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नींद साल दर साल लक्ज़री बनती जा रही है; कम सो रहे हैं भारतीय – वर्ल्ड स्लीप डे पर सेंचुरी-वेवमेकर स्लीप सर्वे में सामने आई यह बात

हैदराबाद : आपकी नींद कितनी महत्वपूर्ण है? अगर आप आज वर्ल्ड स्लीप डे (13 मार्च, 2020) पर किसी से भी यह पूछेंगे, शहर में या गांव में रहने वाले लोगों से या फिर किसी युवा अथवा अधेड़ आयु के व्यक्ति से, तो यही सुनने को मिलेगा कि नींद अच्छे स्वास्थ्य का महत्वपूर्ण भाग है। हालांकि, इस समझ के बावजूद क्या हम पर्याप्त या शांति से नींद लेते हैं। इसका जवाब है ‘नहीं’, क्योंकि इसका खुलासा भारत के दस शहरों के लोगों ने किया है, यह शहर हैं हैदराबाद, बैंगलोर, चेन्नई, पुणे, कोच्चि, अहमदाबाद, भुवनेश्वर, इंदौर, विशाखापटनम और रायपुर। सेंचुरी मैट्रेसेस और वेवमेकर ने विभिन्न शहरों में ‘इन सर्च ऑफ बेटर स्लीप 2020’ नामक एक सर्वे किया, ताकि नींद और अन्य मामलों पर लोगों की मनोवृत्ति, धारणा और व्यवहार को समझा जा सके। इसमें पाया गया कि सोने के समय के अलावा नींद की गुणवत्ता और अवरोध उत्पन्न करने वाले अन्य कारक वर्ष दर वर्ष चिंता बढ़ा रहे हैं।

कुल मिलाकर, दस शहरों में इस सर्वे ने पाया कि अधिकांश शहरों में नींद के कुल घंटे कम हुए हैं। वर्ष 2018 में लोग सप्ताहांत पर 7.66 घंटे सोये और सप्ताह के दिनों में 7.48 घंटे, जबकि 2019 में यह अवधि घटकर सप्ताहांत के लिये 6.85 घंटे पर आ गई और सप्ताह के दिनों के लिये 6.76 घंटे रही।

इससे यह तथ्य जाहिर होता है कि अधिकांश लोग स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार जरूरी 8 घंटे की नींद नहीं ले पाते हैं। यदि नींद की अवधि को लैंगिक आधार पर देखा जाये, तो परिणाम अधिक चिंताजनक हैं, क्योंकि साल 2019 में 25-35 वर्ष की महिलाएं सप्ताहांत में 6.60 घंटे और सप्ताह के दिनों में 6.97 घंटे सो रही हैं, जबकि साल 2018 में यह समय क्रमशः 7.70 घंटे और 7.43 घंटे था। इनकी तुलना में इसी आयु वर्ग के पुरूष साल 2019 में सप्ताह के दिन 6.73 घंटे सोये और सप्ताहांत पर 6.58 घंटे, जबकि साल 2018 में यह अवधि क्रमशः 7.66 घंटे और 7.50 घंटे थी।

उच्च आय वाले लोगों की नींद भी घटी है, जो साल 2019 में सप्ताहांत पर 6.74 घंटे और सप्ताह के दिनों में 6.75 घंटे रही, जबकि साल 2018 में यह क्रमशः 7.68 घंटे और 7.5 घंटे थी। मध्यम आय वर्ग में भी बड़ा बदलाव नहीं हुआ है, साल 2019 के सप्ताहांत में उनकी नींद 7.46 घंटे और सप्ताह के दिनों में 6.84 घंटे रही, जो साल 2018 में क्रमशः 7.45 घंटे और 7.29 घंटे थी। यह डाटा बताता है कि लोग नींद का महत्व समझ रहे हैं, लेकिन अधिकांश लोगों की पहुँच गुणवत्तापूर्ण नींद तक नहीं है। लैपटॉप, टैबलेट और स्मार्टफोन का उपयोग सही समय पर सोने में सबसे बड़ा अवरोधक है, ऐसा 47 प्रतिशत लोगों का मानना है। काम और पैसे की चिंता सर्वे किये गये 15 प्रतिशत लोगों की नींद उड़ाती है।

अनियमित नींद और सोने की अव्यवस्थित सतह के कारण साल 2019 में 42 प्रतिशत लोगों को कमर दर्द रहा, जो साल 2018 में 39 प्रतिशत लोगों को था। नींद की गुणवत्ता और अवधि के प्रभावित होने से हर 5 में से एक व्यक्ति (22 प्रतिशत) को जागने के बाद आराम का अनुभव नहीं होता है। लगभग 38 प्रतिशत लोगों ने यह भी कहा कि उन्हें एक सप्ताह में दिन के समय कम से कम 3 बार नींद आती है। अनिद्रा के मामले में चेन्नई देश में सबसे आगे है, जबकि बैंगलोर, भुवनेश्वर और अहमदाबाद ने ऐसा कोई न कोई मामला बताया है, जो साल 2018 में हैदराबाद द्वारा चिन्हित किया गया था।

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