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दलाई लामा के उत्तराधिकारी पर भारत का दो टूक: फैसला चीन नहीं, तिब्बती करेंगे

नई दिल्ली 
भारत ने तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के उत्तराधिकारी के मुद्दे पर स्पष्ट और कड़ा रुख अपनाते हुए कहा है कि इस मामले में केवल दलाई लामा ही निर्णय ले सकते हैं। भारत ने चीन की किसी भी दखलंदाजी को सिरे से खारिज करते हुए इसे तिब्बती बौद्ध परंपराओं का आंतरिक मामला बताया। भारत ने स्पष्ट किया कि तिब्बती आध्यात्मिक गुरु के उत्तराधिकारी को तय करने का अधिकार केवल और केवल दलाई लामा को है, न कि किसी और को।

अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने बृहस्पतिवार को कहा कि अगले दलाई लामा पर निर्णय सिर्फ और सिर्फ स्थापित संस्था व दलाई लामा लेंगे। उन्होंने कहा कि इस फैसले में कोई और शामिल नहीं होगा। रिजिजू ने यहां संवाददाताओं से कहा कि दलाई लामा बौद्धों के लिए ‘सर्वाधिक महत्वपूर्ण और परिभाषित संस्था’ हैं। उन्होंने कहा, “और दलाई लामा को मानने वाले सभी लोगों की राय ​​है कि उत्तराधिकारी का फैसला स्थापित परंपरा के और दलाई लामा की इच्छा के अनुसार होना चाहिए। उनके और मौजूदा परंपराओं के अलावा किसी और को इसे तय करने का अधिकार नहीं है।”

बौद्ध धर्म के अनुयायी रिजिजू इन दिनों धर्मशाला में हैं, जहां वह केंद्रीय मंत्री ललन सिंह के साथ दलाई लामा के 90वें जन्मदिन के समारोहों में भारत सरकार के प्रतिनिधियों के रूप में भाग ले रहे हैं। रिजिजू ने यह भी स्पष्ट किया कि यह एक "शुद्ध रूप से धार्मिक अवसर है" और इसे राजनीति से जोड़ना अनुचित है।

दलाई लामा का रुख भी स्पष्ट
इससे एक दिन पहले, दलाई लामा के आधिकारिक कार्यालय गादेन फोडरंग ट्रस्ट ने भी बयान जारी कर कहा था कि दलाई लामा की संस्था 600 साल पुरानी है और इसका अस्तित्व उनके जीवन के बाद भी बना रहेगा। अगला यानी 15वां दलाई लामा किसे बनाया जाएगा, इसका निर्णय पूरी तरह गादेन फोडरंग ट्रस्ट ही करेगा। गादेन फोडरंग ट्रस्ट ने 24 सितंबर 2011 के बयान का हवाला देते हुए कहा कि "भविष्य में दलाई लामा की मान्यता की प्रक्रिया पूरी तरह ट्रस्ट के सदस्यों की जिम्मेदारी होगी।"

चीन की दखल की कोशिश
चीन लगातार यह दावा करता रहा है कि दलाई लामा का पुनर्जन्म उसकी अनुमति और नियंत्रण में ही होना चाहिए। हाल ही में चीन की विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा, "दलाई लामा का उत्तराधिकारी चयन चीनी कानून, धार्मिक परंपराओं और ऐतिहासिक प्रक्रिया के तहत होना चाहिए।" बीजिंग का यह दावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना का विषय रहा है। दलाई लामा को विश्व भर में शांति और करुणा का प्रतीक माना जाता है। लेकिन चीन उन्हें एक "विभाजनकारी व्यक्ति" बताता है, जो तिब्बत को चीन से अलग करना चाहता है।

निर्वासन में जीवन और तिब्बती चिंता
1959 में तिब्बत में चीनी शासन के खिलाफ असफल विद्रोह के बाद दलाई लामा भारत आ गए थे और तब से वह भारत में शरण लिए हुए हैं। धर्मशाला स्थित तिब्बती निर्वासित सरकार आज करीब 1.3 लाख तिब्बतियों का प्रतिनिधित्व करती है। 2011 में दलाई लामा ने राजनीतिक जिम्मेदारियां छोड़ दी थीं और लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित सरकार को यह जिम्मेदारी सौंप दी थी। लेकिन उन्होंने तब भी चेतावनी दी थी कि पुनर्जन्म की इस परंपरा का राजनीतिक मकसद से दुरुपयोग किया जा सकता है।

