार्य करता है।
अध्यक्ष एवं महामंत्री अपने स्वार्थ के कारण संगठन के रीति नीति के विपरीत 10 वर्षो से पद पर बने है और संगठन में क्षेत्रबाद एवं जातिबाद के आधार पर विबाद करते रहे ऐसे दूषित वातावरण में संगठन में बने रहना राष्ट्रीय विचारधारा के कार्यकर्ताओं के लिए संभव नही हो सका। लिहाजा कार्यमुक्त हो गया।
यही बात पर नफरत इतनी बढ़ी की दोस्ती दुश्मनी में बदल गया। अब अपनी कमियों को छुपाने एवं यूनियन नेताओ की वर्चस्व की लड़ाई को बीएचईएल प्रबंधन के सहयोग से त्याग, तपस्या करने वाले कर्मचारियों को प्रताडित करने का सतत अभियान चलाया गया।
मजे की बात यह है कि जो झूठे एवं फेब्रिकेटेड मामले का शिकायत किया वो 4-5 साल पुरानी थी। जिस समय ये लोग रोहित कुमार का गुणगान करते नही थकते थे। कहा तो यह भी जाता है कि उस समय रोहित ही थे जो अपने जान की बाजी लगाकर कोरोना काल मे उनके माता पिता का खूब सेवा किया। यहाँ तक कि लॉक डाउन में बालाघाट भी लेकर गया। परंतु सब भूलकर सारी हदें पार कर दी।