तिब्बती समुदाय की चिंता
तिब्बती समुदाय और मानवाधिकार कार्यकर्ता आशंका जता रहे हैं कि चीन भविष्य में एक "सरकारी दलाई लामा" नियुक्त कर सकता है, ताकि तिब्बत पर उसका नियंत्रण और मजबूत हो जाए। इस कदम को तिब्बती संस्कृति और धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ माना जा रहा है।

चीन ने दलाई लामा की उत्तराधिकार योजना को खारिज किया, मंजूरी की जरूरत पर जोर दिया
चीन ने दलाई लामा की उत्तराधिकार योजना को बुधवार को खारिज करते हुए इस पर जोर दिया कि किसी भी भावी उत्तराधिकारी को उसकी मंजूरी लेनी होगी। इस तरह चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के साथ तिब्बती बौद्ध के दशकों पुराने संघर्ष में एक नया अध्याय जुड़ गया है। तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने बुधवार को कहा कि दलाई लामा की संस्था जारी रहेगी और केवल गादेन फोडरंग ट्रस्ट के पास उनके उत्तराधिकारी को तय करने का अधिकार होगा।

इसके साथ ही दलाई लामा ने इस संबंध में अनिश्चितता को समाप्त कर दिया कि उनके बाद उनका कोई उत्तराधिकारी होगा या नहीं। गादेन फोडरंग ट्रस्ट की स्थापना दलाई लामा ने 2015 में की थी। रविवार को दलाई लामा के 90वें जन्मदिन से पहले उनकी यह घोषणा बीजिंग के साथ तनाव बढ़ाने वाली है। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने दलाई लामा की घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रेस वार्ता में कहा, "दलाई लामा के पुनर्जन्म को धार्मिक परंपराओं और कानूनों के अनुरूप घरेलू मान्यता, 'स्वर्ण कलश' प्रक्रिया और केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदन के सिद्धांतों का पालन करना होगा।’’ चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने दलाई लामा की घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रेस वार्ता में कहा, "दलाई लामा के पुनर्जन्म को धार्मिक परंपराओं और कानूनों के अनुरूप घरेलू मान्यता, 'स्वर्ण कलश' प्रक्रिया और केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदन के सिद्धांतों का पालन करना होगा।’’
दलाई लामा के उत्तराधिकारी को भी…

दलाई लामा की तरफ दुनिया का ध्यान 1959 में उस समय गया जब वह कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक माओत्से तुंग के नेतृत्व में चीनी सेना द्वारा तिब्बत पर कब्जा कर लेने के बाद तिब्बतियों के एक बड़े समूह के साथ भारत में शरण लेने के लिए आए थे। तब से वह धर्मशाला में रह रहे हैं। उनकी उपस्थिति चीन और भारत के बीच विवाद का विषय बनी रही। दलाई लामा के उत्तराधिकारी को भी तिब्बती स्वायत्तता के लिए संघर्ष को जारी रखना पड़ सकता है। दलाई लामा के उत्तराधिकारी के मुद्दे से चीन और अमेरिका के बीच भी नए तनाव की आशंका है क्योंकि अमेरिका का तिब्बती नीति और समर्थन अधिनियम 2020, चीन की नीति के उलट है। अमेरिकी अधिनियम में दलाई लामा और तिब्बती बौद्ध धर्म के लिए अमेरिका के दृढ़ समर्थन की पुष्टि की गई है।

माओ ने कहा कि दलाई लामा और तिब्बती बौद्ध धर्म के दूसरे सबसे बड़े आध्यात्मिक नेता पंचेन लामा के पुनर्जन्म के लिए 18वीं सदी के किंग राजवंश द्वारा शुरू की गई स्वर्ण कलश विधि प्रक्रिया की सदियों पुरानी परंपरा से गुजरना पड़ता है। माओ ने कहा कि वर्तमान 14वें दलाई लामा को उनके पूर्ववर्ती के निधन के बाद पारंपरिक अनुष्ठानों के बाद मान्यता दी गई थी, लेकिन उनकी मान्यता तत्कालीन केंद्रीय सरकार द्वारा सीधे दी गई थी, जिससे उन्हें स्वर्ण कलश प्रक्रिया से छूट मिल गई।

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